places to visit in bihar: ये जिला बनेगा बिहार का स्विट्जरलैंड, अधिकारियों ने किया खुलासा
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के अधिकारियों और विशेषज्ञों की एक टीम ने राजगीर के गिरियक पर्वत श्रृंखला का पुनर्विलोकन किया, जो 2009 के बाद पहली बार हुआ। इस प्रक्रिया की अगुवाई करने वाले अधीक्षण पुरात्विद सुजीत नयन ने बताया कि गिरियक स्तूप की मरम्मत और साफ सफाई के अलावा कई अन्य संरचनाओं की भी देखभाल की जाएगी। यह कार्य क्षेत्र की ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहर को संरक्षित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। इस पुनर्विलोकन के दौरान एक प्रमुख खोज के रूप में एक प्राचीन विशाल जल भंडारण टैंक मिला, जो लगभग 50 वर्गमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह टैंक पत्थरों को काटकर और तराशकर बनाया गया था, जो इसके निर्माण कौशल और उस समय की तकनीक को दर्शाता है। इस टैंक को साइक्लोपियन वॉल के समकालीन माना जा रहा है, क्योंकि यह टंकी साइक्लोपियन वॉल के पास स्थित है, जो एक ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है।
इसके अलावा, एक और महत्वपूर्ण खोज इस क्षेत्र में एक विशाल बौद्ध मठ मंदिर की संरचना थी, जिसका क्षेत्रफल लगभग 100 वर्गमीटर था। यह संरचना स्तूप के नीचे से लगभग 100 फुट ऊंची प्रतीत होती है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को और बढ़ाती है। इसके बाद एक और नक्काशीदार स्तूप भी पाया गया, जो इस क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। इन सभी संरचनाओं के ठीक पीछे घोड़ा कटोरा पहाड़ी झील और सामने पंचाने नदी का सुंदर दृश्य है, जो इस स्थल को एक आदर्श पर्यटन स्थल बनाता है। इस क्षेत्र को एक पैकेजिंग टूरिज्म स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है, जो पर्यटकों को न केवल ऐतिहासिक महत्व की जानकारी प्रदान करता है, बल्कि प्रकृति के अद्भुत दृश्य का भी आनंद लेने का अवसर देता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीक्षण पुरातत्वविद सुजीत नयन ने इस क्षेत्र की सुंदरता को “बिहार का स्विट्जरलैंड” करार दिया, जो एक दिलचस्प और आकर्षक दृष्टिकोण है।
गिरियक पर्वत श्रृंखला का ऐतिहासिक महत्व बहुत पुराना है। 2009 में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ हुई एक बैठक के दौरान इस क्षेत्र के विकास और जीर्णोद्धार के लिए योजनाएं बनाई गई थीं। उसी समय सुजीत नयन ने इसे “बिहार का स्विट्जरलैंड” कहकर क्षेत्र की अद्वितीयता को पहचाना था। यहां के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को देखते हुए, यह स्थल पर्यटन के लिहाज से भी बहुत आकर्षक बन सकता है।इस क्षेत्र में मौजूद इंद्रशाल गुहा भी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, जहां बुद्ध और इंद्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ था। इस स्थान पर पुरातत्व खुदाई से मिले अवशेषों से पता चलता है कि यहां पाषाण काल की सभ्यता से लेकर मुगल काल तक के अवशेष पाए गए हैं। इस क्षेत्र का प्राचीन नाम गिरिव्रज था, जो इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है।
इस पुनर्विलोकन में अधिकारियों ने यहां की संरचनाओं, जल टंकी, और स्तूप की मरम्मत और सफाई का कार्य शुरू करने की योजना बनाई है। इस कार्य में कई विशेषज्ञ और पुरातत्वविद शामिल हैं, जिनमें सेवानिवृत्त सहायक अधीक्षण पुरातात्विक अभियंता राधा क्रिस्टो और सहायक अधिक्षण पुरातात्विक अभियंता भानु प्रताप सिंह भी शामिल थे। इस प्रकार, यह कार्य इस ऐतिहासिक स्थल को संरक्षित करने और पर्यटन के विकास के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।