Bihar Mahaparv Chhath: बिहार का महापर्व ‘छठ‘; बिहारियों के लिए संस्कृति, परंपरा और भावना का प्रतीक
बिहार का महापर्व
फ़ीकी है रौनक इसके आगे संसार की,
छठ में देखिए संस्कृति हमारे बिहार की…
Bihar Mahaparv Chhath: कभी–कभी ऐसा होता है कि किसी सवाल का जवाब हम शब्दों से देने में सक्षम नहीं होते हैं, या यूं कहे कि सामने वाले को अपना जवाब समझा नहीं पाते हैं. कुछ ऐसा ही है यह सवाल कि छठ के क्या मायने है बिहारियों के लिए? इस पर्व में अपने घर आना बिहारियों के लिए बिल्कुल उतना ही उत्सुकता से सराबोर है, जितना किसी छोटे बच्चे को उसके नए खिलौने के आने से होता है. दूसरे प्रदेशों में बसे हुए बिहारी जब छठ में अपने घर आते हैं तो साल भर के काम की थकान घर आने मात्र से ही दूर हो जाती है. ‘छठ‘ की चर्चा होते ही बिहारियों की आंखों में चमक आ जाती है. छठ सिर्फ़ एक शब्द नहीं है, बल्कि यह सभी बिहारियों के भावनाओं से जुड़ा हुआ महापर्व है. यह पर्व बिहार की संस्कृति को बताता है. छठ पर्व से बिहार की परंपरा झलकती है. दिवाली ख़तम होते ही बिहारवासी छठ की तैयारियों में जुट जाते हैं. छठ की महिमा ही इतनी तेज़ है कि सभी लोग भावनात्मक रूप से इससे जुड़े हुए हैं. सिर्फ़ शब्दों से छठ के बारे में बयां कर पाना तो मुश्किल है. ये सिर्फ़ वही लोग समझ सकते हैं जिन्होंने बचपन से अपने घर में छठ पूजा होते देखी है, जिन्होंने नहाय–खाय का भात–दाल, लौकी और कदीमा की मीठी सब्जी खायी है, जिन्होंने खरना का प्रसाद, रोटी और चावल की गुड़ वाली खीर खायी है और छठ का महाप्रसाद ठेकुआ खाया है.
आस्था का प्रतीक है छठ
छठ पर्व यादों का वो पिटारा होता है, जिसमें बचपन से लेकर जवानी तक की यादें सिमटी होती हैं. वैसे तो छठ बिहार का महापर्व है लेकिन झारखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों पर भी इसे मनाया जाता है. छठ पर्व सभी बिहारवासियों के लिए आस्था, श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है. ठंड के मौसम में जो बच्चे सुबह नहीं उठते हैं, वह भी छठ के सुबह वाले अर्घ्य के लिए तीन बजे से ही उठकर घाट पर जाने के लिए नहा–धोकर तैयार हो जात हैं. उस वक़्त वातावरण इतना पवित्र होता है कि शरीर में अलग ही ऊर्जा आ जाती है. चारों तरफ़ बिहार की लोक गायिका शारदा सिन्हा के गीत बजते रहते हैं. उनकी आवाज़ से वातावरण और पावन लगने लगता है. सभी छठव्रती अपने घर, परिवार के लिए दो दिनों का उपवास रखती हैं. उपवास के दौरान ही छठव्रती महाप्रसाद बनाती हैं. ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा बहुत कठिन होती है.
बिहार में होता है अलग माहौल
छठ की असल परिभाषा वो समझ सकते हैं, जो बिहार से बाहर नौकरी करते हैं और साल भर इस इंतज़ार में रहते हैं कि छठ पूजा में घर आयें. घर से दूर रहकर नौकरी करने वाले छठ से 3-4 महीने पहले ही टिकेट की बुकिंग कर लेते हैं और छुट्टियों के लिए अप्लाई कर देते हैं. चूंकि, छठ पूजा के दौरान जो माहौल बिहार में होता है, वैसा माहौल बिहार से बाहर कहीं नहीं देखने को मिलता है. इसलिए छुट्टियों की किल्लत होती है. हर साल छठ में हज़ारों की तादाद में बाहर बसे हुए बिहारी या पढ़ने वाले छात्र–छात्राएं अपने घर आते हैं. छठ पर्व ही ऐसा है कि लोग इस त्योहार में बाहर रह ही नहीं पाते हैं. ये सभी को अपनी ओर खींच लेता है. लोग ऐसा भी कहते हैं कि छठ में बिहार आख़िर बुला ही लेता है. कुछ लोग छुट्टियां ना मिल पाने की वजह से घर नहीं आ पाते हैं. ऐसे लोगों को पता होता है कि छठ में घर ना जा पाने की तकलीफ़ क्या होती है? ये बेहतर तरह से समझते हैं छठ के मायने.
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