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किन गलतियों ने खत्म कर दिया इस बल्लेबाज का करियर, जो कहलाते थे कलाई के जादूगर

Bihari News

भारतीय क्रिकेट के इतिहास के किताब के कुछ पन्नों को पलटें तो 80 के दशक के मध्य में एक ऐसा खिलाड़ी आया था, जिसने भारतीय क्रिकेट में अटैकिंग खेल को परिभाषित किया. इस खिलाड़ी ने भारत को बताया कि आक्रामक क्रिकेट कैसे खेली जाती है. उस समय विश्व क्रिकेट में ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज जैसी टीम काफी आक्रामक हो चुकी थी लेकिन भारत अभी भी डिफेंसिव मानसिकता के साथ मैदान पर खेलती थी. ले देकर एक कपिल देव ही थे, जो आक्रामक बल्लेबाजी करते थे लेकिन वो बल्लेबाजी में काफी नीचे आते थे. फिर एक दुबलेपतले लड़के ने भारतीय टीम में एंट्री ली, इस लड़के का अंदाज ही सारी कहानी बयां कर रहा था. खड़ा कॉलर, सफेद हेलमेट, गले में लटकती काली तावीज और कलाइयों का जादू, जब वो मैदान पर आता था तो ऐसा लगता था कि अब रनों का सैलाब आ जाएगा.

यह खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट में किसी क्रांति से कम नहीं था क्योंकि उस वक्त जब बल्लेबाज ऑफ स्टंप से बाहर जाती गेंदों को छोड़ देते थे या फिर कवर में खेलते थे उसी गेंद को यह बल्लेबाज मिड ऑन या मिड विकेट के ऊपर से उड़ाने लगा. विपक्षी गेंदबाजों और टीमों को चारों खाने चित करने का यह अंदाज उस दुबलेपतले लड़के का सिग्नेचर स्टाइल बन गया था. बल्लेबाजी के अलावा जबरदस्त फील्डिंग के लिए भी इस खिलाड़ी को जाना जाने लगा.

आज बात भारत के महान बल्लेबाज और सफलतम कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन की, जो डेढ़ दशक से ज्यादा तक गेंदबाजों के लिए सिरदर्द बना रहा. जिस तरह से अजहर ने अपने इंटरनेशनल करियर का आगाज किया, वैसा आज तक किसी ने नहीं किया और भविष्य में भी शायद ही कोई होगा जो अजहर जैसा आगाज करेगा. लेकिन वो कहते हैं ना कि समय बड़ा बलवान होता है. और जब समय विपरीत हो जाता है तो राजा को भी रंक बना देता है. यही हुआ अजहर यानी मोहम्मद अजहरुद्दीन के साथ. आखिर ऐसा क्या हुआ जो देश इस महान बल्लेबाज की बल्लेबाजी को भूल सा गया और याद रह गया तो सिर्फ उनके दामन पर लगी कालिख, जो बाद में धुल तो गई लेकिन दाग छोड़ गई. तो आज हम अजहर के क्रिकेट और जीवन से जुड़ी कुछ अनकही बात आपको बताएंगे. ये भी बताएंगे कि आखिर किन गलतियों की वजह से इस महान बल्लेबाज का करियर खत्म हो गया और दामन पर गहरा दाग छोड़ गया.

मोहम्मद अजहरुद्दीन का जन्म 8 फरवरी, 1963 को हैदराबाद में हुआ था. अजहर के पिता का नाम अजीजुद्दीन और मां का नाम युसूफ सुल्ताना था. अजहर ने ऑल सेंट हाई स्कूल से अपनी शिक्षा प्राप्त की. बचपन से ही अजहर को क्रिकेट में बेहिसाब दिलचस्पी थी और उस दौरान स्कूल में भी क्रिकेट का प्रशिक्षण काफी बेहतरीन ढंग से दिया जाता था. अजहर स्कूली दिनों से ही बढ़िया क्रिकेट खेलते थे और दाएं हाथ के शानदार बल्लेबाज थे. अजहर की तुलना उस वक्त एक इंग्लिश बल्लेबाज डेविड गोवर से होती थी. फ्लिक को टाइम स्ट्रोक के साथ मिक्स करने वाले अजहर स्पिन और मध्यम गति गेंदबाजों के लिए मुश्किल खड़ी कर देते थे. बल्लेबाजी के अलावा अजहर अपनी शानदार फील्डिंग के लिए भी जाने जाते थे. मैदान पर उनकी फुर्ती कमाल की थी.

क्रिकेट खेलतेखेलते अजहरुद्दीन ने निजाम कॉलेज उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद से बैचलर्स ऑफ कॉमर्स की डिग्री पूरी कर ली. इसके बाद मन में एक क्रिकेटर बनने के सपने लिए वो एक बैंक में क्लर्क की नौकरी करने लगे इसलिएअजहर क्रिकेट खेलते रहे फिर वक्त बदला और चयनकर्ताओं की नजर इस छरारे बल्लेबाज पर पड़ी. और फिर सितारा कब तक अपनी चमक को छुपाए रख सकता था, उसको तो पूरी दुनिया में अपनी चमक बिखेरनी थी.

