बिहार में जारी सियासी घमासान के बीच में राजनीतिक जानकार कई तरह के मायने मतलब निकाल रहे हैं. खासकर महागठबंधन में जिस तरह के बयान सामने आ रहे हैं उसके बाद यह कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में नीतीश कुमार के सामने कई तरह की परेशानियां आ सकती है. बिहार महागठबंधन के हालिया बयान को अगर हम देखें तो बिहार के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर का एक बयान सामने आया है जिसमें वे अपने आप को एकलव्य का वंशज बता रहे हैं. बता दें कि बिहार के शिक्षा मंत्री ने यह बयान एक कार्यक्रम के दौरान दिया है जिसमें उन्होंने कहा कि लोग गरीब और पिछड़े समुदाय के लोगों पर जुल्म ढाते थे. गरीब और पिछड़े के खिलाफ साजिश रचते थे. गरीब और वंचितों से हिंदुवाद के नाम पर वोट और चंदा लिए. लेकिन कबी भी गरीबों और पिछड़ों का सम्मान नहीं दिया. आगे उन्होंने कहा कि जिन धर्म ग्रंथों में शुद्र को नीच बताया गया, आज वह शुद्र भी पढ़-लिख गया है. बिहार के शिक्षा मंत्री ने आगे कहा कि हम एकलव्य की संतान हैं. एकलव्य की संतान अंगूठा देना नहीं, जवाब देना जानता है. इस दौरान आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि हम शहीद जगदेव प्रसाद की संतान हैं, कुर्बानी देना नहीं, कुर्बानी लेना जानते हैं. आपको बता दें कि इस कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनों वहीं बैठे थे.
प्रो. चंद्रशेखर के इस बयान के बाद देश की राजनीति से जुड़े कई मायने और मतलब निकाले जाने लगे हैं. चंद्रशेखर के बयान के बाद यह कहा जाने लगा है कि अब एक बार फिर से अगड़ो और पिछड़ों की राजनीति शुरू हो गई है. क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश के राजनेताओं के बयान जिस तरह से आ रहे हैं. उसके बाद से यही कहा जा रहा है कि देश की राजनीति एक बार फिर से 90 के दशक की तरफ लौट रही है. 90 के दशक में पूरा देश मंडल और कमंडल की राजनीति का शिकार हुआ था. साल 1977 मे ंजब देश में चुनाव हुआ तो मोरारजी देशाई और जनता पार्टी ने मिलकर सरकार बनाई. इस सरकार ने पिछड़ों की मांग को लेकर एक आयोग का गठन कर दिया और उसके बाद उसकी जो सिफारिश आई उसे मान लिया गया. इसका मतलब यह हुआ कि पिछड़ी जातियों में आने वाले लोगों को 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया. इसके बाद देश में सर्वर्णों और पिछड़ों के बीच में जबरदस्त गोलबंदी शुरू हो गई. स्थिति यह थी कि पूरे देश में तोड़फोड़ जैसी घटनाएं सामने आने लगी. इसी दौरान देश में दो नेता लालू यादव और मुलायम सिंह यादव आरक्षण के पक्षधर बनकर सामने आए और इन्होंने आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया. इस दौरान एक घटना यह घटी कि बीजेपी ने पीवी सिंह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद लालू यादव और मुलायम सिंह यादव देश में आरक्षण के पक्षधर और मुखर नेता के रूप में उभरकर सामने आए. इस दौरान जनता पार्टी में विभाजन हो गया और जनता दल की स्थापना हुई. इसके बाद लालू यादव ने अपनी खुद की पार्टी बनाई राष्ट्रीय जनता दल और इधर नीतीश कुमार और जॉर्ज साहब ने मिलकर समता पार्टी की स्थापना कर दी.
जनता पार्टी से अलग हुए नेता अपनी अपनी पार्टी में ऑबीसी समाज को साधने की कोशिश मे लग गए लालू यादव बिहार में यादव और मुस्लिम वोट बैंक को साधने लगे तो वहीं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम जोकि बीएसपी के प्रमुख थे इन्होंने आरक्षण को अपना आधार बनाया. इसी दौरान बीजेपी अपने आप को पीछे होता देख रही थी तब इन्होंने एक नया नुक्शा निकाला. लालू कृष्ण आडवाणी राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा निकाले तब पूरा देश दो भागों मे बंट गया एक तरफ मंडल आयोग के लोग हो गए तो दूसरी तरफ कमंडल आयोग की बात कही जा रही है. हालांकि इस दौरा बीजेपी राम मंदिर के नाम पर देश को एकजुट करने में सफल रही इसका नतीजा यह निकला कि बीजेपी 2 से 100 सीट के पास पहुंचने लगी थी. और बीजेपी लगातार अपना ग्रोथ करते जा रही है.
अब आइए देखते हैं देश के वर्तमान राजनीति स्वरूप को. देश में इन दिनों राम, राम मंदिर और रामचरित मानस को लेकर सबसे ज्यादा बयान सामने आ रहा है. बीजेपी जहां राम मंदिर को लेकर बयान दे रही है तो वहीं रामचरित मान को लेकर विपक्ष की तरफ से बयान सामने आ रहे हैं. अब देखिए न बिहार के शिक्षा मंत्री रामचरित मानस को लेकर बयान दिये हैं तो वहीं स्वामी प्रसाद मौर्या के भी बयान इसी तरह के हैं. मौर्या के बयान कि तो साधु संत समाज ने भी विरोध किया है. इतना ही नहीं मौर्या के बयान को वापस लेने को भी कहा गया है. लेकिन उन्होंने उसे वापस लिया नहीं है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजनीतिक पार्टियों की तरफ से लगातार आ रहे बयान को उसी नजर से देखने की जरूरत है.
अगर देश की विपक्षी पार्टियां इसी तरह के बयान देती रही तो आने वाले सालों में होने वाले चुनाव पर इसका असर साफ साफ देखने को मिलने वाला है. बता दें कि विपक्ष यह चाह रही है कि पिछड़ा समाज बीजेपी से दूर हो जाए क्योंकि बीजेपी ने राम का नाम लेकर पिछड़ा समाज को बीजेपी के साथ जोड़ा था अब रामचरित मानस के दोहों के आधार पर विपक्ष इन पिछड़ी जातियों को बीजेपी से दूर करना चाह रही है. ऐसे में अब देखना दिलचस्प यह है कि 2024 लोकसभा चुनाव में कौन किसपर भारी पड़ता है लेकिन इतना तो तय है कि इसका असर देखने को मिलने वाला है.