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आईना-ए-अकबरी में भी आपको मिलेगी बिहार के इस जिले की चर्चा

Bihari News

भूमिका

आज हम बात करेंगे बिहार के एक ऐसे जिले के बारे में जो अपने ऐतिहासिक और सामाजिक महत्त्व के लिए जाना जाता है. जिस जिले ने स्वाधीनता संग्राम के समय अपनी सराहनीय भूमिका अदा की. जिसकी धरती पर सरदार मंगल सिंह जैसे वीर पूतों ने जन्म लिया. जो मानव बसाव के प्राचीन केन्द्रों में से एक है. जी हाँ आज हम बात कर रहे हैं भोजपुरी भाषी क्षेत्र सारण जिले के बारे में. भूमि वनों के विस्तार और काफी अधिक संख्या में यहाँ रहने वाले हिरनों के कारण इस जिले का नाम सारंग अरण्य पड़ा. जहाँ सारंग का अर्थ होता है हिरन और अरण्य का अर्थ होता है वन. समय के साथसाथ बोल चाल की भाषा में सारंग से सारण हो गया और अब यह जिला सारण जिले के नाम से हीं जाना जाता है. वही एक ब्रिटिश विद्वान की धारणा के अनुसार मौर्य सम्राट अशोक के समय इस क्षेत्र में जो धम्म स्तंभ लगाये गये थे उसे शरण भी कहा जाता था. शरण के नाम पर हीं आगे जाकर यह जिला सारण के नाम से लोगों के बीच प्रसिद्ध हुआ. इस जिले का प्रशासनिक मुख्यालय छपरा में है.

 

  • चौहद्दी और क्षेत्रफल

यदि हम इस जिले के चौहद्दी की बात करें तो उत्तर में सिवान और गोपालगंज, दक्षिण में यह जिला गंगा और घाघरा नदी से घिरा है. जहाँ नदी पार पटना और भोजपुर जिले स्थित हैं. यदि पूर्व दिशा की बात करें तो इस तरफ मुजफ्फरपुर और वैशाली जिला स्थित है. वहीँ पश्चिम में सिवान और उत्तर प्रदेश का एक जिला बलिया स्थित है. इस जिले का क्षेत्रफल 2,641 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. यहाँ की आबादी 34,06,061 है. इस जिले के तीन अनुमंडल है. जिनमे सदर, मढ़ौरा और सोनपुर है. यहाँ कुल 20 प्रखंड और 1807 गाँव है.

इतिहास

सारण जिले का सबसे महत्वपूर्ण पुरातत्त्व स्थल चिरांद है. जिला मुख्यालय छपरा से यह मात्र 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सारण महाजनपद काल में कोसल महाजनपद का एक अंग था. पाल शासकों द्वारा आठवीं सदी में यहाँ आधिपत्य जमा लिया गया. बाबर द्वारा भी इस क्षेत्र को अपने साम्राज्य का एक हिस्सा बनाया गया था. मुग़ल शासन के दौरान हीं अकबर के शासन काल पर आइनाअकबरी की रचना की गयी थी. इस रचना के अनुसार सारण एक राज्य था और वर्त्तमान बिहार के हिस्से सारण के हीं अंग थे. 1765 में अंग्रेजों को इस क्षेत्र में दीवानी का अधिकार मिल गया. यह दीवानी का अधिकार उन्हें बक्सर युद्ध में विजय के बाद प्राप्त हुई थी. जब पटना प्रमंडल बना तब सारण और चंपारण मिलाकर एक जिला बनाया गया. लेकिन फिर वर्ष 1866 में चंपारण और सारण अलग हो गये. पटना के सचिवालय पर 1942 के अगस्त क्रांति के समय सात वीरों ने तिरंगा फहराया था. इन सात वीरों में से दो वीर सारण जिले के हीं रहने वाले थे. इन दो वीरों में से एक का नाम उमाकांत प्रसाद सिंह था जो की सारण के नरेन्द्रपुर गाँव के रहने वाले थे. वहीँ दूसरे वीर का नाम राजेन्द्र सिंह था जो की बनवारी चक नया गाँव के रहने वाले थे. आगे चलकर इस जिले में सम्मलित सिवान 1972 में और गोपालगंज साल 1973 में सारण से अलग हो गए. जब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा देश में आपातकाल की घोषणा की गयी तब सारण जिले के हीं रहने वाले जयप्रकाश नारायण ने इसका विरोध किया था. लोकनायक जेपी ने पूरे देश में जनक्रांति की लहर पैदा कर दी थी. जिसका परिणाम सत्ता परिवर्तन देखा गया.

