शिवहर से कौन बनेगा सांसद?

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बिहार का सबसे छोटा और आर्थिकसामाजिक दृष्टिकोण से बहुत ही पिछड़ा जिला शिवहर है। यहां बाढ़ एक प्रमुख समस्या है। बारिश एवं बाढ़ के दिनों में इसका संपर्क पड़ोसी जिलों से भी पूरी तरह कट जाता है। यह जिला पहले पहले मुजफ्फरपुर और उसके बाद सीतामढ़ी जिले का अंग रहा है। लेकिन 6 अक्टूबर 1984 को शिवहर एक स्वंतत्र जिले के रूप में अस्तित्व में आया। आपको बता दें कि शिवहर राज्य का इकलौता संसदीय क्षेत्र है, जिसके अन्तर्गत इस जिले का सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र आता है। यह संसदीय क्षेत्र तीन जिलों के छह विधानसभा क्षेत्रों से मिल कर बना है।

इस संसदीय क्षेत्र में पूर्वी चम्पारण जिले के तीन क्षेत्र – मधुबन, चिरैया और ढाका, शिवहर जिले का शिवहर व सीतामढ़ी जिले का रीगा और बेलसंड विधानसभा क्षेत्र शामिल है। बात अस्सी के दशक की करें तो साल 1980 और 1984 में यहां कांग्रेस का प्रभुत्व रहा। लेकिन 1989 में यहां जनता दल ने जीत हासिल की और यहां से हरिकिशोर सिंह सांसद बने। वे लगातार दो बार इस सीट पर विजयी हुए। साल 1996 में यहां पर समता पार्टी की जीत हुई और आंनद मोहन सिंह सांसद चुने गए। इसके बाद 1998 में वे राजद के टिकट पर एमपी बने। साल 1999 में यहां राजद ने बाजी मारी और साल 2004 में भी ये सीट राजद के ही नाम रही और सीताराम सिंह सांसद चुने गए। इसके बाद साल 2009 में ये सीट भाजपा के नाम हो गई और रमा देवी यहां से लोकसभा पहुंचीं, साल 2014 में भी उन्होंने दोबारा से यहां जीत दर्ज की। शिवहर की बज्जिका एवं हिन्दी मुख्य भाषाएं हैं। 2014 में इस सीट से बीजेपी की रमा देवी जीतकर सांसद बनीं।

शिवहर क्षेत्र राजपूत बहुल सीट माना जाता है। यहां की सियासत पर राजपूत समाज का खासा प्रभाव है और चुनावी नतीजों में इसका साफ असर दिखता है। इस संसदीय क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 12 लाख 69 हजार 056 है। इसमें 5 लाख 91 हजार 390 महिला वोटर और 6 लाख77 हजार 666 पुरुष मतदाता हैं। शिवहर लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर जुगल किशोर सिन्हा जैसी शख्सियतों ने भी किया है। जुगल किशोर सिन्हा को भारत में सहकारी आंदोलन के जनक के रूप में जाना जाता है। उनकी पत्नी राम दुलारी सिन्हा भी स्वतंत्रता सेनानी थीं।

देश के स्वतंत्र होने के बाद जब पहला चुनाव हुआ तो इस सीट का नाम था मुजफ्फरपुर नॉर्थवेस्ट सीट। 1953 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर जुगल किशोर सिन्हा जीतकर लोकसभा पहुंचे। 1957 के चुनाव में पुपरी सीट के नाम से यहां लोकसभा चुनाव हुए। इस चुनाव में कांग्रेस के दिग्विजय नारायण सिंह, 1962 के चुनाव में राम दुलारी सिन्हा, 1967 में एसपी साहू और 1971 में हरी किशोर सिंह चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद इस संसदीय सीट का नाम शिवहर हो गया. इमरजेंसी के बाद देशभर में इंदिरा गांधी के खिलाफ नाराजगी थी और इसका असर 1977 के चुनाव में इस सीट पर भी देखने को मिला. जब जनता पार्टी के ठाकुर गिरजानंदन सिंह ने यहां से चुनाव जीतकर कांग्रेस को धूल चटाई। लेकिन 1980 और 1984 के लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस के टिकट पर राम दुलारी सिन्हा चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। 1989 के चुनाव में जनता दल ने यहां सियासी उलटफेर किया। जनता दल के टिकट पर 1989 और 1991 में हरी किशोर सिंह चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इस बार सीट पर मुख्य रूप से महागठबंधन और एनडीए की बीच लड़ाई है। महागठबंधन से राजद प्रत्याशी सैयद फैसल अली चुनावी मैदान में है। वहीं दूसरी तरफ एनडीए के भापजा प्रत्याशी वर्तमान सांसद रमा देवी है।

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