fact behind capsules: जब हम किसी भी कैप्सूल को देखते हैं, तो अक्सर उसका रंग दो हिस्सों में बंटा हुआ होता है — ऊपर का हिस्सा एक रंग में, और नीचे का हिस्सा किसी और रंग में। यह सिर्फ़ एक डिज़ाइन का मामला नहीं है, बल्कि इसके पीछे सोचसमझकर की गई प्लानिंग, विज्ञान और इंडस्ट्री की जरूरतें छुपी होती हैं।

कैप्सूल दो मुख्य हिस्सों से मिलकर बनता है — पहला होता है कैप (यानि ढक्कन वाला हिस्सा) और दूसरा बॉडी (जिसमें दवाई भरी जाती है)। बॉडी में दवा को भरा जाता है, और कैप उसे सील करता है ताकि दवा बाहर न निकले और उसकी शेल्फ लाइफ बनी रहे। अब सवाल ये है कि इसके लिए दो अलगअलग रंगों की जरूरत क्यों पड़ी?

1. उद्योग में आसान पहचान और दक्षता

फ़ैक्ट्री में हजारोंलाखों कैप्सूल्स हर दिन बनाए जाते हैं। ऐसे में मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस को सरल और तेज़ रखने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि कैप और बॉडी को आसानी से पहचाना जा सके। दो अलगअलग रंगों की वजह से वर्कर्स तुरंत समझ जाते हैं कि कौन सा हिस्सा भरने वाला है और कौन सा बंद करने वाला। इससे प्रोडक्शन लाइन में गड़बड़ी के चांस बेहद कम हो जाते हैं।

2. ब्रांड की पहचान और बाज़ार में अंतर

हर दवा कंपनी चाहती है कि उनकी दवाइयाँ बाजार में बाकियों से अलग दिखें। कैप्सूल का रंग एक तरह से कंपनी की ब्रांडिंग का हिस्सा बन गया है। कुछ कंपनियाँ तो खास रंग संयोजन (color combination) को ट्रेडमार्क भी करवा लेती हैं। जैसे एक नज़र में आप किसी कैप्सूल को देख कर कह सकें — अरे! ये तो उसी कंपनी की दवा है!” यह एक तरह से ब्रांड की दृश्य पहचान (visual identity) बन जाती है।

3. उपयोगकर्ता की मदद और भरोसा

दो रंगों वाले कैप्सूल मरीजों के लिए भी फायदेमंद होते हैं। जब कोई व्यक्ति रोज़ाना कई दवाएं लेता है, तो अलगअलग रंगों के कैप्सूल उसे याद रखने और पहचानने में मदद करते हैं। इससे ओवरडोज़, मिसिंग डोज़ या दवाओं की अदलाबदली से बचा जा सकता है। मरीजों का भरोसा भी बढ़ता है क्योंकि उन्हें लगता है कि दवा पेशेवर ढंग से तैयार की गई है।

4. सुरक्षा की दृष्टि से

कई बार नकली दवाओं की समस्या सामने आती है। दो रंगों वाला कैप्सूल बनाना तकनीकी रूप से थोड़ा मुश्किल और महंगा होता है। एक सामान्य कंपनी या नकली उत्पाद बनाने वाला इतनी इन्वेस्टमेंट नहीं कर पाता। इससे असली और नकली दवा में फर्क करना आसान हो जाता है, और यह नकली दवाओं के खिलाफ एक तरह का रक्षा कवच बन जाता है।

5. कितना खर्च होता है?

आपको जानकर हैरानी होगी कि कैप्सूल को दो रंगों में तैयार करने के लिए कंपनियाँ लगभग 5 लाख रुपये का अतिरिक्त खर्च उठाती हैं। इसमें कलर सप्लाई, मशीनरी अडजस्टमेंट और स्पेशल मोल्ड्स आदि का खर्च शामिल होता है। लेकिन यह खर्च उन्हें लॉन्ग टर्म में गुणवत्ता, विश्वसनीयता और ब्रांडिंग में कई गुना रिटर्न देता है।

तो अगली बार जब आप कोई दो रंगों वाला कैप्सूल देखें, तो उसे सिर्फ एक रंगबिरंगी गोली न समझें। उसमें विज्ञान, रणनीति, सुरक्षा और बिजनेस की पूरी कहानी छिपी होती है। यह छोटीसी चीज़, बड़े स्तर पर सोचसमझ के साथ बनाई गई होती है — ताकि आप सुरक्षित रहें, और दवा सही तरीके से अपना काम कर सके।

आपने कभी सोचा है कि दवाओं का रंग अलगअलग क्यों होता हैं?

 

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