प्रसिद्ध व्यक्ति

चलिए अब आगे के चर्चा में हम बिहार के सारण जिले के प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में जानते हैं.

प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूची में हम सबसे पहले बात करेंगे जयप्रकाश नारायण की. इनका जन्म 11 अक्टूबर वर्ष 1902 में बिहार के सारण जिले के सिताब दियारा में हुआ था. ये स्वतंत्रता सेनानी होने के साथसाथ एक राजनेता भी थे जो इंदिरा गाँधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाने गये. इन्होने आपातकाल का भी जम कर विरोध किया था. इन्होने राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश में एक लोकनायक के रूप ख्याति प्राप्त की.

अब दूसरे प्रसिद्ध व्यक्तियों की सूचि में हम जानते हैं शहीद राजेन्द्र सिंह के बारे में. ये भी बिहार के सारण जिले के नया गाँव के रहने वाले थे. महात्मा गाँधी ने वर्ष 1942 में देश की आज़ादी के लिए अगस्त क्रांति का आवाहन शुरू किया था. इसी क्रांति के दौरान पटना के सचिवालय पर तिरंगा फहराने वालों में से एक क्रन्तिकारी राजेंद्र सिंह भी शामिल थे.

अब अंतिम में हम बात करते हैं उमाकांत प्रसाद सिंह के बारे में. ये भी पटना सचिवालय पर अगस्त क्रांति के समय झंडा फहराने वाले सात शहीदों में से एक थे. उमाकांत शहीद हुए इन सात वीरों में से एक होने के साथसाथ इनके नायक भी थे. इनका जन्म भी बिहार के सारण जिले के नरेन्द्रपुर गाँव में हुआ था.

कैसे पहुंचे

आइये अब अपने इस चर्चा में हम जानते हैं की सारण जिले के मुख्यालय छपरा में सड़क, रेल और हवाई मार्ग के जरिये कैसे पहुंचा जा सके.

  • सड़क मार्ग

तो अब अपने इस चर्चा में हम सबसे पहले बात करते हैं सड़क मार्ग की. बिहार के कई जिलों से इस जिले का सड़क मार्ग जुड़ा हुआ है. जिससे आप आसानी से इस जिले से बिहार के हर स्थान पर आसानी से जा सकते हैं. तो आइये हम जानते हैं की राजधानी पटना से छपरा कैसे पहुंचे. पटना से छपरा जाने के लिए वाया गरखामानपुर रोड के जरिये आप जा सकते हैं. यह सड़क आपको नयागाँव, मोलाहन, दिघवारा, परसा, गरखा और मीरपुर जौरा होते हुए सारण के छपरा मुख्यालय तक ले जाएगी. इसकी दूरी 68.5 किलोमीटर तक में है जिसे तय करने में लगभग दो घंटे तक का समय लग सकता है. जानकारी के लिए बता दें की जब आप सड़क मार्ग के जरिये सारण जा रहे हो और आपको BR 04 नंबर प्लेट वाले वाहन दिखने लगे तो समझ जाइये की आप सारण जिले में प्रवेश कर चुके हैं.

  • रेल मार्ग

यदि हम रेल मार्ग की बात करें तो सारण में छपरा जंक्शन मौजूद है. इस जंक्शन का स्टेशन कोड CPR है. छपरा जंक्शन के अलावे यहाँ छपरा ग्रामीण, छपरा कचहरी आदि स्टेशन भी मौजूद है. जिससे आप रेल मार्ग की यात्रा कर सकते हैं. यदि आप पटना से छपरा रेल मार्ग से आना चाहे तो कोई ट्रेन आपको नहीं मिलेगी. ट्रेन से छपरा आने के लिए आपको पाटलिपुत्र जंक्शन या हाजीपुर स्टेशन ऑटो बस या निजी वाहन के जरिये आना होगा. जो पटना से कुछ हीं दूरी पर स्थित है. जानकारी के लिए बता दें की पाटलिपुत्र जंक्शन से आपको छपरा के लिए साप्ताहिक ट्रेने हीं मिलेंगी.

