संसद में राहुल गांधी के आक्रामक भाषणों का क्या है राज !
लोकसभा चुनाव 2024 में भले ही भारतीय जनता पार्टी बहुमत में आ गयी हो, और गठबंधन के सहारे तीसरी बार सरकार बनाने में भी कामयाब रही हो. मगर, पुरे चुनाव प्रक्रिया के दौरान और चुनावी नतीजे आने के बाद भी केंद्र में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ही बने रहे. इस बार भी भले कांग्रेस और इण्डिया गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब नहीं रही. लेकिन इसके बाबजूद भारतीय राजनीति में एक बार फिर कांग्रेस का कद बढ़ रहा है. और इसकी मेन वजह राहुल गांधी को माना जा रहा है. भारतीय राजनीति में राहुल गांधी का कद भी पिछले कुछ सालों में बढ़ा है. जिसका प्रमाण 2024 के आम चुनाव में देखने को भी मिला. राहुल गांधी की बढती लोकप्रियता का एक कारण यह माना जा रहा है, कि अब राहुल गांधी अपने भाषण के दौरान उपयोग किये जा रहे शब्दों को लेकर अधिक सावधान हो गए है. और अपने शब्दों को लोगों को तक साफ़– सुथरे तरीके से पंहुचाने की कोशिश करते हैं. वंही, राजनितिक मुद्दों को उठाने में भी राहुल गांधी मुखर नज़र आ रहे हैं. राहुल गांधी के भाषण में भी अब पहले से कई ज्यादा अंतर देखने को मिलता है. राहुल अब जनता के मुद्दों और जमीनी स्तर पर जनता को रही परेशानोयों को लेकर सजग दिखाई देते हैं. उनके भाषण से ऐसा प्रतीत होता है, की राहुल का भाषण खूब सारी रिसर्च के बाद लिखा गया है. और राहुल ने भी अपने भाषण से पहले इसके लिए कड़ी तैयारी की है. अपने भाषण को डिलीवर करते वक्त राहुल गांधी सजगता बरतते हैं.
संसद सत्र की शुरुआत के दौरान बतौर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 1 जुलाई को संसद में अपना पहला भाषण दिया था. भाषण की शुरुआत ही उन्होंने संविधान की कॉपी और भगवान् शिव की तस्वीर दिखा कर की थी. उस भाषण में राहुल गांधी ने सभी धर्मों के बारे में एक एक कर बात की थी. और सभी धर्मों का जिक्र करते हुए सरकार पर निशाना साधा था. उस वक्त राहुल ने अपने भाषण में अभय मुद्रा का जिक्र किया था, और इसे शान्ति और अहिंसा का प्रतिक बताया था. इसके साथ ही, सभी धर्मों में अभय मुद्रा के महत्व पर भी बात की थी. पिछले दिनों में अपने एक भाषण में भी राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, था, की, देश के पिछड़े लोग अभिमन्यु नहीं, बल्कि, अर्जुन है. पिछले कुछ दिनों के उनके भाषणों को देखने पर पता चलता है, की, राहुल गांधी अपने भाषणों में पहले के मुकाबले अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग कम करते हैं. जबकि, उनके भाषणों में देश की आम जनता से कनेक्ट करने के लिए उनकी भावनाओं से जुड़े मुद्दे और यंहा तक की तर्कों का भी उपयोग किया जाता है. पहले उनके भाषणों में इंग्लिश शब्द अधिक रहते थे, जबकि, अब उनकी भाषणों में धार्मिक बातों पर भी जोर दिया जाता है. यही, वजह है, की शायद मोदी सरकार राहुल गांधी के आक्रामक रूप को पहले की तरह अब तीव्रता से जबाब नहीं दे पा रहा है.
भारत जोड़ों यात्रा के बाद से ही राहुल गांधी के व्यक्तित्व में यह बदलाव देखने को मिल रहा है. तो, वंही, अब लोगों में अब यह क्यूरोसिटी भी जाग रही है, की आखिरकार राहुल गांधी की स्पीच कौन लिखता है? क्या राहुल गांधी अपनी स्पीच को खुद लिखते हैं? कांग्रेस के करीबी सूत्रों और जानकारों के आधार पर पत्रकार आदेश रावल ने कुछ दिनों पहले यूट्यूब चैनल न्यूज़ तक से बात करते हुए इस सवाल का जबाब दिया था. उन्होंने बातचीत के दौरान उन लोगों के नाम का खुलासा किया था, जो राहुल गांधी की स्पीच लिखते हैं. इस दौरान उन्होंने बताया था कि, अलंकार, श्रीवत्सा, कौशल विद्यार्थी और खुद राहुल गांधी मिलकर स्पीच तैयार करते हैं. जिसे नेता प्रतिपक्ष संसद में बोलते हैं. हालांकि, कांग्रेस या फिर राहुल गांधी की तरफ से अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है.
राहुल गांधी की स्पीच कोई भी लिखता हो, लेकिन एक बात तो बिलकुल साफ़ हैं कि अब राहुल गांधी का एक परिपक्व रूप देखने को मिल रहा है. जन्हा एक तरफ राहुल अपने भाषणों को बेहद सजगता और सरलता के साथ जनता के सामने पेश कर रहे हैं, जिससे की जनता उनसे आसानी से कनेक्ट करने में समर्थ हो रही है. तो, वंही, अब उनके द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे भी ज्यादा जमीनी और जनता से डायरेक्ट जुड़े मुद्दे होते हैं. जिसका असर ये हो रहा है, की भारतीय राजनीति में राहुल गांधी का कद लगातार बढ़ रहा है.