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प्लासी युद्द के बाद क्यों हुई थी दुर्गा पूजा की शुरुआत

Bihari News

नवरात्री का त्योहार आते ही लोगों के मन में एक उत्साह उत्पन्न होता है. हर तरफ खुशी का माहौल देखने को मिलता है. माता के भक्त पूरे नौ दिनों तक भक्ति भाव के साथ माता रानी की अराधना करते हैं. इस दौरान पूजा पाठ और नियम का विशेष ध्यान रखा जाता है. कहा जाता है कि इस दौरान पूजा पाठ करने वालों को अलग ही ऊर्जा देखने को मिलती है. इस दौरान मंडप और पंडाल को बहुत ही आकर्षक रूप में सजाया जाता है. कहा जाता है कि पूरे देश में बंगाल में में माता की पूजा बड़े ही भव्य तरीके से मनाई जाती है. पंडालों को बड़े ही आकर्षक तरीके से सजाया जाता है. कहा जाता है कि आज जिस तरह से पंडालों को सजाया जाता है इन सब की देन बंगाल है और बंगाली समाज है. कहा जाता है कि बंगाल में सैकड़ों साल से दुर्गा पूजा की जा रही है. और इसी बंगाल से देश के दूसरे राज्यों मे दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई है. आगे हम दुर्गा पुजा से जुड़ी एतिहासिक और दिलचस्प कहानियों के बारे में जानेंगे…

तो चलिए अब जानते हैं दुर्गा के शुरुआत की पूरी कहानी के बारे मेंः- कहा जाता है कि दुर्गा पुजा का सबसे पहला आयोजन साल 1757 को प्लासी की लड़ाई के बाद हुआ था. इस लड़ाई में अंग्रेजों की जीत हुई और बंगाल के शासक नवाब सिराजुदौला की हार हुई थी. इसी जीत के बाद भगवान को धन्यवाद कहने के लिए पहली बार दुर्गा पुजा का आयोजन किया गया था. बता दें कि यह लड़ाई बंगाल के मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर गंगा नदी के किनारे प्लासी में लड़ी गई थी. यह लड़ाई उस समय के बंगाल के नवाब रहे सिराजुद्दौला और इस्ट इंडिया कंपनी की सेना के बीच हुआ था. जिसमें सिराजुद्दौला को हार का सामना करना पड़ा. इस लड़ाई को लेकर यह भी कहा जाता है कि सेना के प्रमुख बर्ट क्लाइव ने पहले ही शहर के कई बड़े अमीरों को अपनी तरफ कर लिया था. इसी जीत के बाद रॉबर्ड क्लाव भगवान को धन्यवाद देना चाहते थे. हालांकि इस समय तक सिराजुद्दौला ने उस इलाके के सभी चर्च को बर्बाद कर दिया था. यह सिर्फ प्लासी की जीत नहीं की यहीं से शुरू होता है अंग्रेजों का भारत में आगमन. रॉवर्ट क्लाइव के करीबी रहे राजा नव कृष्णदेव ने क्लाइव को कहा कि हम दुर्गा पूजा का आयोजन कर सकते हैं. कृष्णदेव के इस प्रस्ताव पर क्लाइव मान गया और इस तरह से पहली बार कोलकाता में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया. जिसे देखकर लोग दंग रह गए थे. इस समारोह में रॉवर्ट क्लाइव भी हाथी पर चढ़कर इस महोत्सव को देखने पहुंचे थे. साज सजावट और सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए वर्मा से लोग बुलाए गए थे.

इसके बाद से दुर्गा पूजा का चलन शुरु हो गया. उस समय के बंगाल के जमींदरों ने दुर्गा पूजा की शुरुआत कर दी. वे अपने घरों में दुर्गा पूजा करते थे. जिसे देखने के लिए आसपास के गांव के लोग वहां पहुंचते थे. इसी के बाद दूर्गा पूजा आम लोगों के बीच में भी प्रचलित होने लगा. और आज यह आम जन में बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है. ऐसे में आपके दिमाग में एक बात यह चल रहा होगा कि आखिर इसका क्या प्रमाण है कि 1757 में ही पहली बार दुर्गा पूजा हुआ था. तो इसके प्रमाण के रूप में इस बात का जिक्र किया जाता है जिसमें यह कहा जाता है कि अंग्रेजों की एक पेटिंग मिलती है जिसमें कोलकाता में दुर्गा पूजा को दिखाया गया. यह भी बताया गया है कि यह पेंदिंग राजा नव कृष्णदेव के महल में लगाया गया था. जिसमें कोलकाता में दुर्गापूजा की बात कही गई है. इसी पेटिंग के आधार पर यह कहा जाता है कि कोलकाता में पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया था. कहा तो यह भी जाता है कि साल 1757 के बाद साल 1790 में राजाओं और जमींदारों के द्वारा नदिया जनपद के गुप्ती पाढ़ा में सामुहिक दुर्गा पूजा का आयोजन किया गया था. उसी के बाद यह आम लोगों के बीच में लोकप्रिय होता चला गया. लेकिन एक बात यह भी है कि अगर आप 1757 में पहली बार दुर्गा पूजा की बात अगर नहीं भी मानेंगे तो इस बात को आप जरूर मानेंगे की पहले यह जमींदारों की पूजा हुआ करती लेकिन समय के साथ यह आम लोगों के बीच में काफी लोकप्रिय हो गया.

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