Chhath Puja Date 2024: कब मनाया जाएगा आस्था का महापर्व ‘छठ‘? यहां जानें नहाय–खाय से खरना तक की सही तिथि
36 घंटों का होता है निर्जला उपवास
Chhath Puja Date 2024: छठ (Chhath) सिर्फ़ आस्था का प्रतीक ही नहीं है. बल्कि, यह हमारे प्रदेश की संस्कृति को दर्शाता है. छठ महापर्व से सभी लोगों की भावनायें जुड़ी होती हैं. साल भर लोग छठ का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं. छठ पूजा नज़दीक आते ही लोग नदी किनारे घाटों की सफ़ाई करनी शुरू कर देते हैं. सफ़ाई के बाद घाटों को सजाया जाता है. छठ पूजा में ख़ासतौर से सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा होती है. छठ में डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है. यह महापर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. कड़कड़ाती ठंड में भी छठव्रती नदी में उतर कर सूर्य देवता को अर्घ्य देती है. छठी मैया की महिमा है ही इतनी अपरम्पार कि वह छठव्रती को शक्ति प्रदान करती हैं. हिन्दू धर्म में ऐसा माना जाता है कि छठ का व्रत करना सबसे कठिन होता है. छठव्रती खरना से लेकर उषा अर्घ्य तक यानी 36 घंटों के लिए निर्जला उपवास में रहती हैं. महिला के साथ–साथ कई पुरुष भी यह व्रत रखते हैं. दिवाली के छह दिनों के बाद यह पर्व आता है. इस पर्व की शुरुआत नहाय–खाय से होती है. पौराणिक मान्यताओं के हिसाब से, छठ पूजा करने से छठव्रती को सुख–समृद्धि, संतान की प्राप्ति, अच्छा स्वास्थ्य, आदि का आशीर्वाद प्राप्त होता है. छठ पर्व को कुछ और नामों से भी जाना जाता है, जैसे सूर्य षष्ठी, छठी और डाला छठ. छठ महापर्व चार दिनों का होता है.
छठ की तारीख़ व शुभ मुहूर्त
द्रिक पंचांग के हिसाब से, हर साल छठ पूजा का पावन पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. उदया तिथि के अनुसार, छठ पूजा 7 नवंबर यानी गुरूवार को ही मनाया जाएगा. चूंकि, इस बार षष्ठी तिथि 7 नवंबर को पूर्वाहन 12 बजकर 41 मिनट पर प्रारंभ हो जायेगी तथा शुक्रवार, 8 नवंबर को पूर्वाहन 12 बजकर 34 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा. इस साल 7 नवंबर को संध्या अर्घ्य और 8 नवंबर को उषा अर्घ्य दी जायेगी. छठ पूजा का आरंभ नहाय–खाय से होता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय–खाय की विधि की जाती है. इस साल नहाय–खाय मंगलवार, 5 नवंबर को है. नहाय–खाय के दिन छठ होने वाले घरों में बिना लहसुन–प्याज का खाना बनाया जाता है. इस दिन विशेष रूप से भात–दाल, लौकी व कदीमे की सब्जी और पकौड़े बनाये जाते हैं. छठ के दूसरे दिन खरना होता है. खरना, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. इस साल खरना बुधवार 6 नवंबर को है. इस दिन छठव्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं. उपवास के दौरान ही वें खरना का प्रसाद तैयार करती हैं. खरना के प्रसाद में घी लगी रोटी, गुड़ वाली चावल की खीर, केले, मूली और अदरक केले के पत्ते पर छठी माता को अर्पित किया जाता है. यह पूजा शाम में होती है. पूजा समाप्त होने के बाद छठव्रती खरना के प्रसाद को परिवार में बाँट कर फ़िर ख़ुद ग्रहण करती हैं.
उषा अर्घ्य से होती है समाप्ति
छठ का तीसरा दिन होता है संध्या अर्घ्य. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को संध्या अर्घ्य होता है. संध्या अर्घ्य इस साल 7 नवंबर को है. इस दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. नदी में उतर कर छठव्रती डूबते सूर्य को अर्घ्य देती है. प्रसाद के रूप में ठेकुआ, गागर नींबू, कसार, नारियल, ईंख, मिठाई, खाजा, आदि चीज़ें बांस से बने सूप या डाला में सूर्य देवता और छठी मैया को अर्पित की जाती हैं. घाट से आने के बाद डाला जगाया जाता है अर्थात सभी डालाओं पर दीप जलाकर, महिलाएं छठ के गीत गाती हैं. छठ का चौथा व आख़िरी दिन उषा अर्घ्य होता है. इस साल 8 नवंबर को उषा अर्घ्य है. इस दिन उगते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है. उषा अर्घ्य के साथ ही छठ पूजा का समापन हो जाता है. सूर्यदेवता को अर्घ्य देने के पश्चात घाटों पर छठवर्तियां वहां मौजूद लोगों में छठ के प्रसाद को बांटती हैं. इसके बाद अपने निर्जला उपवास को खोलकर पारण करती हैं.
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