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लोकसभा अध्यक्ष बनने वाले पहले बिहारी, जिन्होंने अंतराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया

Bihari News

बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात करेंगे एक ऐसे बिहारी बेटे के बारे में जिन्होंने देश की आजादी में एक महत्वपूर्ण योगदान किया साथ ही जब देश आजाद हुआ तो बिहार की राजनीति में उनकी बड़ी सहभागिता रही है. उन्हें जब मौका मिला तो बिहार की राजनीति के साथ ही देश की राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई. वे हमेशा अपने कार्यों के लिए जाने जाने वाले रहे हैं. इनके लिए यह कहा जाता है कि वे एक सुयोग्य सांसद तो थे ही साथ ही वे एक कुशल वक्ता भी रहे हैं. इन्हें लोकसभा का अध्यक्ष रहने का भी गौरव मिला है. आज हम बात करने वाले हैं सामाजिक कार्यकर्ता बली राम भगत के बारे में

बली राम भगत का जन्म 7 अक्टूबर 1922 को पटना में हुआ था. इनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई पटना से ही हुई थी. हालांकि इन्होंने स्नातक तक की पढ़ाई पटना कॉलेज में की उसके बाद पटना विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में इन्होंने निष्णात उपाधि प्राप्त किया था. पढ़ाई के दिनों से ही इनकी राजनीति में रूचि रही है और उस समय देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था ऐसे में उन्होने अपने आप को आजादी में आहुत कर दिया. उनकी उम्र तब 17 साल की थी उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इसके बाद साल 1942 में जब पूरा देश भारत छोड़ों आंदोलन में हिस्सा ले रहा था तो उस समय इन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़ देश की आजादी में सक्रिय हो गए और भूमिगत रहकर काम करते रहे. इसके बाद 1944 में इन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी कांग्रेस के संस्थापक सदस्य और 1946-47 के दौरान बिहार प्रदेश विद्यार्थी कांग्रेस के महासचिव भी रहे हैं.

आजाद भारत में बली राम भगत राष्ट्रीय राजनीति में 1950 में सक्रिय हो गए इस दौरान उन्हें अंतरिम संसद के लिए निर्वाचित हुए. इस दौरान उन्होंने संसद भवन में विभिन्न संवादों में हिस्सा लिया जिसके कारण उन्हें योग्य सांसद के रूप में उन्हें सम्मानित किया गया. जब वे पहली बार जीतकर संसाद भवन पहुंचे तो उन्हें वित्त मंत्री के संसदीय सचिव के रूप में कार्य किया. साल 1956 में वह वित्त मंत्रालय में उपमंत्री बने और लगातार सात साल तक इस पद पर बने रहे, बता दें कि वे लगातार सात साल तक इस पद पर बने रहे हैं. इसके बाद साल 1963 में उन्हें राज्य मंत्री बनाया गया. वे 1966 तक इस पद पर बने रहे. उसके बाद साल 1967 में उन्हें विदेश राज्य मंत्री बनाया गया. इसी दौरान उन्हें कुछ सालों के लिे रक्षा मंत्रालय की भी जिम्मेदारी दी गई थी. इसके बाद साल 1969 में उन्हें विदेश व्यापार और आपूर्ति मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बनाया गया. इसके बाद वे अगले 8 महीने तक इस्ताप और भारी इंजीनियरी मंत्रालय के मंत्री के रूप में रहे.

बली राम भगत के बारे में यह कहा जाता है कि वे एक सुयोग्य सांसद तथा कुशल वक्ता के रूप में भगत जी ने अपने पश्न काल, वादविवाद को लेकर हमेशा तैयार होकर आते थे. सरकार में रहते हुए इन्होने दोनों ही पक्षों का जवाब दिया है. इसीलिए बली राम भगत को सत्ता के लोग जितना मान सम्मान करते थे उतना ही विपक्ष के लोग भी करते थे. देश की पांचवी लोकसभा के दौरान गुरदयाल सिंह ढिल्लों ने जब अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया तो बली राम भगत को लोकसभा का अध्यक्ष बनाया गया. यह वह दौर था जब पूरे देश में आपातकाल था और इस दौरान उन्होंने लोकसभा का अध्यक्ष पद संभाला इस दौरान उन्होंने यह बताया कि संसद जनता की एक सर्वोपती संस्था हैं. और इसे सदा जनसाधारण को ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिए. हालांकि इस दौरान इन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिया था कि संसद भवन के अंदर होने वाली सभी बहस एक अनुशासन के तहत हो और उसका एक अर्थ निकल सके जिससे समाज में एक सार्थक मैसेज जा सके.

