एक ख़ुफ़िया महल जिसके अन्दर थी 52 गलियाँ 56 बाजार
कोसो दूर तक हुआ करती थी जिसकी खूबसूरती के चर्चे
लेकिन फिर पड़ गई मुगलों की काली नज़र
और अब 400 सालो से अंतिम साँसे ले रही है
गौरवशाली परमार वंश की ये आखिरी निशानी
बिहार का बक्सर जिला, यूँ तो बक्सर युद्ध के लिए जाना जाता है. जिसे हम और आपने किताबों में खूब पढ़ा है. लेकिन आज हम बिहारी विहार के इस सेगमेंट में आपको लेकर चलेंगे नया भोजपुर में स्थित नवरतन गढ़ का किला जो अब आखिरी साँसे ले रही है. जिसका इतिहास तो गौरवशाली है जिसकी दीवारें आज भी कहती है समय है मुझे बचा लो. आधुनिकता के इस दौर में भले ही यह शहर खुद को स्थापित करने में सफल हो गया हो लेकिन इतिहास को संजोए रखना इस शहर ने शायद ही सीख पाया. लोगो के शोर शराबा, हँसी ठिठोली, वाद विवाद और मुस्कानों से गुलजार इस शहर की आज भी कुछ विरासत मरणशय्या पर पड़ा है. ऐसी ही विरासतों में आज हमने ढूंढ निकाला है बक्सर के नवरतन गढ़ किले को जो किले के नाम पर अब बस टूटी फूटी दीवारों तक सीमित रह गया है.
बक्सर जिले में स्थित नया भोजपुर अपने अन्दर कई रहस्यों को समेटे हुए है इस बात को प्रमाणित करता है यहां स्थित नवरत्न गढ़ का किला. डुमरांव स्टेशन से लगभग तीन किलो मीटर और जिला मुख्यालय बक्सर से 16 किलोमीटर दूर इस किले के आस–पास तीन से चार सदियों में नया गांव बस गया. जिसका नाम नया भोजपुर रखा गया. इतिहास के पन्नों से इतिहासकारों का मानना है कि उज्जैन से परमार वंशीय राजा का विस्थापन 14वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षो में हुआ। यह लगभग 1320 ई. की घटना है, तब तक मालवा पर दिल्ली के सुल्तान का कब्जा हो चुका था। परमार वंशीय राजा भोज वंशज के नेतृत्व में पूरब की ओर प्रस्थान कर बिहार मे सोन के पश्चिम तट पर अपना डेरा जमाया। उसी समय भोज राज के पुत्र देवराज ने अपने पिता के नाम पर भोजपुर नामक एक गांव बसाया। इस भोजपुर का संबंध महाराजा भोज एवं परमार वंशीय राजा भोजराज के साथ खून के रिश्ते का था। क्योंकि महाराज भोज की परवर्ती पीढ़ी में ही राजा भोज का जन्म हुआ था। इसी परमार वंश में राजा रूद्र प्रताप सिंह पैदा हुए। कला संस्कृति के प्रेमी इस राजा ने भोजपुर से लगभग तीन किलोमीटर दूर गंगा के मुख्य तट पर अपनी राजधानी और राजमहल के लिए स्थल का चयन किया। कला प्रेमी राजा की देखरेख व हजारों श्रमिकों के वर्षो लगातार परिश्रम से नवरत्नगढ़ किला वर्ष 1633 ई. में बनकर तैयार हुआ। इस किले के के बारे में प्रसिद्ध है कि इसके अंदर 52 गलियां और 56 बाजार थे . इसका दुर्भाग्य रहा कि इस पर मुगल शासक की नजर पड़ गई. इस किले की लोकप्रियता और वैभव शाहजहाँ हो रास नहीं आई. इतिहासकारों का मानना है की थोड़ी सी अनबन पर शाहजहाँ ने परमार वंश के शाषक राजा रूद्र प्रताप नारायण singh को बागी घोषित कर बंदी बना लिया और अजीमाबाद भेज दिया जो उस समय पटना में हुआ करता था. और महज तीन साल के अन्दर बिहार का मुगल सुबेदार अब्दुल्ला खां ने इसे ध्वस्त करा दिया. बाद में मुगल शासन काल के सईद खान का बेटा बैमतखान शाही अमलदार के रुप में भोजपुर आया. नवरत्न किला की मिट्टी और पत्थर से किला के पश्चिम एकरोजाएरिजवान बनवाया. जिसने भोजपुर का नाम शाहाबाद रखा. 1764 के बाद अग्रेजी हुकूमत ने इस इलाके पर कब्जा किया जिसके बाद शाहाबाद जिला बना. जिसके आज चार हिस्से हैं. आरा, बक्सर, सासाराम और भभुआ. शाहाबाद जब विभाजित हुआ. उससे पहले तक शाहाबाद –भोजपुर और अब भोजपुर जिला आरा के नाम से जाना जाता है.
गांव धीरे–धीरे फैलता गया और किले को निगलता चला गया. इससे 100 से 200 मीटर की दूरी पर ही एक और खंडहर है जो की भूल– भुलैया के नाम से अभी भी जाना जाता है. कहा जाता है की नया भोजपुर गांव के विद्यालय भी किले की जमीन पर ही बना है ऐसे में आप समझ सकते हैं की यह किला कितना भव्य था. तीन वर्ष पहले जब विद्यालय के लिए अतिरिक्त भवन बनाने के लिए नीव खोदने का काम हो रहा था. उस समय नीचे इमारत होने की बात सामने आई. खुदाई में एक कमरा मिला. पूरी तरह मिट्टी के नीचे दफन था. आज भी इसके बचे अवशेष व खुदाई के दौरान मिले खुफिया गुफा के दरवाजे किले के अतीत को जिन्दा रखा है.
अगर आप सोच रहे हैं की यहाँ क्यूँ जाए तो आपको कहना चाहूंगी की यूं तो ये किला काफी हद तक ध्वस्त हो चुका है पर आज भी इसकी टूटी दीवारें गौरवशाली इतिहास होने का एहसास करवाती है. उन टूटी इमारतों के आगे भी आपकी तस्वीर अच्छी आएगी. यहां का वातावरण शांत और शीतल रहता है जिस से लोगों को ये आकर्षित करता है.