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भारतीय क्रिकेटर, जो इंग्लिश फैंस के बन गए चहेते, इंग्लैंड में ही बना लिया घर

Bihari News

भारत का वह क्रिकेटर जिसे भारत से ज्यादा इंग्लैंड के लोग करते थे प्यार, क्वीन भी थी दीवानी

भारत का वह स्मार्ट विकेटकीपर, जिसने इंग्लैंड को बना लिया अपना घर

भारत की ओर से अंतराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाले आखिरी पारसी पुरुष क्रिकेटर

फ्लाइंग का शौक रखने वाला खिलाड़ी, जिसने पायलट की ट्रेनिंग भी ली, मां की वजह से त्याग दिया शौक

इंग्लिश काउंटी क्रिकेट खेलने वाले पहले भारतीय, जिसे बेटी के जन्म की खबर क्वीन ने दी थी

भारतीय क्रिकेटर, जो इंग्लिश फैंस के बन गए चहेते, इंग्लैंड में ही बना लिया घर

दोस्तों, विश्व क्रिकेट में कुछ गिने चुने ही खिलाड़ी हैं, जिन्हें अपने देश से ज्यादा दूसरे देश के लोग प्यार करते हों. सिर्फ प्यार ही नहीं लोग इनके दीवाने थे. खिलाड़ी ने भी उनके प्यार को देखते हुए वहीं रहने का फैसला कर लिया था. जिसके बेटी के जन्म की खबर खुद वहां की क्वीन ने आकर दी. दीवानापन ऐसा था कि ट्रैफिक पुलिस देखकर ही छोड़ देते थे. इस लेख में बात होगी भारत के उस विकेटकीपरबल्लेबाज की, जिसे भारत से ज्यादा इंग्लैंड के लोगों ने प्यार किया. आज बात होगी इंग्लिश काउंटी क्रिकेट खेलने वाले भारत के पहले खिलाड़ी की. आज बात होगी फारुक इंजिनियर की, जिसने इंग्लैंड में अपना घर बना लिया. आज के लेख में हम फारुक इंजिनियर के जीवन से जुड़ी कुछ जानी अनजानी और अनकही बातों को जानने की कोशिश करेंगे.

फारुक इंजीनियर मुंबई में एक पारसी परिवार में पैदा हुए हैं, उनके पिता मनेस्क्षा पेशे से एक डॉक्टर थे, और मां मिनी एक हाउसवाइफ. फारुक ने डॉन बोस्को हाई स्कूल, मतुंगा से अपनी स्कूलिंग की और आगे की पढ़ाई मतुंगा के ही पोदार कॉलेज से, जहां से दिलीप वेंगसरकर, संजय मांजरेकर और रवि शास्त्री ने पूरी की. इंजीनियर को खेलों में दिलचस्पी हुई अपने पिता कम कारण, जो टेनिस खेलते थे और एक क्लब क्रिकेटर रह चुके थे. फारुक के बड़े भाई डरिउस भी एक अच्छे क्लब क्रिकेटर थे और उन्होंने युवा फारुक को इस खेल के प्रति इंसपायर किया. हालांकि, इंजीनियर शुरू में एक पायलट बनना चाहते थे, बचपन के दिनों से ही उन्हें उड़ने का शौक था. बॉम्बे फ्लाइंग क्लब में प्राइवेट पायलट्स लाइसेंस के लिए भी उन्होंने क्वालीफाई किया था लेकिन फारुक की मां नहीं चाहती थी कि वो पायलट बनें और इसलिए फारुक ने अपना पूरा ध्यान क्रिकेट पर लगा दिया. फारुक बचपन में बेहद शरारती थे, एक बार क्लास में लेक्चर के दौरान वो अपने क्लासमेट शशि कपूर से बात कर रहे थे, यह देख प्रोफेशर ने उनके तरफ डस्टर फेंका, लेकिन क्लास में मौजूद सभी तब चौंक गए, जब फारुक ने उस डस्टर को कैच कर लिया. उनके भाई डेरियस फारुख को ब्रेबॉर्न स्टेडियम के ईस्ट स्टैंड पर ले गए, जहां उन्होंने डेनिस कॉम्पटन को फील्डिंग करते हुए देखा और डेनिस को देख फारुक उनका नाम लेकर जोरजोर से चिल्लाने लगे . कॉम्पटन उससे प्रभावित हुए और उन्हें च्युइंग गम का एक टुकड़ा दिया जिसे फारुक ने कई वर्षों तक अपने बेशकीमती तोहफे के रूप में सहेज कर रखा था. पिता ने फारुक का दाखिला दादर पारसी कॉलोनी स्पोर्टिंग क्लब में करा दिया, जहां उन्होंने खेल की बारीकियां सीखीं और बाद में टीम के रेगुलर मेम्बर बन गए.