बात साल 1984 की है, जब इंग्लैंड की टीम 5 टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने भारत पहुंची. मुंबई में खेले गए पहले टेस्ट मैच में भारत ने 8 विकेटों से आसान जीत दर्ज कर ली लेकिन दिल्ली में दूसरे टेस्ट में उतनी ही आसानी से 8 विकेट से हार भी गई, जिसके बाद काफी हंगामा हो गया. और नतीजा ये हुआ कि कोलकाता में खेले जाने वाले तीसरे टेस्ट से पहले टीम मैनेजमेंट ने दिग्गज खिलाड़ी कपिल देव और संदीप पाटिल को टीम से ड्रॉप कर दिया. इससे यंग अजहरुद्दीन को मौका मिल गया और इतने बड़े खिलाड़ी की जगह खेलते हुए अजहर ने ऐसा प्रदर्शन किया कि रिकॉर्ड ही बना दिया. अजहर ने अपने डेब्यू टेस्ट मैच में 110 रनों की पारी खेल डाली. इसके बाद चेन्नई टेस्ट की पहली पारी में अजहर ने 48 और दूसरी पारी में 105 रन ठोक दिए. अजहर यहीं नहीं रुके, कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में अजहर ने अपने करियर के तीसरे टेस्ट मैच में वो कारनामा किया कि अंग्रेज तो क्या पूरी दुनिया उनकी मुरीद हो गई. अजहरुद्दीन ने पहली पारी में 112 और दूसरी पारी में नाबाद 54 रन बनाकर विश्व क्रिकेट में धमाकेदार एंट्री ले ली. ऐसी एंट्री ना तो अजहर से पहले किसी ने ली थी और शायद ही भविष्य में कोई होगा, जो अंतराष्ट्रीय क्रिकेट में ऐसी एंट्री लेगा.

गुंडप्पा विश्वनाथ

पहले 3 टेस्ट में 3 शतक आज भी रिकॉर्ड है, अजहर की बल्लेबाजी देख उस वक्त एक अंग्रेज राजनेता और क्रिकेट लेखक जॉन बूटकॉक ने तो यहां तक कह दिया था कि इंग्लिश बल्लेबाजों से तो अजहर जैसी बल्लेबाजी की उम्मीद करना ही बेकार है. अजहर की कलाइयों में ऐसा जादू था कि पहली सीरीज से ही उनकी तुलना गुंडप्पा विश्वनाथ, ग्रेग चैपल और जहीर अब्बास जैसे दिग्गजों से होने लगी थी.

अजहर की बल्लेबाजी से विपक्षी टीमों में दहशत का ये आलम था कि माइक गेटिंग ने तो एक बार ये कह दिया था कि जब अजहर की तावीज बाहर निकलकर लटकने लगती थी तो हम समझ जाते थे कि अब हम खतरे में हैं.

अजहर इसी तरह शानदार बल्लेबाजी करते हुए आगे बढ़ने लगे. टेस्ट क्रिकेट में वो शतक पर शतक ठोक रहे थे दूसरी तरफ वनडे क्रिकेट में उनकी आक्रामक शैली से मैदान पर रनों की बारिश कर रहे थे. दिसंबर, 1988 में अजहर ने न्यूजीलैंड के खिलाफ 62 गेंद में 100 रन बनाए थे, जो उस वक्त 50-ओवर के क्रिकेट में सबसे तेज शतक था. इसके बाद साल 1990 में अजहर को भारत का कप्तान बनाया गया. अजहर इस भूमिका में भी उम्मीदों पर खरे उतरे. उनके नेतृत्व में भारतीय टीम का प्रदर्शन और निखरता चला गया. सौरव गांगुली के कप्तान बनने से पहले तक अजहर भारत के सफलतम कप्तान थे. 1996 में अजहर ने सिर्फ 74 गेंदों में टेस्ट शतक जड़ा, जो आज भी भारतीय क्रिकेट का रिकॉर्ड है. अजहर भारत के लिए 4 विश्व कप खेले और 3 में उन्होंने भारतीय टीम की कप्तानी करी. हालांकि उनकी कप्तानी में भारत विश्व चैंपियन नहीं बन सका. अजहरुद्दीन ने 99 टेस्ट मैचों की 147 पारियों में 45.04 की औसत से 6215 रन बनाए, इस दौरान उनके बल्ले से 22 शतक और 21 अर्धशतक निकले. अजहर ने 334 वनडे मैचों की 308 पारियों में 54 बार नॉटआउट रहते हुए 36.92 की औसत से 9378 रन बनाए. वनडे क्रिकेट में अजहर के नाम 7 शतक और 58 अर्धशतक दर्ज हैं. अजहर ने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में भी 15 हजार से ज्यादा रन बनाए हैं.

