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महागठबंधन के इस चाल से क्या OUT हो जाएगी BJP?

Bihari News

देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर तैयारी लगभग शुरू हो गई है. बता दें कि डेढ़ साल के बाद आम चुनाव होना है. इस चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी तैयारियों में जुट गई है. 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर बीजपी बिहार पर सबसे ज्यादा जोर दे रही है. इसका एक मात्र कारण हैं नीतीश कुमार. नीतीश कुमार इस बार बीजेपी से अलग ही नहीं है वे बीजेपी के खिलाफ विपक्षी एकता को मजबूत करने की भी बात कह रहे हैं. ऐसे में बीजेपी चाह रही है कि किसी भी तरह से बिहार को इस बार साधा जाए ताकि विपक्ष की सीटें बिहार में कम हो सके. हालांकि राजनीतिक जानकार यह बताते हैं कि लालू और नीतीश की जोड़ी ने बिहार में कई राजनीतिक उठापटक को देखा है. कितनी सरकारों को गिरते देखा है कितनी सरकारों के बनाने में इन राजनेताओं का हाथ रहा है. ऐसे में एक बार फिर से बीजेपी को लग रहा है कि बिहार अगर हाथ से निकल जाता है तो फिर आने वाले समय में सत्ता में बने रहना मुश्किल हो सकता है. यही वह कारण हैं बीजेपी लगातार बिहार पर अपनी नजर बनाए हुए हैं. इसी महीने अमित शाह का बिहार दौरा है. उससे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का भी दौरा हुआ है. इतना ही नहीं बीजेपी ने उन लोकसभा सीटों को भी चिन्हित कर लिया है जहां उन्हें लग रहा है कि पार्टी यहां कमजोर है, इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.

आइए अब समझते हैं नीतीश कुमार और लालू यादव के उस गणित को जिसके सहारा बीजेपी को पटखनी देने का प्लान बना रहे हैं. बता दें कि बिहार की सियासत के बारे में यह कहा जाता है कि यहां जातिगत राजनीति सबसे ज्यादा होती है. ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां इसको भुनाना चाहती है. लेकिन लेकिन पिछले 32 सालों से बिहार कि सियायत में अतिपिछड़ा समाज से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज है.

महागठबंधन के लिए एक दूसरा सबसे बड़ा फैक्टर जो सामने आ रहा है कि वह है जाति आधारित गणना. बता दें कि 31 मई को जाति आधारित गणना समाप्त हो जाएगी. जिसके बाद बिहार में महागठबंधन की सरकार एक्शन के मोड में दिखना शूरू हो जाएगी. आपको बता दें कि बिहार मे वर्तमान में लगभग 52 प्रतिशत पिछड़े समाज के लोग रहते हैं. और देश में वर्तमान में 49.5 प्रतिशत आरक्षण का नियम है. इसमें पिछला समाज से आने वाले लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता है जबकि अति पिछड़ा समाज से आने वाले लोगों को 15 प्रतिशत का आरक्षण का लाभ मिलता है. तो वहीं अनुसूचित जनजाति से आने वाले लोगों को 7.5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता है उसके बाद आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग से आने वाले लोगों को 10 प्रतिशत का आरक्षण मिलता है.

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राजनीतिक जानकार यह बता रहे हैं कि बिहार में हो रहे जातिय जनगणना का आंकड़ा जब सामने आएगा तो उसमें पिछड़ा और अति पिछड़ा जातियों का प्रतिशत 52 फीसदी से ऊपर चला जाएगा. ऐसे पिछड़ा समाज का आरक्षण में बढ़ोतरी हो सकती है. कहा तो यह भी जा रहा है कि यह बढ़ोतरी 40 से 45 प्रतिशत तक हो सकती है. ऐसे में इस बढ़ोतरी का असर केंद्र सरकार पर भी पड़ने वाला है. क्योंकि केंद्र में 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने का नियम नहीं है. अगर जातिय जनगणना में पिछड़ा समाज के आरक्षण का आंकड़ा बढ़ता है तो केंद्र सरकार पर भी आरक्षण के प्रतिशत में बढ़ोतरी का दवाब बढ़ेगा. जिससे आने वाले चुनाव में बीजेपी को नुकसान हो सकता है. राजनीतिक जानकार यह बताते हैं कि पिछड़ा समाज में लगभग 17 प्रतिशत यादव हैं. लेकिन इसके बाद के 10 प्रतिशत और भी जातियां हैं जो लालू यादव को उतना पसंद नहीं करती है. लेकिन जातिय जनगणना के बाद उनके आरक्षण में प्रतिशत बढ़ता है तो महागठबंधन का यहां पूरा लाभ मिलने वाला है.

कहा तो यह भी जा रहा है कि अगर महागठबंधन का यह फॉर्मूला काम नहीं आया तो बीजेपी को यहां लाभ मिल सकता है लेकिन महागठबंधन पिछड़ा और अतिपिछड़ा समाज से आने वाली जातियां जैसे लोहार, कहार, कुम्हार, तांती, पटवा, नोनिया, धानुक इन जातियों को अगर महागठबंधन साधन में सफल हो गई तो फिर आने वाले समय में बीजेपी के लिए यह परेशानी खड़ा कर सकती है. ऐसे में यह कहा जा रहा है कि महागठबंधन इस बार जाति और जातिआधारित जनगणना के माध्यम से बीजेपी पर हमला बोल सकती है.

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