proud to be bihari: बांया हाथ न होने के बाद भी बिहार की बेटी ने राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान, थाईलैंड में गोल्ड किया अपने नाम
अभी हाल में हीं बिहार की रहने वाली गोल्डी काफी चर्चा में है, जिन्हें ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार‘ से राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया. यह सम्मान उन्हें उनके खेल के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए दिया गया है। बिहार के नालंदा की रहने वाली गोल्डी कुमारी ने थाईलैंड में आयोजित विश्व पैरा ओलंपिक यूथ गेम्स में स्वर्ण और कांस्य पदक जीतकर अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष को साबित किया था। गोल्डी की कहानी और भी प्रेरणादायी तब हो जाती है, जब अपना एक हाथ खोने के बावजूद भी उन्होंने हार नहीं माना. उनके इस प्रेरणादायी कहानी की हम आगे चर्चा करेंगे. उससे पहले, गोल्डी का चयन जब इस पुरस्कार के लिए हुआ, तो उन्हें इसकी जानकारी ई–मेल के जरिये दी गई। जब गोल्डी को यह सम्मान प्राप्त हुआ, तो उसके परिवार की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। बिहार सरकार ने भी इससे पहले गोल्डी को सम्मानित किया था, और अब इस राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ गोल्डी की उपलब्धियों को और मान्यता मिली है।
गोल्डी कुमारी की कहानी एक प्रेरणा है, क्योंकि उसने अपनी दिव्यांगता को कभी भी अपनी सफलता के आड़े नहीं आने दिया। जब वह छोटी थी, तब एक दुर्घटना में उसने अपना बायां हाथ खो दिया था, लेकिन इसके बावजूद उसने कभी भी हार नहीं मानी। गोल्डी ने अपनी मेहनत और लगन से साबित किया कि किसी भी स्थिति में कठिनाइयों को पार किया जा सकता है। गोल्डी ने 13वीं राष्ट्रीय जूनियर और सब जूनियर पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में एक स्वर्ण और दो रजत पदक जीते थे। इस प्रतियोगिता में गोल्डी के शानदार प्रदर्शन ने उसे न केवल बिहार बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध कर दिया। गोल्डी ने बताया कि वह बचपन में अक्सर स्कूल जाते समय बच्चों को दौड़ते हुए देखती थी तो उसका मन भी मचल उठता था। उसने धीरे–धीरे अपने खेल में सुधार किया और कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया।
गोल्डी के दादा राम केश्वर प्रसाद ने बताया कि गोल्डी जब महज 10 महीने की थी, तभी उसकी मां का निधन हो गया था। उनकी मां एक दुर्घटना का शिकार हुई थीं, जब ट्रेन से गिरने के कारण उनका हाथ कट गया। यह हादसा गोल्डी के लिए बहुत कठिन था, लेकिन उसने कभी भी अपने जीवन को संघर्ष मानकर नहीं छोड़ा। गोल्डी के पिता संतोष कुमार अपनी बेटी की इस सफलता पर बहुत गर्व महसूस कर रहे हैं। उनका कहना है कि गोल्डी के सभी प्रयासों में उसका चाचा विनय कुमार ने भी साथ दिया। गोल्डी की सफलता की कहानी कोच कुंदन पांडे से भी जोड़ा जाता है, जिन्होंने सबसे पहले उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसे प्रोत्साहित किया। गोल्डी ने अपनी प्रतिभा से साबित कर दिया कि एक दिव्यांग व्यक्ति भी खेल के क्षेत्र में अव्वल हो सकता है। उसने थाईलैंड में आयोजित वर्ल्ड एबिलिटी स्पोर्ट यूथ गेम्स में शॉर्ट पुट में गोल्ड मेडल जीतकर सबको हैरान कर दिया। आज गोल्डी कुमारी का नाम न केवल बिहार बल्कि पूरे देश में गूंज रहा है। उसकी उपलब्धियाँ सभी के लिए एक प्रेरणा हैं, जो यह साबित करती हैं कि अगर मन में साहस और लगन हो, तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती।