सनातन धर्मावलम्बियों के जनजन में बसे भगवान राम ने वनवास से पहले भी अपने भाई लक्ष्मण के साथ देश के कई हिस्सों में भ्रमण किया था. और शत्रुओं का विनाश किया था. सबसे पहले वे गुरुकुल गए थे और फिर उसके बाद ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के साथ वे वन में गए थे, जहाँ उन्होंने ऋषिमुनियों द्वारा किए जा रहे यज्ञ को दानवों से बचाया. राम जब अपने भाई लक्षमण के साथ विश्वामित्रजी के साथ धनुष यज्ञ में जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें गौतम ऋषि का निर्जन आश्रम मिला, जहां उन्होंने श्राप के कारण पाषाण अर्थात पत्थर बनी गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया. नमस्कार आप देख रहे हैं बिहारी न्यूज़. आज हम आपको बिहारी विहार के इस सेगमेंट में इसी स्थान के भ्रमण पर ले चलेंगे जो की आज भी मौजूद है, सीताजी की जन्मस्थली सीतामढ़ी से 40 किलोमीटर दूर पूर्व में यह स्थान स्थित है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि अहिल्यानगरी अथवा गौतम आश्रम मिथिला में ही था.

बिहार के दरभंगा जिले के सदर अनुमंडल के अंतर्गत आने वाला गाँव अहियारी, जिसे अहिरौली भी कहते है, यह गाँव अहिल्या उद्धार के स्थान के रूप में आज भी जाना जाता है. आप यहाँ कमतौल रेलवे स्टेशन से उतरकर पहुँच सकते हैं. शायद आपको मालूम हो की भोजपुर वह स्थान था जहाँ भगवान श्रीराम ने ताड़का का अंत किया था. उसके बाद वहां से अपने अनुज लक्ष्मण सहित ऋषि विश्वामित्र के साथ श्रीराम मिथिला राज्य में प्रवेश करके गौतम आश्रम पहुंचे थे.

रामायण के अनुसार यही वो स्थान है जहाँ अहिल्या का श्री राम ने उद्धार किया था. कहा जाता है कि श्री राम अपने भाई लक्ष्मण और महर्षि विश्वामित्रजी के साथ मिथिलापुरी के वन उपवन आदि देखने के लिए निकले तो उन्होंने जंगल में एक निर्जन स्थान देखा. जहाँ कुटिया जैसा दिखाई तो दे रहा था लेकिन वहां कोई ऋषि मुनि या फिर कोई लोग दिखाई नहीं दे रहे थे. यह देख राम ने विश्वामित्र जी से पूछा. भगवन यह स्थान देखने में तो आश्रम जैसा दिखाई देता है किंतु क्या कारण है कि यहां कोई ऋषि या मुनि दिखाई नहीं देते. इसके बाद ऋषि विश्वामित्र ने सारा वृतांत रामलक्षमण को बताया. उन्होंने कहा यह कभी महर्षि गौतम का आश्रम था. वे अपनी पत्नी के साथ यहां रहा करते थे. एक दिन जब गौतम ऋषि आश्रम के बाहर गए हुए थे तो उनकी अनुपस्थिति में इंद्र ने गौतम ऋषि के वेश में आकर अहिल्या से प्रणय याचना की. लेकिन अहिल्या ने इंद्र को पहचान लिया और स्वीकृति नहीं दी. इसके बाद जब इंद्र वापस लौट रहे थे. तभी गौतम ऋषि की दृष्टि इंद्र पर पड़ी, जो उन्हीं का वेश धारण किए हुए थे. फिर क्रोधवश उन्होंने इन्द्र को शाप दे दिया. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को भी शाप दिया और कहा कि तूम हजारों वर्षों तक केवल हवा पीकर कष्ट उठाती हुई यहां राख में पत्थर बनकर पड़ी रहोगी. जब राम इस वन में प्रवेश करेंगे तभी उनकी कृपा से तेरा उद्धार होगा. तभी तूम अपना पूर्व शरीर धारण करके मेरे पास आ सकेगी. यह कह कर गौतम ऋषि इस आश्रम को छोड़कर हिमालय पर जाकर तपस्या करने लगे.

यह घटना सुनाकर विश्वामित्र ने राम से कहा, हे राम ! अब तुम अन्दर जाओ और अहिल्या का उद्धार करो. विश्वामित्रजी की बात सुनकर दोनों भाई आश्रम के अन्दर गए. वहां तपस्या में निरत अहिल्या कहीं दिखाई नहीं दे रही थी, केवल उसका तेज संपूर्ण वातावरण में व्याप्त हो रहा था. वहां पाषाण बनी अहिल्या पर जब भगवान श्रीराम की दृष्टि पड़ी तो अहिल्या का उद्धार हो गया. श्रीराम के पवित्र दर्शन पाकर अहिल्या एक बार फिर सुंदर नारी के रूप में दिखाई देने लगी. नारी रूप में अहिल्या को सम्मुख पाकर राम और लक्ष्मण ने श्रद्धापूर्वक उनके चरण स्पर्श किए. अहिल्या का उद्धार हो चुका था और वे श्रीराम के दर्शन पाकर धन्य हो गई थीं. इसके बाद श्रीरामलक्ष्मण विश्वामित्रजी के साथ प्राग होते हुए उत्तर दिशा में चलकर विदेह नगरी जनकपुर पहुंचे थे.

और आज भी यह स्थान बक्सर शहर से पूर्व दिशा की ओर जाने पर अहिल्या के सबूत तपोभूमि अहिरौली में स्थित है. यहाँ एक बड़ा सा मंदिर स्थापित है. जिसमें भगवान रामसीता के साथ अहिल्या माता की पूजा भी होती है. जानकारी के मुताबिक यह देश का इकलौता मंदिर है जहाँ पुजारी के तौर पर महिला पुजारी मंदिर में पूजा करवाती हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. हर वर्ष यहाँ माता अहिल्या की पूजाअर्चना के साथ पांच दिन तक पंचकोशी मेले का आयोजन किया जाता है. पंचकोशी यात्रा की शुरुआत बक्सर के अहिरौली स्थित माता अहिल्या के मंदिर से शुरू होती है और पांच पड़ाव में पांच दिन चलकर खत्म होती है. इस मौके पर दूरदराज से हजारों श्रद्धालु अहिरौली में माता अहिल्या के मंदिर में आते हैं. अहिरौली में स्थित माता अहिल्या का मंदिर काफी प्राचीन है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवन श्री राम बक्सर पहुंचे थे तब पांच जगहों पर गए थे और उन्होंने तरहतरह के पकवानों के साथ स्वादिष्ट भोजन किया था. लिहाजा, प्रसाद के रूप में पहले दिन पहले पड़ाव अहिरौली में पुआ बनता है. लोग उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. प्रत्येक नवंबरदिसंबर महीने के पांच दिनों तक चलने वालों इस पंचकोशी मेले के आखिरी दिन लिट्टी चोखा बनाया जाता है और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. आज के दिनों में ये मेला लिट्टी चोखा मेले के नाम से भी काफी प्रसिद्धि पा रहा है. मंदिर में ही आंचल नृत्य की प्रथा सदियों से चली आ रही है. यही नहीं संतान की प्राप्ति के अलावा माना जाता है की यहाँ आने वाले असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए गोंड समुदाय के नर्तकों से साड़ी के आंचल पर नृत्य कराया जाता है और माता को प्रसन्न किया जाता है. इस तरह देवी अहिल्या आज भी वहां की लोक संस्कृति में स्थान रखती हैं. इस स्थान पर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं.

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