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52 परतों की यह मिठाई , जिसकी पहचान है अंतररास्ट्रीय स्तर तक…

Bihari News

बिहार की पहचान है ये, जायका का भण्डार है ये. पूरे देश दुनिया में ये जाना जाए, 52 परतों से ही यह बन पाएं. दिखने में हो पैटीज जैसा, लेकिन स्वाद हो इसका मीठा और नमकीन सा. कईयों का यह पुस्तैनी काम, इसी से बढ़ाये वे दुनिया में बिहार का नाम . चलिए अब देते है इसका परिचय, जिसे सुन आप भी करेंगे इसे खाने का निश्चय. नाम है इसका सिलाव का खाजा, जो भी खता उसके मन को भा जाता .

आपने अपने आसपास कई बार सिलाव के खाजा का नाम सुना ही होगा. इसकी गिनती उन मिठाइयों में की जाती हैं जिसे लोग अगर एक बार खा ले तो दुबारा खानाचाहते हैं. इसकी चर्चा केवल बिहार में ही नहीं बल्कि पूरे देश और यहां तक की दुनिया में की जाती हैं. वैसे तो इस मिठाई को देश के कई हिस्सों में बनाया जाता हैं , पर सिलाव में बने खाजा ने सभी के दिलों में अपनी एक खास जगह बना रखी हैं जिसकी तुलना किसी और खाजे से नही की जा सकती. ऐसे में अगर आप भी कभी राजगीरनालंदा के भ्रमण पर हो तो सिलाव के इस खाजे का स्वाद लेने से न चुकें.

बता दे कि खाजा के पीछे की कहानियां बेहद दिलचस्प हैं. इसकी जटिल बनावट और कई मूल कहानियों के साथ, ऐसा प्रतीत होता है कि यह साधारण मिठाई खाजा काफी अनोखा है. एक सिद्धांत, जो यह दावा करता है कि खाजा की उत्पत्ति अवध और आगरा के पूर्वी हिस्सों से हुई हैं. ऐसा ही एक अन्य सिद्धांत है जो इस बात पर जोर देता है कि यह मौर्य वंश के दौरान सिलाओ नामक एक छोटे से गाँव में उत्पन्न हुआ था जो वर्तमान बिहार के प्राचीन शहर मिथिला और नालंदा के बीच स्थित है. इसकी तुलना मध्यपूर्वी व्यंजन बाकलावा से की गई थी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में यहां तक कहा गया है कि गौतम बुद्ध अपनी यात्रा के दौरान सिलाओ के पास रुके थे, जब कुछ स्थानीय लोगों ने उन्हें मिठाई की पेशकश की. इस मिठाई के स्वाद को चख कर गौतम बुद्ध ने अपने शिष्यों को भी इसका स्वाद लेने और इसे और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए प्रोत्साहित किया. इसके साथ ही द डेली पायनियर के एक अन्य अंश से पता चलता है कि पुरातत्वविद् जेडी बेगलर ने 1872-73 में सिलाव के क्षेत्र का दौरा किया था, वहीं कुछ स्थानीय लोगों ने खाजा की उत्पत्ति का उल्लेख राजा विक्रमादित्य से किया था.

हालांकि, सिलाव में इस खाजे की शुरुआत 200 साल पहले बांशिंदे काली शाह के द्वारा की गयी थी. पहले के समय में लोग इसे खजूरी के नाम से जानते थे लेकिन समय के साथ इसके नाम में भी बदलाव हो गया हैं और आज इसे खाजा के नाम से जाना जाता हैं. 200 साल बीत गए लेकिन आज तक इसके स्वाद में कोई फर्क नही आया. आज के समय में यह काम उनकी चौथी पीढ़ी के द्वारा संभाला जा रहा हैं. बता दे कि अब तक सिलाव में काली साह के नाम से छह दुकानें हैं . इनके परिवार में सबसे ख़ास बात यह हैं कि आज तक इनके परिवार से कोई बाहर नही गया हैं लेकिन खाजा को जरुर बाहर तक पहुँचाया हैं. सिलाव के खाजा को इंटरनेशनल पहचान दिलाने में काली शाह खाजा दुकान के संचालक संजीव कुमार का अहम रोल है. संजीव कुमार का कहना हैं कि उनकी बहाली दरोगा में हो गयी थी, लेकिन उन्होंने अपने पूर्वज के काम को करना सही समझा और इसे ही आगे बढ़ाने का निश्चय किया. और आज के समय में उबके परिवार से करीब 30 लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं. उस जमाने में यह खाजा एक पैसे सेर बेचा जाता था. बता दें कि काली शाह के वंशजों द्वारा निर्मित खाजा आज आनलाइन अमेरिका, लंदन, दुबई, पाकिस्तान, स्पेन, सिंगापुर तक पहुंचाई जा रही है।

