इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में डिजिटल प्रचार का जोर रहेगा. कोरोना महामारी को देखते हुए लगता नहीं कि किसी भी बड़े नेता की रैली की इजाजत चुनाव आयोग किसी भी दल को देगा. ऐसे में टीवी प्रचार, अखबारों में विज्ञापन और सोशल मीडिया कैपेंनिग के जरिए ही चुनाव प्रचार संभव हो सकेगा. विशेष तौर पर फेसबुक और व्हाट्सएप्प के माध्यम से ही प्रत्याशी वोटरों तक अपनी बात पहुंचा सकेंगे लेकिन इस दौर में भी ऐसे कई नेता हैं जो सोशल मीडिया से कोसों दूर रहते हैं और इसे फालतू का काम समझते हैं. हमारी गारंटी है कि ऐसे नेता गिनती से पहले ही चुनाव हार जाएंगे.
पार्टी ही काट देगी टिकट
भाजपा, राजद, जदयू, कांग्रेस जैसी पार्टियां तो उम्मीदवार के बायोडेटा में उनका सोशल मीडिया प्रोफाइल भी अवश्य खोजती हैं. राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह ने बाकायदा पत्र जारी कर अपने नेताओं को सोशल मीडिया पर एक्टिव होने का निर्देश दिया था. तेजस्वी यादव भी लगातार सोश मीडिया पर एक्टिव रहते हैं. ऐसे में जिस प्रकार की परिस्थिति बन रही है, वैसे में सोशल मीडिया से दूर रहने वाले नेताओं का टिकट कटना तय है क्योंकि कोई भी पार्टी जानबुझ कर हारने वाले उम्मीदवार को टिकट देगी नहीं. भाजपा से ज्यादा तो सोशल मीडिया का महत्व कोई नहीं जानता.
फेसबुक का महत्व सर्वाधिक
आज देश के अधिकांश नेता जिन्हें चुनाव लड़ना होता है वो सोशल मीडिया पर स्वयं एक्टिव रहते हैं. जिन्हें स्वयं फेसबुक, ट्वीटर वगैरह चलाने में असुविधा होती है या समय का अभाव रहता है, वो किसी के माध्यम से अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स संचालित करवाते हैं. सोशल मीडिया के जो प्लेटफॉर्म्स आम जनता के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं, उनमें फेसबुक आता है. बिहार का कोई ऐसा गांव नहीं जहां के 10 नौजवान फेसबुक नहीं चलातें. हर दूसरे घर में एक आदमी फेसबुक यूजर जरुर होता है. ऐसे में जो भी नेता जो फेसबुक आदि से दूर हैं, उन्हें खुद ही चुनाव लड़ने से किनारा कर लेना चाहिए क्योंकि सामने वाला उम्मीदवार अगर डिजिटल तौर पर खुद को मजबूत कर चुका है तो आप टिक नहीं पाएंगे और अंततः पराजित हो जाएंगे.