पुरे भारत में प्रत्येक वर्ष जितना बाढ़ आता है उसका 60 प्रतिशत केवल बिहार में आता है जिसका सबसे बड़ा कारण कोसी नदी है जिसे “बिहार का शोक ” भी कहा जाता है. कोसी के बारे में कहा जाता है की यह हमेसा एक समय के बाद अपनी धारा बदलते रहती है और उसकी यही बदलती धारा बिहार के विकास की धारा को अपनी बाढ़ की पानी से पीछे धकेल देती है.
आज हम जानने कि कोशिस करेंगे की आखिर क्यों, कब और कैसे कोसी नदी बिहार का अभिशाप बन गई.
कोसी नदी का इतिहास काफी पुराना है महाभारत और रामायण में भी इसका वर्णन कौशिक नदी के नाम से किया गया है. कोसी नदी नेपाल में हिमालय से निकलती है और बिहार में भीम नगर के रास्ते से भारत में दाखिल होती है और वहां से 260 किलो मीटर की यात्रा कर कुर्सेला के पास गंगा में मिल जाती है. नेपाल में, कोशी नदी कंचनजंगा के पश्चिम में स्थित है. इसकी सात प्रमुख सहायक नदियाँ सूर्य कोशी, तम कोशी , दुध कोशी, इंद्रावती, लिच्छू, अरुण और तामार हैं एवं इन्ही के कारण नेपाल में इसे सप्तकोसी नदी के नाम से जाना जाता है.
बिहार में “शोक नदी” के नाम से पहचानी जाने वाली कोसी नदी अपनी धाराओं में बदलाव कर हर साल विनाशलीला का नया तांडव दिखाती रही है. इसकी मचलती धाराओं ने न सिर्फ दिशा बदली बल्कि हर बार एक बड़े भूभाग को आगोश में लेकर विनाश की नई कहानी लिखी है. तेजी से धारा बदलने के लिए बदनाम कोसी 1731 में फारबिसगंज पूर्णिया के पास बहती थी जो पश्चिम की ओर खिसकती चली गई.1882 में मुरलीगंज होते हुए 1922 में मधेपुरा और फिर 1936 में सहरसा, दरभंगा, मधुबनी पहुंच गई.इस तरह ढाई सौ साल में इसने 120 किलोमीटर पूरब से पश्चिम की ओर अपना विस्तार कर लिया .
कोसी को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश शासन के समय से ही कई प्रयास किये गए. लेकिन भारत के स्वतन्त्रता के बाद 1954 में बांध बना कर इसे एक दिशा में बहाने का प्रयास किया गया.1959 इसे तटबंधों में इसीलिए कैद किया गया कि इसकी आक्रामकता कम हो जाए. 126 किमी पूर्वी तथा 122 किमी पश्चिमी तटबंध का निर्माण कराया गया. लेकिन मचलती और धारा बदलने में माहिर कोसी ने बांधो में बधना स्वीकार नहीं किया और अब तक सात बार बांध तोड़ कर तबाही मचा चुकी है. खगड़िया, मधेपुरा, पूर्णिया, सुपौल सहित कई जिलों में इसने तबाही मचाइ है.
1959 में 56 फाटकों वाले 1149 मीटर लंबे कोसी बराज का निर्माण कराया गया. इस बराज का मकसद था की कोसी में पानी का दबाव कम करने के लिए इसके पानी को सहरसा, पूर्णियां, मधेपुरा, कटिहार आदि जिलों में 2269 लाख एकड़ क्षेत्रफल में करीब 2887 किमी लंबी नहरों का जाल बिछा कर सिंचाई में इसका भरपूर उपयोग किया जा सके. लेकिन पहले 1963 और फिर 1968 में कोसी ने बांध तोड़ अपनी धाराओं में बदलाव जारी रखा. मार्च 1966 में अमेरिकन सोसायटी आफ सिविल इंजीनियरिंग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कोसी नदी के तट पर 1938 से 1957 के बीच में प्रतिवर्ष लगभग 10 करोड़ क्यूबिक मीटर तलछट यानि गाद जमा हो रहा था. आशंकाएं जताई गई थीं कि बैराज निर्माण के बाद भी तलछट जमा होने के कारण कोसी का किनारा ऊपर उठ रहा था और बाद में पानी का दबाव बढ़ने से बांध टुटा.
हालांकि कोसी की विनाशलीला की नई कहानी अभी बाकि थी जो उसने 2008 में लिखी. 18 अगस्त 2008 को नेपाल के सुरसारी जिले के कुसहा में कोसी के पूर्वी तटबंध टूट गए. तटबंध टूटने से आई बाढ़ से उत्तरी बिहार तबाह हो गया. 500 से ज्यादा लोगों की जानें गई थीं. जबकि 25 लाख लोगों के विस्थापित होने का अनुमान है. मरने और विस्थापित होने वाले आंकड़े निश्चित रूप से इससे कहीं ज्यादा होंगे. कहते है की इस बाढ़ ने बिहार को 5 साल पीछे धकेल दिया था.
कोसी पर कई लोगो ने अध्यन किया है. उन्ही में से एक टीम है- पांडुरंग हेगड़े , गोपाल कृष्णा , डी. के मिश्रा , सुधीरेन्द्र शर्मा, लक्ष्मण सिंह और राकेश जयसवाल की. इन्होने बिहार में बाढ़ का अध्यन कर जो रिपोर्ट पेश की है उसमे यह साफ कहते है की बिहार में बाढ़ का हल तटबंध नहीं है. इनके अनुसार तटबंधो ने बाढ़ के साथ हर साल आने वाली लगभग 925 लाख क्यूबिक मीटर मिटटी , गाद इत्यादि को खेतों में जाने से रोक दिया है. गाद जमा होने के कारण नदी की ऊंचाई लगभग 4 मीटर ऊपर उठ गई है. इस दाल के मुताबिक तटबंधो की वजह से आज बिहार में बाढ़ संभावित इलाका 25 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 69 लाख हेक्टेयर हो गया है. इनका मानना है की भविष्य में भी कोसी नदी बांधो को तोड़ कर अपना रास्ता बदले रहेगी.
इस टीम की रिपोर्ट में दम है क्यों की तटबंध बनाने के बाद 1968 ,1971, 1980 , 1984, 1987 ,1991 ,2008 में तटबांध टूटने की घटनाएँ हुई. इतने कम अंतराल में तटबंध टूटने की यह घटना यह साबित कर रही है की बाढ़ नियंत्रण के उद्देश्य को यह तटबांध पूरा नहीं कर रहा है. 2016 के बाद से कोसी नदी का दबाव पश्चिमी तटबांध पर लगातार बढ़ता जा रहा है. इसके अलावे प्रत्येक वर्ष बारिश के मौसम में कोसी उफान में रहती है और हर साल ना जाने कितने लोग इसके विकरालता के शिकार हो जाते है.