gaya ka tilkut: क्यों बिहार के गया का तिलकुट है विश्व प्रसिद्ध? कैसे हुई थी इसकी शुरुआत?

मकर संक्रांति मनाने की परंपरा पूरे भारत में है. हर राज्य के लोग इस त्योहार में अपने तरीके से मनाते हैं. इस पर्व की सबसे ख़ास बात होती है, तिलकुट. तिलकुट को आपमें से कई लोग अलगअलग नाम से भी जानते होंगे. अगर आपने तिलकुट का स्वाद चखा है तो बिहार के गया जिले के तिलकुट के बारे में जरुर जानते होंगे. बिहार के गया का तिलकुट न केवल देश बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है. ठंड का मौसम आते ही गया शहर की गलियों में तिलकुट की सोंधी सी खुशबू फैलने लगती है। यहाँ पर तिल, गुड़ और चीनी से तिलकुट तैयार किया जाता है। गया में इस व्यवसाय से हजारों लोग जुड़े हुए हैं, जिससे कई लोगों का पालन पोषण हो रहा है। यहाँ तिलकुट बनाने का सिलसिला हर साल 15 नवंबर से शुरू होकर मकर संक्रांति तक चलता है. दो से तीन महीने के इस व्यापार से कई लोगों का बेहतर गुजारा हो पाता है

gaya ka tilkut

गया शहर के बाजारों में तिलकुट के कई प्रकार के बनाए जाते हैं, और हर बाजार का तिलकुट अपनी विशेषता रखता है। लेकिन क्या आपको पता है कि गया में कहाँ से और इसकी शुरुआत हुई थी? अगर नहीं, तो आपको बता दें कि गया के मोहनपुर प्रखंड के डंगरा गांव में तिलकुट की शुरुआत मानी जाती है, और यहां का गुड़ से बना तिलकुट देशविदेश में भी काफी प्रसिद्ध है। वहीं, टिकारी में शक्कर से बने तिलकुट की भी अपनी अलग पहचान है। अब गया शहर में भी बड़े पैमाने पर तिलकुट का व्यवसाय बढ़ चुका है, और यहां आने वाले पर्यटक भी इसे बेहद पसंद करते हैं। तिलकुट की खास बात यह है कि अगर इसे सही तरीके से पैक किया जाए, तो यह लम्बे समय तक ताजा रहता है।

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मकर संक्रांति के दिन तिल का महत्व विशेष रूप से बढ़ जाता है, और हिंदू धर्म में इस दिन तिलकुट बनाने, खाने और दान करने की परंपरा है। इसलिए, मकर संक्रांति के दौरान लोग तिल के लड्डू या तिलकुट बनाते खाते हैं और एकदूसरे को बांटते हैं। गया का तिलकुट न केवल भारत, बल्कि विदेशों में भी बहुत प्रसिद्ध है। हालांकि, बिहार के अन्य हिस्सों में भी तिलकुट मिलता है, लेकिन गया का तिलकुट अपने स्वाद और खुशबू के लिए अपनी एक अलग पहचान बनाता है। गया के तिलकुट की खासियत यह है कि यह बहुत ही खस्ता और करारा होता है। यह इतना खस्ता होता है कि हल्का सा दबाने पर भी यह टूट जाता है। कहा जाता है कि गया के पानी और जलवायु का ही असर है, जो तिलकुट को इतना खस्ता और स्वादिष्ट बनाता है। गया के कारीगरों को कई अन्य राज्यों में ले जाकर तिलकुट बनाने के लिए कहा गया, लेकिन दूसरे जगहों पर ये कारीगर वहीँ स्वाद और खस्तापन वाले तिलकुट को बना नहीं पाए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वहां की जलवायु और वहां का वातावरण गया जैसा नहीं था।

इसी कारण गया का तिलकुट अपने स्वाद, खुशबू और खस्तेपन में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यही वजह है कि तिलकुट का यह व्यावसायिक रूप न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी गया के नाम से पहचाना जाता है। मकरसंक्रांति के दौरान खाया जाने वाला यह तिलकुट न केवल एक मिठाई है, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर भी बन चुका है, जो ठंड के मौसम में लोगों की पसंदीदा बन जाती है।

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