  • हवाई मार्ग

वहीँ यदि हम इस जिले के हवाई मार्ग की बात करें तो सारण जिले का सबसे नजदीकी हवाई मार्ग पटना का लोकनायक जयप्रकाश नारायण एयरपोर्ट है. यहाँ भारत के कई मुख्य नगर और महानगर के लिए विमाने उड़ान भरती हैं और इस एयरपोर्ट पर लैंड करती है. फिर एयरपोर्ट से आपको कई गाड़ीयां या ऑटो मिल जायेंगे जो आपको पाटलिपुत्र जंक्शन या बस स्टैंड तक छोर देंगे. इसके अलावे आप निजी वाहन बुक कर के भी आप सड़क मार्ग के जरिये सारण आ सकते हैं.

कृषि और अर्थव्यवस्था

आइये अब हम अपने आगे के इस चर्चा में जानते हैं सारण जिले के कृषि और अर्थव्यवस्था के बारे में. इस जिले में कृषि लोगों के आय का मुख्य स्रोत है जो की यहाँ के अर्थव्यवस्था में अपनी अहम् भूमिका निभाता है. यहाँ धान, गेंहू, मक्का, चना, मसूर, अलसी के बीज और तिल आदि की खेती की जाती है. बता दें की यहाँ के किसान खेती के अलावे मत्स्य पालन, बकरी, मुर्गी और गाय पालन भी करते हैं. यहाँ के डेयरी उद्योग को सरकार द्वारा समग्र गव्य विकास योजना के जरिये बढ़ावा भी मिल रहा है. जो यहाँ के अर्थव्यवस्था में अपना अहम योगदान दे रहे हैं. सारण में बागवानी भी यहाँ के किसानो के आय का अच्छा स्रोत है.

पर्यटन

चलिए अब हम जानते हैं सारण जिले के पर्यटन के बारे में.

यदि हम इस जिले में रूचि के स्थान की बात करें तो पर्यटन की सूचि में हम सबसे पहले जानेंगे आमी मंदिर के बारे में. यह मंदिर सारण मुख्यालय छपरा से लगभग 37 किलोमीटर की दूरी और दिघवारा स्टेशन के पास स्थित है. आमी में एक बहुत पुराने अम्बे माँ की मंदिर है. इसकी चर्चा दुर्गा सप्तसती के आठवें अध्याय में भी किया गया है.मंदिर के अन्दर हीं एक गहरी कुंप है. इस कुंप का पानी कभी नहीं सूखता ना कभी भरता है. ऐसा कहा जाता है की श्रद्धालु यहाँ दूरदूर से अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और इस कुंप में जल डालते हैं. इस मंदिर में माँ अम्बे की पूरे विश्व में एक मात्र मिटटी की मूर्ति है. जो अब तक वैसी ही है.

अब दूसरे नंबर पर हम बात करते हैं यहाँ के सोनपुर में स्थित हरिहरनाथ मंदिर के बारे में. यहाँ कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एशिया का सबसे बड़ा अन्तराष्ट्रीय पशु मेला लगता है. इस मेले को देखने दूरदूर से लोग पहुँचते हैं.बता दें की सोनपुर का रेलवे स्टेशन बिहार के सबसे लम्बे रेलवे प्लेटफार्म में शामिल है. हरिहर नाथ मंदिर के अलावे यहाँ पर शिव मंदिर और काली मंदिर भी ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों में से एक हैं. छपरा से सोनपुर 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. आप छपरा से सोनपुर रेलवे मार्ग के जरिये भी जा सकते हैं.

 

छपरा मुख्यालय से 11 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित डोरीगंज बाज़ार के पास घाघरा नदी के पास हीं स्थित है. यहाँ पर खुदाई के समय चार हजार साल पुरानी विकसित संस्कृति का पता चला था. खुदाई के समय यहाँ पाषाण युग के चीजें देखने को मिली थी. नयी पाषाण युग के संस्कृति को पूरे भारत में सबसे पहले यहीं बताया गया था.

अब हम बात करते हैं छपरा से पांच किलोमीटर की हीं दूरी पर स्थित गौतम ऋषि आश्रम के बारे में. महाकाव्य रामायण में भी गौतम ऋषि का उल्लेख देखने को मिलता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक यहीं पर अहिल्या की शुद्धि हुई थी.

इसके अलावे सारण जिले में ढोढ आश्रम भी है. जो की सारण के परसागढ़ के उत्तर में स्थित है. यहाँ पर पुरातात्विक महत्त्व की कई चीजें देखने को मिल जाएँगी.

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