पृथ्वी पर पर्यावरण संरक्षण एवं प्राकृतिक जलवायु को स्वयं पालन कर दूसरों के लिए प्रतिमान नागरिकों का प्रथम उत्तरदायित्व है. इस विचार पर चलकर अपने प्रयास से पौधारोपण का समन्वय करते हमेशा देखे जाते हैं डॉ. संदीप वर्मा एवं श्रुतिकीर्ति निरंजन. डॉ. वर्मा का परिवार पर्यावरणीय चेतना का अनूठा तथा व्यावहारिक उदाहण है. उनका आवास पेड़-पौधों से अधिकाधिक आच्छादित है और वे मानते हैं कि यह उपक्रम उन्हें और आसपास बेहतरीन ऑक्सीजन का स्रोत है. उनके आवास में जल संरक्षण हेतु उचित प्रबंधन है तथा वे शून्य जल अपव्य में रहते हैं जिसमें खाना बनाते व बर्तन समय साफ-सफाई का पूरा पानी पौधों को आपूर्ति देते हैं. यही नहीं फल-सब्जी आदि के छिलकों से जैविक खाद का निर्माण कर मिट्टी का संरक्षण भी सरलता से कर लेते हैं. इसके अलावा उनके जतन से ग्रीन टी व अनेक मसालों की उपज सामान्य फल-फूल के उगाने से अधिक उपयोगी भी साबित होता है.
पयार्वरण को शीर्ष महत्व देते हुए यह परिवार कई प्रजातियों के दुर्लभ पौधे व वनस्पति को उपजाने में सफल हुए हैं. उनके परिवार में श्रीमती श्रुतिकीर्ति निरंजन, पुत्र सार्थक और पुत्री संस्कृति व छोटे भाई सुधीर सहित प्रतीक यज्ञसैनी भी अपनी भूमिका में पर्यावरण के प्रखर संरक्षक हैं. इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जून के इस गर्म मौसम में भी उनकी ‘कर्मयोग वाटिका’ में 156 प्रजाति के पौधे व वनस्पतियां उपलब्ध हैं. वहीं शीत ऋतु में मौसमी पौध की संख्या बढ़कर 200 से अधिक प्रकार के होते हैं.
यह परिवार प्रकृति सेवा हेतु अग्रणी भूमिका निभाते हुए आसपास और अपने इष्ट मित्रों को सदैव पौधों को गिफ्ट करता हैं. यही नहीं इससे पहले इस परिवार ने कूड़े-कचरे के भरे एक बड़े स्थान को हरी भरी वटिका में परिवर्तन करने का निज प्रयास कर पयार्वरणीय प्रेम को सार्थक किया है. साथ ही कॉलोनी की सड़कों के किनारे वृक्षारोपण कर छांवदार सड़क का भावी सपना भी देखा है. इन प्रयासों के लिए प्राय: वर्धावासी व आगंतुक उन्हें साधुवाद देते हैं और प्रेरणा हेतु यत्न पर चर्चा करते हैं. पेशे से जनसंचार विषय के सहायक आचार्य डॉ. वर्मा प्राकृतिक चिकित्सा के विशिष्ट अनुपालक भी हैं. वे मानते हैं कि हम नागरिकों को भारतीय संविधान के 51 A (g) में भी पर्यावरणीय कर्तव्य का पालन करना चाहिए. धरती को संरक्षति करने के लिए वे ग्रीन-बेल्ट मुहिम के तहत सदैव गतिशील रहकर वन, झील-नदी और वन्य जीव संरक्षण व संवर्धन हेतु कार्य करते रहते हैं.