अब बात करते हैं अजहर के निजी जीवन और उनके दामन पर लगे दाग के बारे में. अजहर ने 2 शादियाँ की. पहली नौरीन से, जिनसे उनके 2 बेटे हुए. एक का नाम असद और दूसरे का नाम अयाज है. अजहर और उनकी पत्नी नौरीन के बीच शादी के 9 साल बाद तलाक हो गया.

तलाक के बाद अजहर ने साल 1996 में फेमस मॉडल और एक्ट्रेस संगीता बिजलानी से शादी की. हालांकि 14 साल बाद दोनों अपनी इच्छा से अलग हो गए. अजहर की तीसरी शादी की बात भी मीडिया में आई थी लेकिन अजहर ने इसका खंडन कर दिया था.

करियर के अंतिम समय में अजहर पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा और उन्हें बैन भी कर दिया गया. दरअसल इस विवाद की शुरुआत साल 1998 में ढाका में खेले गए इंडिपेंडेंस डे फाइनल से हुई थी. इस मैच में पाकिस्तान के खिलाफ भारत को जीत के लिए 315 रन बनाने थे. गांगुली और रोबिन सिंह की पारियों की वजह से भारत मजबूत स्थिति में पहुंच गया था. जब अजहरुद्दीन बैटिंग करने आए तब स्थितियां अनुकूल थी लेकिन अजहर तब शकलेन मुश्ताक की फुल टॉस गेंद पर आमिर सोहैल के हाथों कैच आउट हो गए और भारत मुश्किल में फस गया. हालांकि ऋषिकेश कानेटकर की साहसिक पारी की बदौलत भारत जीत गया. लेकिन मैच के बाद भारत के पूर्व ऑलराउंडर मनोज प्रभाकर ने ये कहकर सबको चौंका दिया कि ये मैच फिक्स था, जिसमें भारत की हार तय थी लेकिन कानिटकर ने खेल खराब कर दिया.

इस बात को उस समय बल मिला जब साल 2000 में साउथ अफ्रीका के कप्तान हेंसी क्रोनिया ने कोर्ट में अजहर और कुछ अन्य भारतीय खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग का आरोप लगा दिया. 5 दिसंबर, 2000 के बाद अजहर के लिए सबकुछ बदल दिया. सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन CBI ने अपने रिपोर्ट में अजहर को दोषी ठहराया. इसका परिणाम ये हुआ कि अजहर को इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल ICC और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड BCCI ने आजीवन बैन कर दिया. अजहर बीसीसीआई के फैसले के खिलाफ साल 2006 में अदालत गए और 8 नवंबर, 2012 को आंध्र प्रदेश कोर्ट ने अजहर पर लगाया गया आजीवन बैन हटा दिया.

इसके बाद अजहर ने प्रेस कॉनफ्रेंस कर कहा था केस काफी लंबा चला और इन 11 सालों का समय काफी दर्द भरा रहा. अजहर के दामन पर लगा दाग भले ही कोर्ट के फैसले से धूल गया लेकिन दाग तो दाग ही रह गए. अजहर का क्रिकेट करियर तो खत्म हो ही चुका था लेकिन मन में एक टीस रह गई कि इतना शानदार क्रिकेटर का टेस्ट करियर 99 टेस्ट से आगे नहीं बढ़ पाया और उच्चतम स्कोर भी 199 ही रहा. ना वो 99 100 हो पाया और ना ही 199 200. लेकिन अजहर अपने 99वें टेस्ट में शतक लगाकर पहले और आखिरी टेस्ट में शतक लगाने का अनूठा कारनामा कर गए.

अजहरुद्दीन ने राजनीति में भी हाथ आजमाया और साल 2009 में वो सांसद बने लेकिन साल 2014 में उन्हें चुनावी पिच पर हार का सामना करना पड़ा. साल 2019 में अजहर को हैदराबाद क्रिकेट संघ का अध्यक्ष चुना गया और वर्तमान में वो इसी पद पर हैं. अजहर को साल 1991 विजडन क्रिकेटर ऑफ द इयर चुना गया, उससे पहले 1986 में अर्जुन अवार्ड के अलावा साल 1988 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया. लेकिन इतने बेहतरीन बल्लेबाज और सफल कप्तान का क्रिकेट करियर दागदार ही रहा. आपको बता दें अजहरुद्दीन के जीवन पर एक फिल्म भी बनी है, जो 2016 में आई थी.

फिल्म का नाम अजहर ही था और इसमें इमरान हाशमी ने अजहर का रोल किया है. इमरान हाशमी के अलावा प्राची देसाई, नर्गिस फाकरी और लारा दत्ता मुख्य किरदार में थे. आपको अजहर कैसे खिलाड़ी लगते हैं ? कमेंट में बताएं.

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