भाई के प्रोत्साहन के बाद फारुक ने दादरपारसी कॉलोनी टीम में विकेटकीपिंग करना शुरू किया था. डेरियस खुद मैसूर की तरफ से रणजी खेलते थे. वह(डेरियस) गेंद को इतनी तेजी से घुमाते थे कि उनकी उंगलियों से खून बहने लगता था, इससे युवा फारुख को खेल अपनाने की प्रेरणा मिली. उस समय विकेटकीपर कभी भी लेग साइड में गेंद को रोकने की कोशिश नहीं करते थे. पहले मैच में जिसमें फारुक ने विकेट कीपिंग की थी, वह दो लेगसाइड स्टंपिंग में शामिल थे, जो उन दिनों बिल्कुल अनसुना था. मुख्यतः अपनी विकेटकीपिंग स्किल के चलते ही फारुक क्लब के नियमित सदस्य बन गए. फारुक सरल जीवन जी रहे थे. सुबह में वो कॉलेज अटेंड करते और दोपहर तक वो ट्रेन पकड़कर दादर से चर्चगेट जाते थे) फारूख सुबह अपने कॉलेज जाते थे और दोपहर तक वह दादर से चर्चगेट के लिए ट्रेन लेते थे और फिर क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया जाते थे. फारुक इंजिनियर ने अपना पहला फर्स्ट क्लास मुकाबला खेला था दिसंबर, 1958 में वेस्टइंडीज के खिलाफ बॉम्बे यूनिवर्सिटी के लिए. वेस्टइंडीज की टीम ने कंबाइंड यूनिवर्सिटी साइड को नस्तेनाबुत कर दिया था, अपने दो तेज गेंदबाजों वेस हॉल और रॉय गिलक्रिस्ट के दम पर. इंजिनियर ने मैच में शून्य और 29 रन बनाए थे. फारुक बॉम्बे की टीम से खेलना चाहते थे क्योंकि उस वक्त बॉम्बे की टीम से खेलना हर खिलाड़ी का सपना होता था, बॉम्बे टीम घरेलू टीमों की प्रमुख थी, क्योंकि टीम के अधिकांश खिलाड़ी पहले से ही टेस्ट क्रिकेटर थे. बोम्बे के पास तब विकेटकीपर के रूप में नरेन तमहाने था, जिसे बाद में फारुक ने रिप्लेस किया.

