वफ्फ़ बोर्ड संशोधन बिल पर गरमाई देश की सियासत, कांग्रेस से लेकर जदयू के नेता भी कर रहे विरोध
वफ्फ़ बोर्ड अधिनियम में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा बड़े संसोधन करने की तैयारी की जा रही है. संसद के चालु मानसून सत्र में शुक्रवार 2 अगस्त को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने अधिनियम में लगभग 40 संसोधनों को मंजूरी दी है. संसोधन के जरिये वफ्फ़ बोर्ड की शक्तियों को सिमित किया जाएगा. माना जा रहा है, की, केंद्र सरकार वफ्फ़ बोर्ड की किसी भी संपत्ति को वफ्फ़ समाप्ति बनाने की शक्तियों पर अंकुश लगाना चाहती है. केंद्र सरकार की इस कदम को वफ्फ़ बोर्ड की शक्तियों को फिर से परिभाषित करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है. केन्द्रीय मंत्रिमंडल में प्रस्तावित 40 संसोधनों के अनुसार वफ्फ़ बोर्ड द्वारा संपत्तियों पर किये गए दावों का अनिवार्य रूप से सत्यापन किया जाएगा. इसके अलावा अलग–अलग राज्य बोर्ड द्वारा जिन भूमि पर दावा किया गया है, उनका नए सिरे से वेरिफिकेशन किया जाएगा. तो साथ ही, संशोधनों से वफ्फ़ बोर्ड में महिलाओं को शामिल करना अनिवार्य होगा. माना जा रहा था, की, संसद सत्र के दौरान सोमवार 5 अगस्त को वफ्फ़ संसोधन विधेयक पेश किया जाएगा. हालांकि, ऐसा हुआ नहीं. वंही, मीडिया में चल रही ख़बरों के अनुसार विधेयक को सबसे पहले राज्यसभा में पेश किया जाएगा. मीडिया में चल रही कयासों के अनुसार विधेयक के राज्यसभा में इसी हफ्ते पेश होने की सम्भावना है.
वंही, सरकार के इस फैसले से पुरे देश की सियासत एक बार फिर गर्म है. देश और पार्टियाँ सभी दो गुटों में बट्टी हुई है. एक वो जो केंद्र सरकार के इस फैसले से खुश हैं, और सपोर्ट कर रहे हैं, तो वंही दुसरे वो जिनका मानना है, की, केंद्र सरकार द्वारा वफ्फ़ बोर्ड में संसोधन का ये फैसला पूरी तरह से गलत है. केंद्र सरकार की इस कदम का मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड खुलकर विरोध कर रहा है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है, की वफ्फ़ बोर्ड की कानूनी और शक्तियों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप बर्दास्त नही किया जाएगा. तो इसके साथ ही, कांग्रेस के कई नेताओं ने भी केंद्र सरकार के इस फैसले पर नाराजगी जातई है, और वफ्फ़ बोर्ड अधिनियम में संसोधन को गलत बताया है. कांग्रेस पार्टी के कई मुस्लिम और बड़े नेता इस मामले में मुखर नजर आ रहे हैं. कांग्रेस नेता नसीम खान ने इसका विरोध जताया और कहा, की इस एक्ट में संसोधन को बिलकुल भी बर्दास्त नहीं किया जाएगा. तो, वंही, एनडीए सरकार की सहयोगी पार्टी जदयू से भी सरकार को विरोध का सामना करना पड़ रहा है. जदयू के पूर्व सांसद गुलाम रसूल ने सीएम नीतीश कुमार से केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध करने को कहा, उन्होंने कहा की, नीतीश कुमार को केंद्र की इस कोशिश का विरोध करना चाहिए. हालांकि, अभी तक कांग्रेस के बड़े और शीर्ष के नेताओं ने अब तक इस पर कोई बयान जारी नहीं किया है.
आपको बता दें कि, वफ्फ़ एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब होता है, खुदा के नाम पर अर्पित वस्तु. वफ्फ़ बोर्ड के अधिकार में चल और अचल संपत्तियां आती है, और राष्ट्रिय से लेकर राज्य स्तर पर वफ्फ़ बोर्ड होता है, जो इन संपत्तियों के रख रखाव के लिए काम करता है. वफ्फ़ बोर्ड को जो संपत्ति दान दी जाती है, उससे मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए काम किया जाता है.
देश के आज़ाद होने के 7 साल बाद पहली बार प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की सरकार के कार्यकाल के दौरान वर्ष 1954 में वफ्फ़ अधिनियम संसद से पारित हुआ था. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की सरकार वफ्फ़ अधिनियम लेकर आई थी. हालांकि, इसे बाद में निरस्त कर दिया गया था. इसके एक साल बाद वर्ष 1955 में एक बार फिर से नया वफ्फ़ अधिनियम लाया गया था. जिसमे वफ्फ़ बोर्डों को अधिकार दिए गए थे. इसके नौ साल बाद यानि, कि वर्ष 1964 में केन्द्रीय वफ्फ़ परिषद का गठन किया गया, जो अल्पसंख्यक मंत्रालय के अधीन था. और इसका काम वफ्फ़ बोर्ड से संबंधित कामकाज के बारे में केंद्र को सलाह देना होता है. वफ्फ़ एक्ट में पहली बार बदलाव वफ्फ़ परिषद के गठन के लगभग 30 साल बाद 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में किया गया. पीवी नरसिम्हा राव की नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 1995 में वफ्फ़ एक्ट में बड़े बदलाव करते हुए वफ्फ़ बोर्ड की ताकत बहुत अधिक बढ़ा दिया. उस संसोधन के बाद वफ्फ़ बोर्ड के पास जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार वफ्फ़ बोर्ड के पास आ गये. और प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में वफ्फ़ बोर्ड के गठन की अनुमति देने के लिए क़ानून में संसोधन किया गया. इसके बाद वर्ष 2013 में यूपीए की सरकार के दौरान एक बार फिर वफ्फ़ एक्ट में संशोधन हुआ. और और अधिक शक्तियां प्रदान की गयी.
वफ्फ़ बोर्ड को लेकर लम्बे समय से देश में विवाद चलता आ रहा है, लेकिन सबसे बड़ा विवाद वफ्फ़ एक अधिकारों को लेकर है. वफ्फ़ एक्ट के सेक्शन 85 के अनुसार बोर्ड के फैसले को कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है. यानी कि, अगर एक बार जब किसी संपत्ति को वफ्फ़ घोषित कर दिया जाता है, तो वह हमेश वैसी ही रहती है, और इसे कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती है. मूल रूप से वफ्फ़ के पास पुरे भारत में लगभग 52 हज़ार संपत्तियां है. जो, 2009 तक बढ़कर 4 लाख एकड़ में फैली 3 लाख पंजीकृत वफ्फ़ संपत्तियां हो गयी थी. वर्त्तमान की बात करें तो, वफ्फ़ बोर्ड के पास करीब 9 लाख 40 हज़ार एकड़ में फैली करीब 8 लाख 72 हज़ार 321 अचल संपत्तियां है. और चल संपत्ति 16 हज़ार 713 है. जिनकी अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये बताई जाती है. भारत में सशस्त्र बालों और भारतीय रेलवे के बाद वफ्फ़ बोर्ड तीसरा सबसे बड़ा भू स्वामी है.