जब बात बिहार की होती है तो जहन में कुछ ख़ास त्योहार और कुछ ख़ास पकवानों का स्वाद आ ही जाता हैं. यहां छठ की छटी निराली है तो मकर सक्रांति की भी अनोखी हैं, लिट्टी चोखा में अजब बात है और ठेकुआ का अलग ही स्वाद हैं. नमस्कार, मैं प्रज्ञा. आज हम बिहारी जायका में बिहार के उस व्यंजन की बात करेंगे जिसे लोग अपनी डाइट में शामिल करते हैं. एक ऐसा व्यंजन जिसे न तो पकाने की जरुरत होती और न ही गर्म करने की. यह व्यंजन न केवल स्वाद में बेहतर होता है, बल्कि सेहत के लिहाज से भी इसके कई फायदे देकर गए हैं. जिसे खा कर लोग तरोताजा महसुश करते हैं. यह व्यंजन आपके पेट को स्वस्थ और भरा हुआ रख सकता है. हम बात कर रहे है बिहार के फेमस व्यंजन दहीचुड़ा की. आम तौर पर यह व्यंजन बिहार, यूपी, झारखंड के साथ ही नेपाल में लोगों के द्वारा काफी पसंद किया जाता हैं. वहीं अगर बिहार की बात करें तो , बिहार का मिथिला जिला दहीचुड़ा के लिए काफी प्रसिद्ध हैं. यहां के लोग दहीचुड़ा इतना पसंद करते है कि इनके हर भोज में इस व्यंजन को शामिल किया जाता हैं.

बता दे कि बिहार में इस व्यंजन को सबसे ज्यादा पसंद मकर सक्रांति के त्योहार पर किया जाता हैं. बता दे कि पौराणिक कहानियों से लेकर पारंपरिक कर्मकांड में दहीचूड़ा का जिक्र होता है. पूरे भोजपूर में कोई शुभ काम विशेषकर दावत तबतक पूरी नहीं होती जबतक दहीचूड़ा न परोसा जाए. बिना आग यानी चूल्हे के ही यह खाना तैयार हो जाता है. मिठास के लिए पारंपरिक ढंग से इसमें देसी गुड़ का इस्तेमाल करते हैं. यह भोजन हाईफाइबर और लोकैलोरी से भरा हुआ है. यह भोजन हाईफाइबर और लोकैलोरी से भरा हुआ है. वैसे तो मकर संक्रांति पर इसका खास महत्व है लेकिन कई परिवार दैनिक तौर पर बतौर नाश्ता इसे लेते हैं.

वहीं अगर इसके इतिहास को देखे तो, मान्यताओं के अनुसार बिहार में दही चूड़ा खाने की परंपरा यहां उपजी वैदिक कथाओं का असर है. कहते है की जब मनु ने पृथ्वी पर बिज रोपकर खेती की शुरुआत की थी तब अन्न उपजे. जिससे सबसे पहले खीर बनाया गया, जिसे क्षीर पाक कहा गया. इसके बाद दूध से दही बनाने की परंपरा विकसित हुई तो धान के लावे को इसके साथ खाया गया. भोजन को तले जाने की व्यवस्था की शुरुआत तब नहीं हुई थी. महर्षि दधीचि ने सबसे पहले दही में धान मिलाकर भोजन की व्यवस्था की थी. मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इसका साक्षी सारण जिला हैं. बता दे कि बिहार के सारण जिले में माँ अम्बिका भवानी की मंदिर स्थित है. जो की सतयुग के समय ऋषि की तपस्थली हुआ करती थी. एक बार अकाल के समय ऋषि ने माता को दही और धान का भोग लगाया था. तब देवी अन्नपूर्णा रूप में प्रकट हुईं और अकाल समाप्त हो गया.