जोशी और तम्हाने की राइवलरी के बाद जो ’60-61 तक चली थी , भारतीय क्रिकेट ने कुंदरन और इंजीनियर के बीच एक और प्रतिद्वंद्विता देखी, दोनों को कीपिंग से ज्यादा बल्लेबाजी पसंद थी. दोनों भीड़ खींचने वाले, कुंदरन ने उन्हें झुकायाजबकि इंजीनियर ने उन्हें पागलकर दिया. कुंदरन ने मद्रास में ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ ’59-’60 में एक मिनट में 71 रन बनाकर प्रसिद्धि हासिल की, जबर्दस्त स्ट्रोक खेल रहे थे. रेलवेज के लिए खेलते हुए जम्मूकश्मीर के खिलाफ रणजी ट्रॉफी डेब्यू मैच में कुंदरण ने दोहरा शतक जड़ा था. इंजिनियर को प्रसिद्धि मिली थी दिल्ली के खिलाफ एक रणजी मैच के दौरान, जब उन्होंने 7 कैच लपके थे. कुंदरण और इंजिनियर बहुत हद तक एक जैसे ही थे, दोनों मुश्किल कैच पकड़ लेते थे और आसान वाला टपका देते थे. चाइनावार ने कुंदरण को आउट ऑफ बिजनेस कर दिया क्योंकि जिस टीम से वो खेलते थे रेलवेज और सर्विसेज ने कम्पटीशन से अपना नाम वापस ले लिया और कुंदरण सिर्फ 1 मैच ही खेल पाए. इंजिनियर आगे बढ़े, यहां तक कि अब वो ओपन भी करने लगे थे. लेकिन 1964 में, जब इंग्लैंड की टीम ने भारत दौरा किया था, इंजिनियर इंजर्ड थे और कुंदरण ने तब वापसी की और सीरीज में कुल 525 रन बना डाले लेकिन उनके विकेटकीपिंग क्षमता में थोड़ी गिरावट आ गई. चयनकर्ताओं ने तब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ होने वाले सीरीज से कुंदरण को बाहर कर दिया लेकिन इंजिनियर ने उन्हें रिप्लेस नहीं किया बल्कि वो KS Indrajitsinhji से रिप्लेस हुए. इंजिनियर ने कुंदरण से अपनी जंग जारी रखी 1965 न्यूजीलैंड सीरीज में. कुंदरण को बतौर ओपनर सिर्फ 1 टेस्ट खेलने मिला जबकि इंजिनियर विकेटकीपर की भूमिका में थे. कुंदरण को एक बार फिर मौका मिला 66-67 वेस्टइंडीज सीरीज में, जहां पहले टेस्ट में उन्होंने 15 चौकों के साथ 79 रन बनाए थे. अगले टेस्ट में ओपन करते हुए वो 45 मिनट में 39 रन ही बना पाए. उस टेस्ट के खत्म होने के 2 दिन बाद कुंदरण ने वेस्टइंडीज के खिलाफ ही एक टूर मैच में महज 2 घंटों में 4 छक्कों और 11 चौकों के साथ 104 रन बनाए थे लेकिन चयनकर्ताओं को कुंदरण की विकेटकीपिंग अपटूमार्क्स नहीं लगी. ऐसे में अगले टेस्ट में जो कि चेन्नई में खेला जाने वाला था, इंजिनियर को मौका मिला. इंजीनियर ने लंच (94) से पहले लगभग एक शतक बनाकर कुंदरन को बाहर करने के खिलाफ आलोचकों और सार्वजनिक आक्रोश को शांत कर दिया था. उन्होंने 109 का स्कोर बनाया और उसके बाद उन्होंने कुंदरन की ओर कभी मुड़कर नहीं देखा, अब इंजिनियर ने उन्हें पीछे छोड़ दिया था. दोनों के बीच म्यूजिकल चेयर का खेल 1966-67 तक जारी रहा, जब कुंदरन ने अपना बैग पैक किया और स्कॉटलैंड में बस गए.

