बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात एक ऐसे बिहारी के बारे में जिन्होंने अपनी लेखनी से देश दुनिया में अपना नाम कमाया है. इस लेखक को उत्तर छायावाद के प्रमुख स्तंभों में से एक माना जाता है. बता दें कि गोपाल सिंह नेपाली के गीत उस समय के तत्कालीन समय में लोगों को खुब पसंद आया था. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस लेखक के द्वारा लिखे गए गीतों को हिंदी सिनेमा मे जगह मिली थी और उस समय करीब 400 गाने इन्होंने लिखे थे. इन्होने पत्रकारिता के दुनिया में भी एक स्थान हासिल किया है. इनके द्वारा साल 1962 में भारत और चीन के बीच हुए युद्ध के दौरान लिखी गई कविताएं काफी प्रसिद्ध हुई थी. अब तक आप भी समझ ही गए होंगे हम बात कर रहे हैं गोपाल सिंह नेपाली के बारे में

गोपाल सिंह नेपाली का जन्म 11 अगस्त 1911 को बिहार के पश्चिम चंपारण के बेतिया जिले में हुआ था. इनका मूल नाम था गोपाल बहादुर सिंह. इनके बिता रेलवे में हवलदार मेजर थे. गोपाल सिंह नेपाली की शुरुआती शिक्षादीक्षा पेशावर, अफगानिस्तान देहरादून आदी सैनिक छावनियों में हुई. इसके बाद साल 1932 ईं. में उन्होने बेतिया राज स्कूल से प्रवेशिका तक शिक्षा हासिल की लेकिन मैद्रिक की परीक्षा में शामलि होने के लिए सेंटअप नहीं हो सके. इसके पहले साल 1931 के कलकत्ता के अखिल भारतीय हिंदी सम्मेलन में इनकी मुलाकात शिवपूजन सहाया, रामधारी सिंह दिनकर रामवृक्ष बेनीपुरी बनारदी साद चतुर्वेदी जैसे साहित्कारों से हुई. आपको बता दें कि गोपाल सिंह नेपाली बेतिया राज के पुस्तकालय में बैठकर साहित्य का अध्ययन किया करते थे. गोपाल सिंह नेपाली को बचपन से ही साहित्य के प्रति रूची था. गोपाल सिंह नेपाली की शादी नेपाल सरकार के गुरु पुरोहित पंडित विक्रम राज की सुपुत्री वीणआ रामी नेपाली से हुई थी.

बता दें कि गोपाल सिंह नेपाली की उम्र जब 22 साल की थी तब ही उन्होंने कपहला कविता संग्रह उमंग को प्रकासित करवाया था. इसके दो साल के बाद उन्होंने दूसरा काव्य संग्रह पक्षी का प्रकाशन करवाया था. जब भारत और चीन के बीच में युद्ध हुआ था उस समय उनकी अनेक कविताएं धर्मयुग में प्रकाशित हुई थी. इस दौरान नेपाली ने पत्रकारिता में भी जोर आजमाइश की थी. गोपाल सिंह नेपाली ने शुरुआती समय में प्रभाक और दे मुरली पत्रिकाएं निकाली उसके बाद उन्होंने सुधा पत्रिका से भी जुड़े थे. लेखन के प्रति उनकी रूची होने के कारण बेतिया राज के प्रेस प्रबंधक भी रहे हैं.

देश में साहित्य का वह दौर था जब छायावाद के चार स्तंभ प्रसाद, पंथ निराला वर्मा जैसे कवियों का जोड़ था. साथ ही उन दिनों दिनकर जी की लोकप्रियता भी थी ऐसे में एक जनकवि बनना एक बड़ी बात थी. आपको बता दें कि इस दौरान गोपाल सिंह नेपाली एक जनकवि के रूप में लोगों के सामने आए. और लोकमानस में उतरने के लिए अपनी एक अलग राह बनाई थी. इस दौरान जब छायावाद का दौर था उसके बाद भी उन्होंने अपना एक अलग राह चुना. जब उनकी लेखनी लोगों के बीच में आने लगी तो वे औरे से अलग थे. हालांकि वे इस समय तक फिल्मी दुनिया में भी जुड़े लेकिन अपनी शर्तों के साथ. उन्होंने बॉलीवुड के साथ 300 गीत फिल्मों के लिए लिखे थे. गोपाल सिंह नेपाली ने साल 1944 से लेकर 1956 तक सिनेगा जगत को अपना समय दिया. उन्होंने फिल्म नजराना में साल 1949-50 में सनसनी में 1950-51, साल 1950-51 में सनसनी, खुशबू फिल्म में 1954-56 के दौरान लगभग 60 फिल्मों में 300 से 400 गाने दिए है. आजाद भारत में साल 1956 से लेकर 1963 तक इनहोंने स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम किया. जब रामधारी सिंह दिनकर ने गोपाल सिंह नेपाली की कविता सुनी तो वे गदगद हो गए थे. इतने लोकप्रिय गीत लिखने के बाद भी वे लम्बे समय तक आर्थिक तंगी से जुझते रहे. अंतिम में उनकी मुलाक़ात फिल्मी दुनिया के तुलाराम जालान से हुई और उन्होंने गोपाल सिंह नेपाली से अनुबंध कर लिया. उसके बाद नेपाली ने सर्वप्रथम फिल्म मजदूरके लिए गीत लिखा था इसके बाद नेपाली ने करीब 60 फिल्मों के लिए 400 गीत लिखे.

गोपाल सिंह नेपाली के बारे में यह कहा जाता है कि इनकी कविताओं में राष्ट्रीय चेतना की धमक आती थी. गांधी जी प्रभावित होने के कारण इनकी कविताओं में समाजवाद दिखता है.आपको बता दें कि जब गोपाल सिंह नेपाली प्रेम का वर्णण करते हैं तो वे जवानी, राग, स्नेह, रूप, कोमल मधुर आदि शब्दों का जिक्र करते हैं लेकिन जब वे क्रांति का जिक्र करते हैं तो जंजीर. ज्वाला, चिनगारी धूंध, कराल, दुःख का प्रयोग करते हैं इसीलिए कहा जाता है कि गोपाल सिंह नेपाली की कविताओं में आपको एक सुगमता दिखेगी.

चीनी सेना के विरोध में लिखी गई कविता को सुनने के बाद देश के राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने उनकी कविता के लिए उन्हें बधाई दी थी जिसमें उन्होंने कहा था कि इस कविता को हिंदी और उर्दू में छापकर सारे भारत में बांटवा देना चाहिए. उस कविता का बोल था चीनी लुटेरों को हिमालय से निकालो. गोपाल सिंह नेपाली ने अपनी कविताओं के माध्यम से यह कहने की कोशिश की है कि हमने देश की आजादी भले ही अहिंसा से लिए हैं लेकिन अब हम चुप बैठने वालों में से नहीं है.

गोपाल सिंह नेपाली की कविता

इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही ।

पर्वतपहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यही ।।

अंबर में सिर, पाताल चरण

मन इसका गंगा का बचपन

तन वरणवरण मुख निरावरण

इसकी छाया में जो भी है, वह मस्‍तक नहीं झुकाता है ।

ग‍िरिराज हिमालय से भारत का कुछ ऐसा ही नाता है ।

साहित्य का यह नायक 17 अप्रैल 1963 को भागलपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर आखिरी सांस ली. उन्होंने अपने जीवन के मात्र 53 साल में हिंदी साहित्य में जो योगदान दिया वह कालजयी है. हिंदी और नेपाली साहित्य और फिल्मी दोनों ही क्षेत्र में महान कवि को हमेशा याद किया जाएगा.

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