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ब्राह्मण क्यों नहीं खाते प्याज और लहसुन, जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

Bihari News

भारत में कई धर्मजाती के लोग मौजूद हैं. इन्हीं में एक जाती ब्राह्मण की भी आती हैं. ब्राहमण को हमारे समाज में सबसे ऊँचा दर्जा दिया जाता हैं. लेकिन ब्राह्मण समाज के अपने कुछ नियमधर्म है. जिनमें से एक यह भी है, जिनका मानना है कि वे ब्राह्मण समाज से आते है तो उन्हें प्याजलहसुन जैसी चीजों को नहीं खाना चाहिए. आपने आसपास भी अपने कई ब्राह्मणों को देखा होगा जो प्याजलहसुन खाने से परहेज करते हैं. लेकिन क्या अपने कभी सोचा है कि ब्राह्मण समाज के लोग इन चीजों को क्यूँ ग्रहण नहीं करते. हम सभी यह तो जानते है कि इसे तामसिक भोज्य पदार्थ कहा जाता है. लेकिन तामसिक पदार्थ कहे जाने के पीछे का कारण क्या है , ये आप में से शायद कुछ ही लोगों को पता हो. अगर नहीं पता तो, आज हम आपको इस विडियो में इससे जुड़े ही कुछ पहलु के बारे में बताएंगे कि आखिर ब्राह्मण लहसुन और प्याज खाने से क्यूँ परहेज करते हैं.अगर हम इसके धार्मिक महत्व को देखेंगे, तो इससे जुड़ी एक कथा सामने आती है. बात उस समय कि है जब देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुन्द्र मंथन किया जा रहा था. उस दौरान जब समुन्द्र से अमृत की उत्पत्ति हुई तो, भगवान् विष्णु वे अमृत सभी देवताओं में बांट रहे थे. उन्हीं देवताओं में दो राक्षस जिनका नाम केतु और राहू था, वे बिच में आकर बैठ गए थे. ऐसे में भगवान् विष्णु ने गलती से उन दोनों राक्षसों को भी पिला दिया था. लेकिन जैसे ही देवताओं की इस बात का आभास हुआ , भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से दोनों राक्षसों के सिर को उनके धड़ से अलग कर दिया . हालाँकि तब तक अमृत की कुछ बुँदे उनके मुंह के अन्दर चली गयी थी, जिस वजह से उनका सिर उनका अमर हो गया था. लेकिन जैसे ही उनके धड़ को काटा गया तो खून की कुछ बुँदे जमीन पर गिर गयी और वहां प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई. चूँकि इसकी उत्पत्ति राक्षसों के खून से हुई इसलिए इसे खाने के बाद मुंह से इसकी गंध आती हैं.हालांकि बता दे कि ये तो धार्मिक महत्व थे, लेकिन इससे जुड़े वैज्ञानिक महत्व भी हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार खाद्य पदार्थो को तिन भागों में बांटा गया हैं. जिसमें पहला सात्विक, दूसरा राजसिक, और तीसरा तामसिक है. इसमें सात्विक का अर्थ होता , उस तरह का भोज्य पदार्थ जिसे खाने से आपके अन्दर शान्ति, संयम, पवित्रता और मन की शान्ति के गुण आते हैं. वहीं राजसिक का अर्थ होता है वैसे भोज्य पदार्थ जिसे खाने के बाद आप में जूनून और खुशी जैसे गुण आये. तामसिक का अर्थ होता है, वैसे भोज्य पदार्थ जिससे जूनून, क्रोध, अहंकार और विनाश जैसे गुण आते हों. और ब्राह्मण ये इसलिए नहीं खाते क्यूंकि इन चीजों को राजसिक और तामसिक जैसे भागों में बांटा गया हैं. अगर ये चीजें कोई व्यक्ति ग्रहण करता है तो उनके अन्दर उत्तेजना बढ़ाने वाले हार्मोन्स की उत्पत्ति होती हैं. और उत्तेजना के उत्पन्न होने से लोगों की एकाग्रता में कमी आती हैं और साथ ही संयम क्षमता का नाश होता हैं. यही वजह है कि सनातन धर्म में इन चीजों को खाने से ब्राह्मण मना करते हैं. 

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