फारुक इंजिनियर ने अपना टेस्ट इंटरनेशनल क्रिकेट डेब्यू 1960 के दिसंबर में इंग्लैंड के विरुद्ध मुंबई में किया था. सेलेक्शन कमिटी के चेयरमैन लाला अमरनाथ ने विकेटकीपिंग के चलते कुंदरण के ऊपर इंजिनियर को तरजीह दी थी. इंजीनयर भारत के कुछ चुनिंदा बल्लेबाजों में से थे, जो वेस्टइंडीज के घातक तेज गेंदबाज वेस हॉल और चार्ली ग्रिफ्फित के डुओ से नहीं डरते थे. इसी डुओ ने उस दौरान सीरीज में भारतीय बल्लेबाजों के परखच्चे उड़ा दिए थे. यही कारण था जब भारत ने वेस्टइंडीज का दौरा किया था, तब फारुक इंजिनियर भारतीय टीम के फर्स्ट चॉइस विकेटकीपर थे. वेस्टइंडीज की टीम जब 1974-75 के दौरान टेस्ट सीरीज खेलने भारत आई थी तब मीडिया में ये खबरें आई थी कि दिल्ली टेस्ट में इंजिनियर ही भारतीय टीम का नेतृत्व करेंगे क्योंकि तब कप्तान पटौदी बाहर हो गए थे और सुनील गावस्कर इंजर्ड थे. इंजिनियर को बोर्ड ने मैच के एक रात पहले बधाई भी दी थी लेकिन लास्ट मिनट में S Venkataraghavan टॉस के लिए आए. लेकिन इंजिनियर ने अपना दायित्व बखूबी निभाया था, बल्ले से. कोलकाता टेस्ट भारत ने 85 रनों से जीता था. अगले टेस्ट में, जो कि चेन्नई में खेला गया था, विकेटों के पीछे इंजिनियर कमाल थे, सर विवियन रिचर्ड्स का उन्होंने फुल स्ट्रेच कैच लिया था और क्लाइव लायड का एक बेहतरीन स्टंपिंग किया था. लेकिन, बल्ले से वो विफल रहे थे.

इंग्लिश काउंटी क्रिकेट खेलने वाले फारुक इंजिनियर पहले भारतीय हैं. इंग्लिश काउंटी क्लब लैंककशशायर की तरफ से इंजिनियर 1968 से 1976 तक खेले, यहां वेस्टइंडीज के महान क्लाइव लायड के साथ खेले. 1967 के इंग्लैंड दौरे के बाद प्रसिद्द क्रिकेट कमेंटेटर John Arlott चाहते थे कि फारुक हैम्पशायर के लिए खेलें वहीं Worcestershire और Somerset की भी इंजिनियर में दिलचस्पी थी लेकिन इंजिनियर ने आख़िरकार समृद्ध इतिहास और खुबसूरत मैदान वाले Lancashire से खेलने का फैसला लिया. रिटायरमेंट के बाद इंजिनियर ने Lancashire में ही रहने का फैसला किया. सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने लंकाशायर में रहने का फैसला किया और इसके उपाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया. उन्हें मैनचेस्टर में रहने की आदत हो गई थी. उन्हें प्रतिदिन आनेजाने के लिए एक घर और एक कार प्रदान की गई थी, क्लब को दक्षिण मैनचेस्टर के एक उपनगर टिम्परले में इंजीनियर के लिए एक घर भी मिला. बाद में, इंजीनियर Lancashire में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए जो उनका दूसरा घर बन गया था. . Lancashire, 1970 के दशक में निर्विवाद वनडे किंग थे और इंजीनियर, उनके लोकप्रिय ताबीज बन गए. फारुख Lancashire में प्रशंसकों के चहेते बन गए थे. यहां तक ​​कि एक बार एक पुलिस वाले ने उन्हें मैनचेस्टर की सड़कों पर तेज गति से गाड़ी चलाने के लिए रोका लेकिन यह कहते हुए छोड़ दिया: “यदि मैंने तुम्हें बुक किया तो मेरे पिता मुझे मार डालेंगे.”

फारुख का Lancashire में रहना, ओल्ड ट्रैफर्ड की सुंदरता और उन्हें प्राप्त भीड़ के समर्थन के कारण था. वह याद करते हैं कि लंकाशायर में उनके समय के दौरान, प्रशंसक मीलों दूर से टीम का खेल देखने आते थे, ओल्ड ट्रैफर्ड ड्रेसिंग रूम से टीम वारविक रोड देख सकती थी. रेलवे स्टेशन और खेल से पहले, वे प्लेटफॉर्म पर यात्रियों को खाली करते हुए पैक्ड ट्रेनों को देखते थे, खिलाड़ियों को नियमित फैन मेल भी मिलते थे, उनके लॉकर पार्टियों के लिए ऑटोग्राफ और निमंत्रण के अनुरोधों से भरे होते थे.