आपको बता दे की सिलाव में बनाये गये खाजे का प्रदर्शन 1986 में अपना महोत्सव नई दिल्ली में हुआ था. जिसके बाद काली साह के वंशज संजय कुमार को 1987 में मारीशस जाने का मौका मिला जहां सांग महोत्सव में मिठाई मे खाजा को सर्वश्रेष्ठ मिठाई का दर्जा मिला। 1990 में दूरदर्शन के लोकप्रिय सांस्कृतिक सीरियल सुरभि, वर्ष 2002 में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन व व्यापार मेला नई दिल्ली के अलावे अन्य कई मौके पर खाजे ने धूम मचाई। आज के समय में इस खाजे को भारत के 12 पारंपरिक व्यजंन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश किए जाने की योजना है. काली साह के यहां बने खाजे में 52 परतें होती हैं और साथ ही काफी स्वादिष्ट और कुरकुरा होता हैं. यह नमकीन और मीठा दोनों ही स्वाद में पाया जाता हैं.

जानकारी के लिए बता दे कि बिहार की संस्कृति में भी खाजा पूरी तरह रचाबसा हैं. यहां ब्याहशादी में खाजा खाने का प्रचलन है. शादी में लड़कियों के विदाई के समय यह भेंट में दिया जाता है. वहीं हाल ही में इसे जीआई टैग दिया गया हैं , जिसके बाद लोगों के बीच इसकी डिमांड और बढ़ गयी हैं. आज के समय में शुद्ध देसी घी में बने मीठे खाजा की कीमत 920 रुपये किलों हैं वहीं वनस्पति घी में बना मीठा खाजा 400 रुपये किलो और सादा व नमकीन खाजा 450 रुपये किलोग्राम हैं. सिलाव में बनने वाली खाजा मिठाई की चार वेराइटी है. बारिश के दो माह सावन और भादो को छोड़ दें तो यह मिठाई करीब एक महीने तक खराब नहीं होती है। यहां मिलने वाला खाजा पांच वेराइटी का होता हैं जिनमें मीठा खाजा, नमकीन खाजा, देसी घी वाला, सादा खाजा और खोवा वाला खाज़ा शामिल हैं.

आपको हम बता दे कि खाजा केवल स्वाद के लिए ही नहीं जान जाता बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी काफी फायेदेमंद होता हैं. खाजा का निर्माण गेंहू के आटे, घी और भी कई चीजों से किया जाता हैं. जो की काफी nutritinसे भरा होता हैं और साथ ही यह कामोत्तेजक भी होता हैं.

1.)खाजा गेंहू के आंटे से बनता इसलिए यह वजन में काफी हल्का होता हैं . यह कमजोर शरीर को ताकत देता हैं और वैसे इंसान को यह काफी राहत पंहुचाता है जिसे उलटी की बिमारी हो. यह पेट की पाचन क्रिया को भी दूर करता हैं और आंत के स्वास्थ्य में सुधार करता है. खाजा मनुष्य के शरीर में पोषक देने वाला आहार होता हैं.

2.)घी पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार कर सकता है क्योंकि इसमें एंटीऑक्सिडेंट होते हैं. यह पाचन संबंधी समस्याओं को भी दूर कर सकता है.

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