वह विश्वविद्यालय जो चार सदी तक दुनियाभर में शिक्षा का अलख जगाता रहा, जिसमें प्रवेश के लिए द्वार पर ही विद्वानों के कठिन सवाल से पड़ता था गुजरना, जहाँ दी जाती थी अध्यात्म, दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र , तंत्रविद्या और व्याकरण की शिक्षा, जिसे जलन की वजह से चढ़ना पड़ा मुस्लिम आक्रमणकारी के भेंट
नमस्कार आप देख रहे बिहारी न्यूज़ बिहारी विहार के इस सेगमेंट में आज हम आपको लेकर चलेंगे बिहार के गौरवशाली शहर भागलपुर के विक्रमशीला विश्विद्यालय के भ्रमण पर. जो भारत का एक प्रसिद्ध शिक्षा–केन्द्र था. बिहार भोजपुरी, मैथिली, मगही, तिरहुत तथा अंग संस्कृतियों का मिश्रण है. जहाँ भागलपुर बिहार प्रान्त का एक गंगा के तट पर बसा अत्यंत प्राचीन शहर है. इसका इतिहास अत्यंत गौरवशाली है पुराणों में और महाभारत में इस क्षेत्र को अंग प्रदेश का हिस्सा माना गया है. भागलपुर के निकट स्थित चम्पानगर महान पराक्रमी शूरवीर कर्ण की राजधानी मानी जाती रही है. हम और आपने इसके बारे में किताबों में खूब पढ़ा होगा. दुनियाभर से लोग यहाँ पढने आया करते थे जो अभी के ऑक्सफ़ोर्ड जैसे यूनिवर्सिटी की बराबरी करता था. लेकिन एक मुस्लिम आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी द्वारा इसे नष्ट कर दिया गया जहाँ लाखों के करीब किताबें जलाकर राख कर दी गई. ना ही विक्रमशिला किसी राजा का किला था और ना ही कोई मंदिर जिससे बख्तियार खिलजी जैसे मुस्लिक आक्रमणकारी को कोई दिकत होनी चाहिए थी तो आखिर क्या वजह थी की इसे नष्ट कर दिया गया. यही नहीं आगे और भी बहुत कुछ जानना है
शिक्षा के क्षेत्र में बिहार की विरासत गौरवशाली रही हैं. प्राचीन काल से ही शिक्षा में बिहार को एक विशिष्ट पहचान मिली हुई थी. भारत की प्राचीन शिक्षा आध्यात्मिमकता पर आधारित थी. शिक्षा, मुक्ति एवं आत्मबोध के साधन के रूप में थी. यह व्यक्ति के लिये नहीं बल्कि धर्म के लिये थी. प्राचीन काल में किसी प्रकार की परीक्षा नहीं होती थी और न कोई उपाधि ही दी जाती थी. हालाँकि मध्यकाल में पाठ्यक्रम के विस्तार के साथ वेदों ओर वेदांगों के अतिरिक्त साहित्य, दर्शन, ज्योतिष, व्याकरण और चिकित्साशास्त्र इत्यादि विषयों का अध्ययन होने लगा. टोल पाठशाला, मठ ओर विहारों में पढ़ाई होती थी. काशी, तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वलभी, ओदंतपुरी, जगद्दल, नदिया, मिथिला, प्रयाग, अयोध्या आदि शिक्षा के केंद्र थे. इसी में से एक था बिहार के भागलपुर में स्थित विक्रमशीला विश्विद्यालय. सिल्क सिटी के नाम से मशहूर भागलपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर पूरब में कहलगांव के पास अंतीचक गांव स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय का खंडहर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है
बंगाल के पाल नरेश धर्मपाल द्वारा 8 वीं सदी के अंत और 9 वीं सदी के शुरुआत में इस प्रसिद्द बौद्ध महाविद्यालय की नीव डाली गई थी. यहाँ लगभग 160 विहार थे. जिसे वर्तमान में बौद्ध मठ कहा जाता है. जिनमें कई विशाल प्रकोष्ठ बने हुए थे. यहाँ 100 शिक्षकों की व्यवस्था थी. यह विश्विद्यालय नालंदा की तरह ही विश्व भर में सम्मान की दृष्टि से देखी जाती थी. यहाँ के सुप्रसिद्ध विद्यानों में दीपंकर श्रीज्ञान अतीश प्रमुख थे. विक्रमशीला बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा का प्रमुख केंद्र था. यहाँ न्याय, तत्वज्ञान एवं व्याकरण की शिक्षा दी जाती थी. इस विश्विद्यालय को काफी जल्दी लोकप्रियता मिली और 12 वीं सदी तक यह विश्विद्यालय विराट शिक्षा संस्था के रूप में प्रसिद्द था. और इस वक़्त तक यहाँ कुल 3000 विद्यार्थियों की शिक्षा की व्यवस्था थी. बंगाल के शासक शिक्षा की समाप्ति पर विद्यार्थियों को उपाधि देते थे. मान्यता है कि बख्तियार खिलजी नामक मुस्लिम आक्रमणकारी ने सन 12 वीं सदी के आसपास इसे नष्ट कर दिया था.
माना जाता है की बख्तियार खिलजी द्वारा विश्विद्यालय को जलाने की मुख्य वजह जलन थी. माना जाता है की जब बख्तियार खिलजी जब भारत के सभी इलाके जितने में लगा था तो वो बीच में बीमार पड़ गया. कई वैद्य को बुलाने के बाद भी जब वह ठीक नहीं हुआ तो खिलजी को उस वक़्त के नालंदा विश्विविद्यालय के प्रिंसिपल राहुल श्रीधर से मिलने को कहा गया जो वैद्य शिक्षा के ग्यानी थे. खिलजी ने राहुल श्रीधर को बुलाया लेकिन उसने राहुल श्रीधर के सामने शर्त रखी की वो उनके द्वारा दी गई किसी भी दवाई का सेवन नहीं करेगा. खिलजी यहाँ नालंदा और राहुल को चैलेन्ज कर रहा था . लेकिन राहुल श्रीधर ने भी खिलजी की शर्त मान ली. और उन्होंने खिलजी को कुरआन के कुछ पन्ने पढने को दिया और कहा आप इसे पढ़िए आप ठीक हो जाएंगे. दरअसल राहुल ने उन्हें कुरआन में दवाई लगाकर दी थी. जो कुरान के पन्ने पलटने के दौरान उनके त्वचा से स्पर्श होकर उनके शरीर के अन्दर चला जाता. ठीक वैसा ही हुआ ओंने पलटने वक्त खिलजी के शारीर में दवाई जाने से वह वापस अपने पैरों पर खड़ा हो गया. लेकिन राहुल और नालंदा का शुक्रिया करने के वजाय खिलजी ने ये प्राण ले लिया की वो नालंदा विश्विद्यालय का विनाश जरुर करेगा. इतिहासकार मानते हैं की खिलजी द्वारा विश्विद्यालय को नष्ट करने की मुख्य वजह उसकी जलन थी की ये लोग कैसे हर क्षेत्र में हमसे आगे है. जो उसे बर्दाश्त नहीं था. इसके बाद खिलजी ने सबसे पहले विक्रमशीला से भी विराट नालंदा विश्विद्यालय को जला दिया जहाँ इमारतों के बीच में एक बड़ा सा पुस्तकालय था जहाँ 90 लाख किताबें रखी थी. कहते हैं की यहाँ उपनिषदों की ओरिजिनल कॉपी भी यहाँ रखी हुई थी. और इसी के साथ साथ खिलजी ने बिहार में स्थित विक्रमशिला और उडानतापूरी विश्विद्यालय को भी नष्ट कर दिया. इतना सारा ज्ञान इतनी सारी परम्परा सिर्फ एक व्यक्ति के जलन के कारन नष्ट हो गया.
बता दें कि वर्ष 1962-63 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, 1972-73 व 1974-75 में राज्य पुरातत्व निदेशालय द्वारा इसका अल्प उत्खनन हुआ. लेकिन, खाई से पानी आ जाने के कारण खुदाई को बीच में ही रोक देना पडा.वर्ष 2012 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सेवा यात्रा के दौरान यहां एक घंटा समय बिताए थे। उनके पहल पर वर्ष 2013-14 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इनका दो सत्रों में खुदाई कराया। इन सारे खुदाई में तेरह सौ ईसा पूर्व तक के अवशेष प्राप्त हुए विक्रमशिला खुदाई स्थल से प्राप्त पुरातात्त्विक सामग्रियों में कांस्य मूर्तियाँ; मृदभांड; स्तंभ; मुहरें; मृण–मूर्तियाँ आदि के अतिरिक्त हजारों किस्म की प्रस्तर कला; भवन निर्माण कला; लोहा; ताँबा; सोना; चाँदी; विभिन्न पशुओं की अस्थियाँ; नवरत्न की माला; मातृदेवी; शिवयोगी के विभिन्न रूप; विष्णु; वरुण; ब्रह्मा; कृष्ण; राम; संदीपमुनि; आदिबुद्ध; तारा; बृहस्पति; पुरुरण; उर्वशी आदि की प्रतिमाएँ मिली हैं; जो हिमयुग की सभ्यता–संस्कृति से लेकर वैदिक युग; रामायण युग; महाभारत युग; सिद्धार्थ–बुद्ध तक के साक्ष्य प्रस्तुत करती हैं. विक्रमादित्य की राजधानी का ऐतिहासिक दस्तावेज ‘बत्तीसी आसन’ अभी भी यहाँ अवशेष के रूप में मौजूद है. प्रस्तुत ग्रंथ ‘विक्रमशिला का पुरातात्त्विक इतिहास’ प्राचीन बिहार की सभ्यता–संस्कृति का इतिहास ही नहीं है; बल्कि विश्व इतिहास को भी एक नई दृष्टि देने में समर्थ है. और यही वजह है की आज यह खँडहर में तब्दील हुए विक्रमशीला विश्विद्यालय पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है.