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नौ लाख चांदी के सिक्कों से बना है बिहार का यह पैलेस

Bihari News

बिहार के मधुबनी जिले में बना नौलखा महल कमला नदी के पूर्वी तट स्थित है. नौलखा महल राजनगर पैलेस के नाम से भी विख्यात है. यह नौलखा महल बिहार के लोकप्रिय इमारतों में से एक है. इस महल का निर्माण महाराजा रामेश्वर सिंह ने 17वीं शताब्दी में करवाया था. भारत के रजवाड़ों की गिनती में दरभंगा राज का रजवाड़ा एक अलग हीं स्थान रखता है. ऐसा कहा जाता है की महाराज रामेश्वर सिंह ने इस महल का निर्माण नौ लाख चांदी के सिक्कों से करवाया था और तभी से इसकी ख्याति नौलखा महल से हुई.

दरभंगा महाराज की इच्छा थी की उनके शासनकाल में उनका नगर राजनगर की तरह संचालित हो लेकिन कमला नदी के कटाई के कारण यह संभव नहीं हो सका. इस क्षेत्र में इस महल की काफी लोकप्रियता है. इसके अलावा इस महल में बगीचे, तालाब और भव्य मंदिर भी थे. दुर्भाग्यवश 1934 के भूकंप में यह ईमारत खुद को मजबूती से खड़ा नही कर पाया और काफी क्षतिग्रस्त ही गया. फिर दरभंगा राज के 22वें महाराज कामेश्वर सिंह ने इस महल की मरम्मत करवाई. लेकिन शायद कुदरत को यह भी मंजूर नहीं था और 1988 में आये भूकंप में इसे फिर से काफी क्षति पहुची.

बिहार हीं नहीं पूरे भारत के स्थापत्य कला के बेहतर नमूनो की सूची में यह शामिल था. मरम्मत नहीं होने के कारण अब यह महल खंडहर में तब्दील हो चुकी है. लेकिन आज भी यह महल अपने स्वर्णिम अतीत की कहानियों को समेटे लोगो को अपनी ओर आकर्षित करती है. महाराज रामेश्वर सिंह माँ भगवती के परम भक्त थे और तंत्र विद्या के अच्छे जानकार भी थे. इसी विद्या के सहारे उन्होंने कमला नदी के हीं पास माँ काली और माँ दुर्गा के मंदिर का भी निर्माण करवाया. राजनगर पैलेस के अलावा ये मंदिर भी पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहता है. माँ काली और माँ दुर्गा के अलावा यहाँ माँ कामख्या और माँ गिरिजा के मंदिर भी स्थित है. इन सभी मंदिरों में तंत्र की देवी की मूर्ति स्थापित हैं. माँ देवी की पूजा दक्षिण के दिशा में होने के कारण सभी मंदिर दक्षिणमुखी हैं. काली माँ का मंदिर संगमरमर से निर्मित होने के कारण दर्शकों को अपनी ओर मोहित करता है. मंदिर के अन्दर माँ काली की मूर्ति काले रंग के पत्थर से निर्मित है. इसके अलावा मंदिर के अन्दर मौजूद विशाल घंटा अष्टधातु से बना है. परिसर में हीं महादेव के भी मंदिर मौजूद हैं.

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इसके अलावा परिसर में तालाब और नगर का राजकाज चलाने के लिए सचिवालय का भी निर्माण करवाया गया था. नौलखा पैलेस में एक केन्द्रीय मीनार भी है जो की सात मंजिला है. पहली मंजिल के एक भाग में संग्रहालय भी है जहाँ कमरे के ऊपर पत्थर और लकड़ी से नक्काशी की गयी थी. इसके दरवाजे पर भी बड़े हीं खुबसूरत नक्काशी किये गये हैं. इसी कमरे के बगल में एक रसोई है जहाँ से भाड़ी वजन के तराजू और बर्तन मिले हैं. ऐसा कहा जाता है की महाराज के जन्मदिन पर उन्हें सोने और चांदियों से तौला जाता था.

वर्तमान समय में यहाँ विशेश्वर सिंह जनता महाविद्यालय संचालित होता है जहाँ चार हाथियों के खम्बे वाला सिंह द्वार आज भी मौजूद है और लोगों का ध्यान अपनी ओर खीचते है. राजा बहादुर विशेश्वर सिंह महाराज कामेश्वर सिंह के भाई थे. पिता की मृत्यु के बाद कामेश्वर सिंह का राज्यभिषेक हुआ और कामेश्वर सिंह दरभंगा नरेश बने. उन्होंने अपने भाई राजा बहादुर विशेश्वर सिंह को राजप्रसाद के रूप में अंचल का भार सौप दिया. कामेश्वर सिंह के समय में हीं भारत स्वतंत्र हुआ और जमींदारी प्रथा समाप्त हुई थी. उम्मीद करते हैं की आज का यह लेख आपको पसंद आया होगा.

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