जैसा की मैंने आपको पहले बताया था कि बिहार के मिथिला जिले में दहीचुड़ा को लोगों के द्वारा काफी पसंद किया जाता हैं और साथ ही बिहार का यह जिला इस व्यंजन के लिए खूब प्रसिद्ध हैं. मान्यताओं की माने तो उनके अनुसार दहीचूड़ा खाने की परंपरा मिथिला से भी जुड़ी हुई है. धनुष यज्ञ के समय मिथिला पहुंचे ऋषि मुनियों ने दही चूड़ा का भोज किया था. इतने बड़े आयोजन में ऋषियों के भोजन से इसे प्रसाद के तौर पर लिया गया, और फिर दही चूड़ा की परंपरा चल पड़ी. आपको यह जान कर हैरानी होगी की मान्यता के अनुसार दहीचूड़ा की आधुनिक परम्परा को लाने का श्रेय बंगाल के गौड़ सिद्धों को भी दी गयी हैं. यह कहानी तब की है जब बिहार नहीं, बंगाल ही स्टेट हुआ करता था. उस समय यहां चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रघुनाथ दास ने बड़े पैमाने पर दही चूड़ा का प्रसाद बंटवाया था. उन्होंने यह उत्सव सज़ा के तौर पर किया था, क्योंकि उन्होंने छिप कर सतसंग सुना था. इसके बाद बंगाल में दही चूड़ा की एक परंपरा बन गयी, जो हर उत्सव की साक्षी है. मिथिला निवासी इस व्यंजन को अपने सभी त्योहारों जैसे जितिया, नवरात्र, तिला सक्रांति, सामा चकेबा, दुर्गा पूजा में शामिल जरुर करते हैं. आम तौर पर इस भोजन को ब्राह्मण जाति के साथ एक लोकप्रिय संबंध सौंपा गया है, इसके साथ ही इसे लोकप्रिय कहावत से भी जोड़ा गया हैं.

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस भोजन को न तो पकाया जाता है और न ही गर्म किया जाता है. जिस वजह से इसके पोषक तत्वों में कामनी नही आती हैं. और इसे खाने वाले लोगों के सेहत बने रहते हैं. तो आइये जानते है दही चूड़ा खाने से होने वाले सेहत से जुड़े फायदों के बारे में.

1.) जो लोग वजन कम करने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं तथा नाश्ते में एक हेल्दी ऑप्शन की तलाश में हैं, वे लोग दहीचूड़ा या दहीचिवड़े का सेवन कर सकते हैं. क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है. साथ ही पोषक तत्वों से भरपूर दहीचूड़ा लंबे समय तक आपके पेट को भरा हुआ रखता है, जिससे आप अनावश्यक आने से बच पाते हैं. इसलिए वजन कम करने वाले लोग अपने आहार में दहीचूड़ा को शामिल कर सकते हैं.

2.) पेट की खराबी या फिर दस्त, कब्ज जैसी समस्या से परेशान लोगों के लिए भी दहीचूड़ा खाना फायदेमंद हो सकता है. लेकिन ध्यान रखें कि दहीचूड़ा में शक्कर की बजाय गुड़ का इस्तेमाल करें. साथ ही आप इसमें एक केला मसलकर भी डाल सकते हैं. इससे पेट की खराबी दूर होने के साथ ही आपका पाचन भी दुरुस्त रहेगा.

3.) दहीचिवड़े या दहीचूड़ा में पर्याप्त मात्रा में आयरन मौजूद होने के कारण यह आयरन की कमी वाले लोगों के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे एनीमिया रोग होने का खतरा टाला जा सकता है. इसके अलावा गर्भावस्था में महिलाओं को दहीचूड़ा का सेवन लाभ दे सकता है, क्योंकि इसके सेवन से उन्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुंचता है और शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी की पूर्ति भी हो जाती है.

दहीचुड़ा के गुणों से तो आप परिचित हो ही गए. आपको बता दे कि इस व्यंजन का सबसे खास बात यह है कि यह मिनटों में तैयार हो जाता है और वह भी बिना किसी झंझट के. तो अगर आपके पास सुबह कम वक्त है तो इससे बेहतर नाश्ता कुछ नहीं हो सकता. बिहार के इस व्यंसन को बिहार वासी आलूगोभी की सब्जी के साथ भी खाना पसंद करते हैं.

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