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बौद्ध धर्मावलम्बियों का सबसे पवित्र तीर्थ स्थल, जो है विश्व धरोहर

Bihari News

महाबोधि मंदिर, बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक, जो बुद्ध के ज्ञानोदय (बोधि) के स्थान को चिह्नित करता है. यह बिहार की वह पावन धरती है जहां तथागत भगवान बुद्ध ने मानव के दुःखों के कारणों की तलाश की और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति की. जहाँ उन्होंने लोगो को बुद्धं शरणम् गच्छामि व धम्मं शरणम गच्छामि का मूल मंत्र दिया. नमस्कार आप देख रहे हैं बिहारी न्यूज़ बिहारी विहार के आज के इस सेगमेंट में हमलोग उस स्थल का भ्रमण करेंगे उस जगह की जो दुनियाभर के बौद्ध धर्मावलम्बियों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है. बिहार के गया शहर से करीब 12 से 13 किलोमीटर दूर बोधगया में स्थित महाबोधि वह पुन्य भूमि है जहाँ सिद्धार्थ गौतम, बुद्ध बने. जहाँ उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. और वहीँ अब विश्वभर के एक बड़े भूभाग में फ़ैल चुके बौद्ध धर्म का जन्म हुआ. जिसके बाद इसमें कोई संदेह नहीं है की बौद्ध धर्म की उत्पत्ति इसी बिहार की धरती पर हुआ. बौद्ध धर्म के अनुयायियों के इस सर्वश्रेष्ठ और पवित्रतम स्थल की महिमा अपरम्पार है. बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध के पौराणिक आध्यात्मिक ज्ञान स्थली पर महाबोधि मंदिर है. बौद्ध सर्किट मानव कल्याण की दिशा में भगवान बुद्ध के कार्यों की निशानी है. मंदिर के गर्भगृह में बुद्ध की सोने की चित्रित प्रतिमा, पाल राजाओं द्वारा निर्मित काले पत्थर कि प्रतिमा है. यहाँ भगवान बुद्ध को भूमिपुत्र मुद्रा या पृथ्वी को छूने वाले आसन में बैठा हुआ देखा जाता है. महाबोधि मंदिर को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है. यह पावन स्थल दुनिया भर के बौद्ध तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को आकर्षित करता है.

पूरी कहानी जानने के लिए हम आपको 563 इसा पूर्व लेकर चलते हैं. हमलोग ने किताबों में खूब पढ़ा है की गौतम बुद्ध के राजसी परिवार से आते थे. जी हाँ बुद्द का जन्म 563 इसा पूर्व के बीच शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था, जो नेपाल में है. कपिल वास्तु के राजा सुद्दोधन के यहाँ जन्मे इस बालक का नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया. एश्वर्य पूर्ण जीवन सुन्दर पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल के होते हुए भी उन्हें गृहस्थ जीवन का मोह नहीं बाँध सका. कुछ विद्वानों के अनुसार गौतम ने दूसरों के दु:ख को न सह सकने के कारण घर छोड़ा. और ज्ञान की खोज में निकल पड़े. उरुवेला नमक स्थान पर जो अब बोधगया के नाम से जाना जाता है. निरंजना नदी के पास 5 वर्ष की कड़ी तपस्या करने के बाद भी बुद्ध को कुछ हासिल नहीं हुआ. मिली तो बस कमजोरी और कंकाल के ढाँचे जैसा शारीर को क्षीण हो चूका था और अब कभी भी बुद्ध की जान निकल सकती थी. तभी करीब के गाँव की एक कन्या जिनका नाम सुजाता था उन्होंने अपनी खीर खिलाकर गौतम की जान बचाई जिसके बाद गौतम बुद्ध को समझ में आ गया की भूखे प्यासे इस कठोर तप से कुछ हासिल नहीं होने वाला है तभी उन्हें ज्ञान के बोध होने का मार्ग प्रसस्त हुआ. बुद्ध के जीवन में सुजाता का बड़ा योगदान रहा. इसके बाद गौतम बुद्ध यहाँ स्थित पीपल के पेड़ के नीचे साधना पर बैठ गए. सात सप्ताह की साधना पूरी करने के बाद उन्हें इसी पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई इसी वजह से इस वृक्ष को बोधि वृक्ष कहा गया. इसके बाद भगवान् बुद्ध ने यहाँ लोगो को बुद्धं शरणम् गच्छामि व धम्मं शरणम गच्छामि का मूल मंत्र दिया इसके बाद यहाँ से निकलकर देश के अलग अलग हिस्सों मे गए जिसमें सारनाथ भी शामिल है यहाँ पहुंचकर बुद्ध ने ब्राह्मणों के बच्चों को शिक्षा देना शुरू किया. और यहाँ उन्होंने कहा था संघं शरणम् गच्छामि. ये तीनों बुद्ध का महामंत्र है इन मन्त्र के बिना बुद्ध की कोई भी पूजा असफल मानी जाति है.

बुद्ध का जन्म बैशाख की पूर्णिमा को हुआ. बैशाख की पूर्णिमा को ज्ञान की प्राप्ति हुई और अषाढ़ की पूर्णिमा को उन्होंने पहला उपदेश सारनाथ में दिया था. और बैशाख पूर्णिमा को अपना शारीर त्याग दिया. जैसा की हमने आपको पहले बताया की इस बोधगया का नाम उरुवेला था. लेकिन जब बुद्ध यहाँ से चले गए तब लोगो ने जाते हुए देखा तो पूछा बुद्ध तो जानने वालों ने कहा की गया. जिससे बना बुद्धगया जिसका खंडित रूप बोधगया है. लोगो का मानना है की यहाँ बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई इसलिए बुद्धगया ना रखकर बोध गया रखा गया.

बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद सात सप्ताह यहाँ गुजारे लेकिन सात अलग अलग जगह बिताए थे. जो की महाबोधि मंदिर के परिसर में सभी मौजूद है मैं आपको बता दू की विहार समूह में सुबह के समय घण्‍टों की आवाज मन को एक अजीब सी शांति प्रदान करती है. यहाँ आपकोबोधि वृक्ष देखने को मिलेगा. जहाँ बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद दूसरा सप्‍ताह इसी बोधि वृक्ष के आगे खड़ा अवस्‍था में बिताया था। । यहां पर बुद्ध की इस अवस्‍था में एक मूर्त्ति बनी हुई है। इस मूर्त्ति को अनिमेश लोचन कहा जाता है। मुख्‍य विहार के उत्तर पूर्व में अनिमेश लोचन चैत्‍य बना हुआ है। मुख्‍य विहार का उत्तरी भाग चंकामाना नाम से जाना जाता है। इसी स्‍थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद तीसरा सप्‍ताह व्‍यतीत किया था। अब यहां पर काले पत्‍थर का कमल का फूल बना हुआ है जो बुद्ध का प्रतीक माना जाता है। महाबोधि विहार के उत्तर पश्‍िचम भाग में एक छतविहीन भग्‍नावशेष है जो रत्‍नाघारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्‍थान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद चौथा सप्‍ताह व्‍यतीत किया था। दन्‍तकथाओं के अनुसार बुद्ध यहां गहन ध्‍यान में लीन थे कि उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली। प्रकाश की इन्‍हीं रंगों का उपयोग विभिन्‍न देशों द्वारा यहां लगे अपने पताके में किया है। बुद्ध ने मुख्‍य विहार के उत्तरी दरवाजे से थोड़ी दूर पर स्थित अजपालानिग्रोधा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्‍ित के बाद पांचवा सप्‍ताह व्‍य‍तीत किया था। बुद्ध ने छठा सप्‍ताह महाबोधि विहार के दायीं ओर स्थित मूचालिंडा क्षील के नजदीक व्‍यतीत किया था. इस सरोवर के बारे में कहा जाता है की भगवान बुद्ध ने ज्ञान की प्राप्ति होने के बाद लगातार छठा सप्ताह ध्यान में बिताया था। ऐसा कहा जाता है की जब भगवान बुद्ध ध्यान में थे तो एक तेज आंधी बारिशआई और बुद्ध को भीगते हुए देखकर, झील के सर्प राजा मुचलिंदा अपने निवास से बाहर आए और बारिश से बुद्ध की रक्षा की। मुचलिंदा सरोवर को लोटस पॉन्ड के नाम से भी जाना जाता है। इसमें ध्यान की स्थिति में भगवान बुद्ध की एक मूर्ति स्थापित की गयी है जो उसी दृश्य को दर्शाती है। इसके अलावा, झील में कई मछलियाँ हैं जिन्हें यहाँ आने वाले पर्यटक मुरमुरे खिलाते है। इस विहार परिसर के दक्षिणपूर्व में राजयातना वृ‍क्ष है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद अपना सांतवा सप्‍ताह इसी वृक्ष के नीचे व्‍यतीत किया था। यहीं बुद्ध दो बर्मी (बर्मा का निवासी) व्‍या‍पारियों से मिले थे। इन व्‍यापारियों ने बुद्ध से आश्रय की प्रार्थना की। इन प्रार्थना के रूप में बुद्धमं शरणम् गच्‍छामि (मैं बुद्ध को शरण जाता हू) का उच्‍चारण किया। इसी के बाद से यह प्रार्थना प्रसिद्ध हो गई।

इस बोधगया महाविहार की खोज ब्रिटिश कमांडर सर एलेक्जैंडर कनिंगहम ने 1883 में की थी. कहा जाता है की यहाँ स्थित बोधिवृक्ष जिसके नीचे भगवान बुद्ध को ज्ञान की पार्प्ती हुई थी उसे सम्राट अशोक की पत्नी ने नष्ट कर दिया. सम्राट अशोक ने बोधिवृक्ष को वापस लगाया था. यह बुद्ध विहार भूकंप से जमीन के अंदर जमींदोज हो गया था. देशभर मे करीब 84000 बौद्ध विहार थे. इन सारे विहारों का निर्माण प्रियदर्शनी सम्राट अशोक ने पूरे भारत वर्ष में किए थे, उस में से यह मह्बोधी विहार मुख्य विहार था, इसका प्रमाण अशोक के शिलालेखों से मिलता है. क्यूंकि इसी पवित्र भूमि पर बोधीवृक्ष के नीचे गौतम बुद्घ को सत्य का ज्ञान प्राप्त हुआ, बोधी चेतना जागृत हुई. उसी कारण इसे अति पवित्र स्थान माना जाता है। यह किसी चमत्कार से क नहीं था कि 1600 साल यह बौद्ध विहार जमीन के अंदर वैसे की वैसे मजबूत पाया गया. एक ब्रिटिश कमांडर के द्वारा खोज करने से उसे अंग्रेजी भाषा में टेंपल कहा गया. असल में इसे ही महाबोधी विहार से जाना जाता है। कुदरत के चमत्कार से आज भी वह वैसी की वैसे मजबूत रहा है.

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