बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में हम बात करेंगे एक ऐसे प्रतिभावान व्यक्ति के बारे में. जिन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है. इनकी प्रतिभा के बदौलत भोजपुरी को एक अलग पहचान मिली है. इन्होंने भोजपुरी के लिए नाटक लिखा और नाटक का मंचन भी किया, साथ ही कई नाटकों का निर्देशन भी किया है. वे लोक संगीतकार और अभिनेता के रूप में जाने जाते हैं. उन्होने अपनी प्रतिभा के बदौलत भोजपुरी को काव्य और नाटक की भाषा बनाई. आज भोजपुरी भाषा के लोग इस महान व्यक्तित्व पर गौरवान्वित महसूस करते हैं. बिहार से बाहर आज अगर भोजपुरी का महत्व हैं तो उसमें इस महान शकसियत का बड़ा योगदान है.

बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में हम बात करेंगे भिखारी ठाकुर के बारे में. यह नाम आज किसी भी पहचान का मोहताज नहीं. आज के जमाने में लोग भिखारी ठाकुर का नाम लेकर अपना रोजगार चला रहे हैं. खैर आज हम भिखारी ठाकुर के बारे में जानेंगे साथ ही उनके कृत के बारे में जानेंगे. भिखारी ठाकुर की सोच उनके समय से बहुत आगे की थी. वे अपने नाटकों में वो कर जाते थे जो बड़े बड़े समाजिक कार्यकर्ता नहीं कर पाते थे. भिखारी ठाकुर के नाटक देखने के बाद लोग रोत हुए घर जाते थे और एक संकल्प लेते थे कि अब आगे से इस तरह की गलती नहीं करेंगे. भिखारी ठाकुर के इस घटना के बाद आप भी कहेंगे सच में इतने प्रभावशाली व्यक्ति थे भिखारी ठाकुर. जब बिहार और झारखंड एक हुआ करता था तो वे नाटक करने के लिए झारखंड के धनबाद पहुंचे थे. और वह साल था 1962 उस समय उनका नाटक पुराना बाजार स्थित धर्मशाला में उनका नाटक चल रहा था. जिसमें कोयला मजदूर भी वह नाटक देखने के लिए पहुंचे थे. जब वह नाटक समाप्त हुआ तो ज्यादातर लोग रोते हुए वहां से बाहर निकले. इसके बाद एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन देखने को मिला और लोगों ने मंदिरों में जाकर कमसें खाई की अब हम अपनी बेटो को नहीं बेचेंगे… और न ही अधेड़ उम्र के लोगों से उनकी शादी करवाएंगे.

भिखाड़ी उन महिलाओं के पिड़ा की दवा बने जिनके पति उन्हें गांव में छोड़कर परदेस चले गए हों. इसी विरह बेदना को देखते हुए भिखारी ठाकुर ने लिखा था सइयां गइले कलकतवा ए सजनी/ गोड़वा में जूता नइखे, हाथवा में छातावा ए सजनी/ सइयां कइसे चलिहें राहातावा ए सजनीं… भिखारी के इन पक्तियों के लिखे हुए आज सात दशक से भी ज्यादा का समय निकल गया है लेकिन आज भी यह उतना ही प्रासंगित है जितना तब था. लोग आज भी ठहर कर इसको सुनते हैं. बिहार में आज भी पलायन सबसे ज्यादा है. भिखारी ने इस पलायन को तब ही देख लिया था. जिसके बाद उनकी कलम से इस तरह के गीत और नाटक निकले थे. उनके नाटक विदेशिया का आज भी जब मंचन होता है तो महिलाओं के आंखों से आंसु निकलते हुए देख सकते हैं. इसीलिए भिखारी ठाकुर को बिहार का शेक्सपीयर कहा जाता है. उन्हें उनकी रचनाओं के लिए तुलसीदास भी कहा जाता है.

देश जब गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था तब भी उन्होंने जनजागरण को नहीं छोड़ा. समाज के हर तबके में जाकर उन्होंने लोगों को जागरुक करने का काम किया. इसके लिए उन्हें अंग्रेजों ने रायबहादुर की उपाधी से भी नवाजा था. उस जमाने में महिलाओं को स्टेश पर लाना बड़ा मुश्किल था लेकिन भिखारी ने वह किया जिसके बारे में किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. उन्होंने पुरुषों को महिला का रूप दिया और स्टेज पर लाए. फिर क्या था लोगों ने खुब पसंद किया और भिखारी लोगों के बीच चर्चा के केंद्र में आते गए. यहीं से बिहार में शुरू होता है लौंडा नाच. हालांकि यह नाच शैली अब बिहार के साथ ही अन्य प्रदेशों में भी गायब होती जा रही है.

 

भिखारी ठाकुर का जन्म 18 दिसंबर 1887 को बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर में हुआ था. भिखारी ठाकुर मात्र 9 साल की उम्र तक ही स्कूल गए थे. उन्हें पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता था उन्होंने पढ़ाई छोड़ कर घर का काम काज करने लगे. जब उम्र बढ़ी तो घर का जो पेशा था उसे शुरू यानी की नाई का काम उन्होंने शुरू किया. यहां उन्हें उनके काम के बदले किसानों के यहां उन्हें अनाज मिलता था. इस समय तक उन्हें हजाम बनाना आ गया था अब उन्होंने सोचा कि क्यों ने शहर जाकर हजाम बनाया जाए. तब वे पहुंचे खड़गपुर और उसके बाद मेदिनीपुर. मेदिनीपुर में रहते हुए उनके जीवन के साथ कुछ ऐसी घटनाएं हुई की वह पूरी तरह से बदल गए. वहां उन्होंने रामलिला देखा और उनके अंदर का कलाकार जाग गया. अब उनके हाथ से उस्तरे छूटता चला गया और कविताओं के प्रति उनका लगाव बढ़ने लगा. अब वे घर वापस आ गए और यहां उन्होंने एक रामलीला मंडली बना ली. जिसमें उन्हें सराहा भी गया अब उन्हें लगने लगा था कि इसी में आगे भविष्य चल सकता है. इस दौरान घर वालों ने इनका विरोध किया लेकिन इन्होने अपना संघर्ष जारी रखा और और लोग भिखारी ठाकुर को बिहारी ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. उनके द्वारा लिखे नाटको को देखें तो बिदेसिया, भाई-बिरोध, बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा, कलयुग प्रेम, गबरघिचोर, गंगा असनान, बिधवा-बिलाप, पुत्रबध, ननद-भौजाई, बहरा बहार है जो समाज पर एक चोट भी है और एक शिक्षा देने का भी काम कर रहा है. पूरा बिहार और भोजपुरीया समाज भिखारी ठाकुर का सदा ऋृणी रहेगा.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *