माँ सीता फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को धरती पर प्रकट हुई थी. मंगलवार के दिन यानी 14 फरवरी को इस बार का यह शुभ दिन है. सीता अष्टमी या जानकी जयंती के नाम से यह दिन लोगों के बीच प्रचलित है. लेकिन वैशाख मास के नवमी तिथि को भी कई जगहों पर लोग माँ सीता के जन्मतिथि के रूप में मनाते हैं. इस दिन को सीता नवमी या जानकी नवमी के नाम से भी जाना जाता है. भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम माँ सीता के कारण हीं बने थे. माँ सीता को जानकी के नाम से भी जाना जाता है, क्योकि वे राजा जनक की पुत्री थी. हिन्दू धर्म ग्रन्थ यानी रामायण में माता सीता को कई जगहों पर जानकी कहकर भी संबोधित किया गया है. चलिए आज के इस चर्चा में हम जानते हैं सीता अष्टमी के महत्त्व, मुहूर्त और पूजा विधि आदि के बारे में.
आज के अपने इस चर्चा के बीच हम सबसे पहले जानेंगे सीता अष्टमी के महत्त्व के बारे में. ऐसा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है की समुन्द्र तट के तपोमय भूमि पर बैठकर यह व्रत भगवान् राम द्वारा गुरु वशिष्टजी के कहने पर किया गया था. अभीष्ट सिद्धि के लिए भी लोग इस व्रत को जानते हैं. कहा जाता है की जिसके द्वारा भी यह व्रत किया जाता है उसे भगवान राम और माँ सीता दोनों का हीं आशीर्वाद मिलता है. साथ हीं साथ व्रत करने वाले की इच्छा भी पूरी होती है. माँ लक्ष्मी का अवतार हीं माता सीता को माना गया है. माँ लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी थी और श्री राम भी विष्णु के हीं अवतार थे. बता दें व्यक्ति को जीवन में कभी किसी चीज की कमी नहीं होती है और सारे कष्ट भी दूर हो जाते हैं जब वे सीता जयंती के शुभ अवसर पर माता सीता और श्री राम की पूजा अर्चना करते है.
चलिए अब हम आपको बताते हैं इस पर्व के शुभ मुहूर्त के बारे में. 13 फरवरी को 8 बजकर 15 मिनट पर सीता अष्टमी का शुभ मुहूर्त प्रारंभ हो चूका है और इसका समापन 14 फरवरी के दिन सुबह 7 बजकर 40 मिनट पर उदय तिथि को मानते हुए इस पर्व का व्रत 14 फरवरी यानी मंगलवार के दिन किया जाएगा.
आइये अब हम आपको इस सीता अष्टमी के पूजा विधि के बारे में बताते हैं. जैसा की हमने पहले भी बताया की इस पूजा में माँ सीता के साथ–साथ भगवान् राम की भी पूजा की जाती है. साथ हीं साथ दोनों का हीं ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प किया जाता है. पूजा को शुरू करने से पहले श्री गणेश और माँ दुर्गा की पूजा जरुर कें. इसके बाद माँ सीता और श्री राम की तस्वीर या मूर्ति को एक लाल रंग का कपडा बिछा कर उन्हें स्थापित कर दें. स्थापित करने के बाद हीं माँ सीता को सुहाग का सारा सामान चढ़ाएं. फिर फल–फुल, अक्षत आदि सामानों को अर्पित करें. ध्यान रहे की लाल या पीले रंग की चीजें माता सीता को अर्पित की जाती है. इन विधि को पूरा करने के बाद माँ सीता की आरती उतारें. जब आरती समाप्त हो जाये तो 108 बार माता सीता का मन्त्र जाप करें. उसके बाद हवन के समय ध्यान रहे की सीता जयंती की पूजा में सर्व धान्य समेत हवन किया जाता है. साथ हीं साथ पारंपरिक व्यंजनों का नैवेध्य जैसे खीर, पुए और गुड़ का अर्पण किया जाता है. इसके बाद इस पूजा में जो भी सुहाग के सामान को चढ़ाया गया है उसे किसी सुहागन महिला को दे दें. उसके बाद शाम होते हीं आपने जो भी भोग पूजा के समय चढ़ाया हैं उससे व्रत खोले. इस प्रकार आपकी साधना पूरी होगी और मनचाही इच्छा को माँ सीता और भगवान राम भी पूरी करेंगे.