1983 में इंग्लैंड में भारत की पहली विश्व कप जीत की घटना के बारे में 2021 में 83 नामक एक बॉलीवुड फिल्म रिलीज़ हुई. फिल्म में बोमन ईरानी को इंजीनियर के रूप में दिखाया गया है और यह क्रमशः कबीर खान और अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित और निर्मित है.

फारुक इंजिनियर के निजी जीवन की बात करें तो उन्होंने ब्रिटिश महिला जूली इंजिनियर से शादी की थी. जूली और फारुक को 4 बेटियां हैं मिनी इंजिनियर, टीना इंजिनियर, स्कारलेट इंजिनियर और रोक्सेन इंजिनियर. पहली बेटी मिनी के जन्म से जुड़ा एक बेहद ही दिलचस्प किस्सा है दोस्तों. यह वाक्या सुनकर आप जरुर हैरान हो जाएंगे. 1967 में मंसूर अली खान पटौदी की कप्तानी में भारतीय टीम इंग्लैंड दौरे पर थी. ये वो दौर था जब बच्चे के जन्म के लिए टूर पर जाने से इनकार नहीं कर सकते थे. इस टूर के दौरान फारुक इंजिनियर की पत्नी अपने पहले बच्चे के जन्म की उम्मीद कर रही थीं और डॉक्टर ने जो डिलीवरी की डेट 22 से 26 जून बताई थी, जो लॉर्ड्स टेस्ट से मेल खा रही थी. इसी टेस्ट की पहली सुबह भारतीय टीम को क्वीन से मिलवाया गया था. जब वे टेस्ट के दौरान टीम के साथ थीं तो MCC को भारत से एक टेलीग्राम मिला. उन दिनों तेजी से संदेश पहुँचाने का सबसे अच्छा तरीका टेलीग्राम ही था. चूंकि टेलीग्राम का कवर बधाई वाला था इसलिए टेलीग्राम को MCC के असिस्टेंट सेक्रेटरी डोनाल्ड कैर ने पढ़ लिया था और क्वीन को सौंप दिया था. क्वीन ने भी इसे पढ़ा और अपने पास रख लिया.

जब वे इंजिनियर से मिलीं तो बोलीं – ‘इंजिनियर, आपके लिए अच्छी खबर है.’

इंजिनियर ने जवाब दिया कि वे किसी अच्छी खबर की उम्मीद कर रहे थे. इंजिनियर को अंदाजा था कि ये अच्छी खबर उनके बच्चे के जन्म के बारे में ही हो सकती है.

इंजिनियर ने पूछा, ‘क्या संदेश है लड़का या लड़की, मैडम ?

क्वीन ने पूछा, ‘आपकी क्या इच्छा थी ? ‘

इंजिनियर बोले, ‘मुझे मालूम है कि बेटी ही होगी क्योंकि मेरी मां ने मुझे वायदा किया था कि वे मेरे पहले बच्चे के तौर पर लौटेंगी.’

क्वीन ये जवाब सुनकर हैरान रह गईं और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गईं.

इंजिनियर ने अपनी पहली बेटी का नाम भी अपनी मां के नाम पर ही रखा. क्वीन के मुंह से ये खबर सुनना वे कभी नहीं भूलेंगे.

इंजिनियर ने भारत के लिए 46 टेस्ट मैच खेले, जिसमें उन्होंने 2611 रन बनाए, इस दौरान उनके बल्ले से 2 शतक और 16 अर्धशतक निकले. भारत के लिए उन्होंने 5 वनडे मैचों में 114 रन बनाए. फारुक के नाम 335 फर्स्ट क्लास मैचों में 13 शतक और 69 अर्धशतकों के साथ 13,436 रन दर्ज हैं. फर्स्ट क्लास में उनके नाम एक विकेट भी दर्ज है.

क्या आपको भारत के महान खिलाड़ी फारुक इंजिनियर के बारे में पता था ? कमेंट में हमें बताएं. चक दे क्रिकेट की पूरी टीम फारुक इंजिनियर के उज्जवल भविष्य और स्वस्थ जीवन की कामना करती है.

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