बली राम भगत के अध्यक्ष पद रहते हुए बिहार में एक घटना सामने आया था. जिसमें किसी भी सदस्य को जेल से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक ले जाते समय हथकड़ी लगाए जाने के बारे में विशेषाधिकार का एक प्रश्न सदन में आया था जिसमें बाद उन्होंने इसकी निंदा करते हुए कहा कि किसी सदस्य को हथकड़ी लगाना गृह मंत्रालय और बिहार सरकार के अनुदेशों की पूर्ण अवमानना तथा अवज्ञा है. साथ ही आशा व्यक्त करते हुए यह भी कहा था कि भविष्य में संगत अनुदेशों का कड़ाई और ईमानदारी से अनुपालन किया जाए. जब भगत जी अध्यक्ष थे तभी उन्होंने यह देखा कि प्रश्न काल के दौरान जितने लोगों ने पश्न पुछने को लेकर अपना नाम दर्ज किया था वे ही सदन से गायव हैं तब उन्होंने इस पर दुःख जताते हुए उन्होने कहा था कि इस तरह की घटना दोबारा नहीं होनी चाहिए. इतना ही नहीं उन्होने सरकारी आश्वासनों संसंधी समिति के सभापतियों का पहला सम्मेलन इन्होने बुलाया था जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि सरकार की तरफ से जो बातें सदन में सुनिश्चित की जाती है उसे सककार पूरा करती है या नहीं. क्योंकि प्रश्न काल के दौरान जब सवाल पुछा जाता है तो जवाब में यह कहा जाता है कि कार्य हो जाएगा दरअसल इस तरह कार्य को धरातल में आने में समय लगता है या फिर अधिकतर समय ये कार्य हो ही नहीं पाते हैं. साल 1977 में इन्होंने कांग्रेस से अलग होने का फैसला कर लिया था और ब्रह्मानंद रेड्डी की अगुवाई वाली कांग्रेस में शामिल हो गए थे हालांकि जब साल 1980 में इंदिरा गांधी एक बार फिर से जब सत्ता में आई तो वे फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए.

बली राम भगत जी अपने संसदीय जीवन में इन्होंने कई बार अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारतीय संसद का प्रतिनिधित्व किया है. साल 1951 में इन्होंने इस्ताम्बुल में और उसके बाद 1981 में हवाना में अंतरसंसदीय संघ सम्मेलन में भाग लिया. उन्होंने सितम्बर, 1976 में लन्दन में हुए राष्ट्रमंडल अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के चौथे सम्मेलन में भी भाग लिया. इसके अतिरिक्त, उन्होंने वर्ष 1953, 1954, 1955, 1956, 1957, 1958 और 1964 में हुए कोलम्बो योजना सम्मेलन की बैठकों में भाग लिया. भगत जी साल 1985-86 में राजीव गांधी की सरकार में विदेश मंत्री बने. इतने लंबे राजनीतिक सफर के बाद भी साल 1991 में उन्हें समस्तीपुर लोकसभा चुनाव क्षेत्र से हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में इन्हें एक लाख से अधिक वोटों से हार मिली थी. उसके बाद साल 1993 में बली राम भगत को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया. इस पद पर वह चार महीने तक रहे. उसके बाद 30 जून 1993 से 1 मी 1998 तक राजस्थान के राज्यपाल बनाए गए.

देश की आजादी के दौरान बली राम भगत एक प्रख्यात लेखक के साथ ही पत्रकार की भूमिका में रहे. जब देश में भारत छोड़ों आंदोलन चल रहा था उस समय उन्होंने आवर स्ट्रगल और नॉनवायलंट रिवॉल्यूशन, पत्रिका का संपादन किया. साल 1947 में उन्होंने पटना में हिंदी की एक प्रगतिशील साप्ताहिक पत्रिका राष्ट्र दूत की शुरुआत की थी. इन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर – “नॉनएलाइनमेंटः प्रेजेंट एंड फ्यूचरतथा कॉमनवेल्थ टुडेनामक दो पुस्तकें भी लिखीं. भगत जी लगभग छह दशक तक कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़कर रहे हैं. इस दौरान उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र और कमजोर वर्ग के लोगों के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भूमिहीनों के हितों में काम किया. समाज के वंचित समाज के लोगों के साथ काम किया. साथ ही समाज के आखिरी व्यक्ति के लिए मुखर होकर अपनी आवाज को बुलंद करते रहे हैं. इतना ही नहीं उन्होंने गरीबों गुरवों को लेकर पत्र पत्रिकाओं में भी अपनी आवाज को बुलंद किया है. गरीबों की आवाज बनकर सरकार तक उनकी मांग को पहुंचाने वाला बिहार का यह बेटा 2 जनवरी 2011 को इस दुनिया से विदा हो गया.

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