बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात एक ऐसे कवि की जिसने तब के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री को खुला चैलेंज कर दिया था. इतना ही नहीं जब जब सत्ता अपने रास्ते से भटकती नजर आई इन्होंने अपनी कविता से उसे एक धार देने की कोशिश करते रहे. वे तब भी और आज जब वे हमलोगों के बीच नहीं है तब भी उतने ही जनप्रिय कवि हैं. वे बहुत पढ़े लिखें नहीं थे लेकिन उन्होंने अपनी तिक्ष्ण बुद्धि और अनुभव वो सब सीखा जो एक व्यक्ति स्कूल जाकर सिखता है. उन्होंने देश के मिजाज को पहले जाना उसके बाद अपनी कलम उठाई और एक के बाद एक रचनाएं उनकी कलम से निकलती चली गई. इनकी मुल भाषा मैथली थी लेकिन उन्होंने भोजपुरी, हिंदी बांग्ला के साथ ही कई अन्य भाषाओं में अपनी रचनाएं लिखी है. इनका बचपन का नाम वैद्यनाथ था लेकिन एक रचनाकार अपनी कलम से अक अलग पहचान बनाता है तो उन्होंने अपना एक अलग नाम दिया था नागार्जुन जिन्हें लोग बाद में बाबा नागार्जुन के नाम से बुलाने लगे और खुब प्रिय हुए.
बाबा नागार्जुन की तुलना कबीर से की जाती है. कहा जाता है बाबा नागार्गुन भी कबीर की ही तरह रुढिवादियों के विरोधी थे. वे मुखर होकर अपनी बात कहते थे और सत्ता के खिलाफ जाकर बोलने की क्षमता रखते थे. जिसके कारण उन्हें कई बार कष्ट का सामान करना पड़ा है. हालांकि बाबा नागार्जुन ने अपनी कलम की धार को कम होने नहीं दिया. हमेशा वो एक नई ऊर्जा के साथ अपनी बात रखते थे. बचपन में उनकी पढ़ाई संस्कृत में हुई थी. वे बहुत पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन उनका अनुभव और उनकी बुद्धि इतनी तेज थी कि वे चीजों को तेजी से समझते थे. वह साल 1945 का था जब उन्होंने पहली बार लिखना शुरू किया था. आज जिस तरह से कवि अलग अलग राजनीतिक खेमों में बंटे हुए दिखाई देते हैं लेकिन बाबा नागार्जुन की तासीर इस तरह की नहीं थी उन्होंने अपनी एक कविता में लिखा था कि जनकवि हूं साफ कहूंगा. क्यों हकलाऊं. उन्होंने कभी भी किसी भी राजनीतिक सत्ता के समर्थन में नहीं लिखा था. कहा जाता है कि बाबा नागार्जुन आजादी से पहले जवाहरलाल नेहरू के हिमायती हुआ करते थे लेकिन आजादी के बाद जब सत्ता की बागडोर नेहरू ने संभाली ने तो बाबा उनके मुखर विरोधियों में से गिने जाते हैं. आजादी के बाद बाबा नागार्जुन ने एक कविता लिखी थी वह कविता जब ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भारत आई थी तब लिखी गई थी उन्होंने कहा था कि आओ रानी हम ढोएंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की. उन्होंने सत्ता पर एक जोरदार हमला बोला था.
बाबा नागार्जुन आपातकाल में इंदिरा के खिलाफ मुखर होकर बोले. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी सबसे ज्यादा शक्तिशाली महिला हुआ करती थी. पूरे देश में कांग्रेस की सत्ता थी लेकिन बाबा इनके आगे कभी न झुके. इंदिरा गांधी से पहले जान लिजिए बाबा नागार्जुन ने लाल बहादुर शास्त्री को भी नहीं छोड़ा था जब लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने तो उन्हें नसीहत देते हुए कहा था था लाल बहादुर, मत बनना तुम गाल बहादुर.
जरा याद करिए 1974-75 का वह साल जब पूरे देश में छात्र आंदोलन की धून थी. जय प्रकाश नारायण छात्रों के मसीहा कहे जा रहे थे. पूरे देश का छात्र इंदिरा गांधी की सरकार से नाराज था. पटना में छात्र आंदोलन लौं तेज हो गई थी. पटना के ही कदमकुंआ में साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें बाबा नागार्गुन ने अपनी सबसे प्रचलित कविता इंदु जी इंदु जी क्या हुआ आपको सत्ता की मस्ती में भूल गई बाप को इसके बाद क्या था पूरी सभा तालियों की गड़गड़ाहट से गुंज उठा. बाबा नागार्जुन वामपंथी विचार के तो थे ही साथ ही साथ वे अपने बिंदास बोल बेगलैड़ स्वभाव और अपने जिद्दी व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे. हालांकि बाद के समय में उनका छात्र आंदोलन से मोह भंग गया जिसका एक मात्र कारण था कई नेताओं की अपनी महत्वाकांक्षा. जिसके बाद उन्होंने अपने आप को आंदोलन से अलग कर लिया.
बाबा नागार्जुन की कविताओं के मुल में जाएंगे तो आपको लोक संस्कार, मानवीय पीड़ा और उनकी करुणा आपको दिखाई देगी. वे एक ऐसे कवि थे जिन्होंने अपनी कविताओं से खेतों–खिलाहनों, किसानों–मजदूरों तक ले गए, उनके दर्द को महसूस किया और उसके बाद उसे कागज पर उतार दिया. उसके बाद उनकी कविता सत्ता पर चोट करती थी. जब देश में लंबे समय तक प्राकृतिक आपदा की स्थिति तो उन्होंने लिखा था कि कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास, कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास. उनकी कविताओं में आप वस्तुस्थिति को देखेंगे. जो उन्होंने देखा उसे लिखा है. आज कल के कवि पत्रकार जब सत्ता से सवाल पुछना बंद कर देते हैं तो ऐसे में बाबा कहते थे. रोजी–रोटी, हक की बातें, जो भी मुंह पे लायेगा, कोई भी हो, निश्चित ही वो एक कम्यूनिस्ट कहलायेगा. जब बात बिहारी की आई तो उन्होंने बाल ठाकरे को कहा था “बाल ठाकरे ! बाल ठाकरे, कैसे फ़ासिस्टी प्रभुओं की, गला रहा है दाल ठाकरे ”
बाबा नागार्जुन ने राहुल सांकृत्यान के साथ मिलकर पूरे देश में किसान आंदोलन को चलाया था. वो बांग्ला, मैथली और हिन्दी भाषा में लिखा करते थे. पहले वो मैथिली की रचनाओं में अपना नाम यात्री लिखा करते थे. परंतु 1935 में अध्यापक के तौर पर सहारनपुर में नौकरी करने के बाद वह श्रीलंका चले गए. और हिंदू धर्म की रूढ़ियों से निराश होकर उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी. यहीं से उन्हें नाम मिला था नागार्जुन. बाबा नागार्जुन की एक बात और भी वे हमेशा अपने कार्य का पैसा लेना नहीं भूलते थे इसीलिए वे उस समय के कवियों में सबसे अलग थे. हालांकि उनका आखिरी दिन गरीबी और दुःख में गुजरा था. वे साल 1998 में इस दुनिया को छोड़कर विदा हो गए.