बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में हम बात करेंगे एक ऐसे प्रतिभाशाली बिहारी के बारे में जिन्होंने पूरे देश के छात्रों को फिजिक्स पढ़ना सिखाया. फिजिक्स के बारे में लोगों के मन में एक धारणा थी कि यह रटने वाला वाला विषय है उस भ्रम से छात्रा को दूर किया. आज छात्र जब इंजिनियरिंग की तैयारी करते हैं तो इनकी लिखी हुई किताब को गीता और बाइवल की तरह पढ़ते हैं पता न कौन सा कॉन्सेप्ट छूट जाए और हम पीछे रह जाएं. ऐसे में इस बिहारी लाल ने देश को भौतिकी के साथ ही इंजिनियरिंग को भी सरल बनाया है. इंजिनियरिंग के छात्र भले ही इनके किताब को गीता बाइवल मानते हों लेकर जब वे बुक स्टोर पर जाते हैं तो यही कहते हैं हमें H.C Verma की किताब चाहिए न की वे कहते हैं कॉनसेप्ट ऑफ फिजिक्स चाहिए. जी हां आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहे हैं हरीश चंद्र वर्मा के बारे में. जो फिजिक्स की दुनिया में H.C Verma के नाम से जाने जाते हैं.
प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी H.C verma बचपन में पढ़ने में उतने बेहतरीन नहीं थे, उन्हें सभी विषयो में पास होने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा था. कहा जाता है कि उस समय गांव में लोग रटकर किसी तरह से अपनी पढ़ाई को पार करते थे. लेकिन H.C verma को यह नहीं भाता था. लेकिन किसी तरह से उन्होंने दशवीं तक की पढ़ाई इस तरह की. उनके बचपन की एक घटना का जिक्र किया जाता है. उनकी मां पढ़ी लिखी नहीं थी. ऐसे में यह पता ही नहीं चलता था कि एस.सी वर्मा क्या पढ़ रहे हैं हालांकि उनकी मां की इतनी जिम्मेदारी थी कि वे अपने बेटे के साथ बैठे रहे ताकि वह पढ़ता रहे. उन्हें छठ में बनने वाला ठेकुआ बहुत पंसद था और छठ के दौरान खुब ठेकुआ बना था. वे ठेकुआ खाने के बहाने लंबे समय तक पढ़ते थे. मां और बेटे के बीच में यही शर्त था कि जितने देर पढ़ेंगे उन्हें उतना ठेकुआ खाने के लिए मिलेगा. इस मां को इस बात का कुछ भी भान नहीं होता था कि उनका बेटा क्या पढ़ रहा है.
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए वे कहते हैं कि बचपन में लंबे समय तक किसी एक कमरे में बैठे रहते थे. इस दौरान उन्होंने सोचा कि क्यों न जो किताब हमें पढ़ाई जाती है उसे ही इस दौरान बैठकर पढ़ा जाए, इस अभ्यास को करते हुए उन्हें किताब के चैप्टर समझ में आने लगे थे. अब उन्हों धीरे धीरे सभी विषयों पर पकड़ बनानी शुरू कर दी थी. स्थिति यह थी कि वे लंबे समय से जिस विषय में फेल होते आ रहे थे उन सभी विषयों में वे पास हो गए. वे कहते हैं कि उस दिन को याद कर मैं आज भी रोमांचित हो जाता हूं. अब उनको पढ़ाई में मन लगने लगा था. किताबों की भाषा उन्हें समझ में आने लगी थी. इसके बाद उनका दाखिला सीधा पटना साइंस कॉलेज में हुआ. जहां उन्होंने B.Sc ऑनर्स में पढ़ाई शुरू की. वे बताते हैं कि यहां मुझे ऐसे शिक्षक मिले जो हमें विषयों के बारे में सीखाते थे समझाते थे. यहां से उन्होंने बीएससी ऑनर्स की पढ़ाई पूरी की उसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान–कानपुर से M.SC की पढ़ाई की है. यहीं से उन्होंने IIT कानपुर से पीएचडी भी पूरा किया. इसके बाद वे डॉ. एचसी वर्मा के रूप में पटना सांइस कॉलेज आए. उनके लिए यह किसी सपने जैसा था. वे छात्रों को अच्छे नंबर के पीछे भागने से अच्छा उसे सीखने पर जोर देते थे. और उन्होंने इस बात की इच्छा थी कि हमेशा सीखने जैसा माहौल बना रहे. जिससे की छात्रों का भौतिकी के प्रति स्नेह बना रहे.
पटना साइंस कॉलेज में प्रोफेसर बनने से पहले उन्होंने अमेरिकी लेखक डेविड हॉलिडे और रॉवर्ट रेसनिक के साथ मिलकर उन्होंने एक किताब लिखा है जिसका नाम है फिजिक्स के फंडामेंटल. आज यह पुस्तक रेसनिक एंड हॉलिडे के नाम से पूरी दुनिया में जाना जाता है. उन्होंने अपने बचपने के दिनों के यादों को साक्षा करते हुए यह भी कहा है कि जब वे ग्यारहवीं और बारहवीं की पढ़ाई कर रहे थे उस समय उन्हें टेक्स बुक ने खुब मदद किया था. वे कहते हैं कि छात्रों की पहली पसंद होनी चाहिए टेक्ट बुक. इतने दिनों तक पढ़ाने के बाद इस बाद का आभास होने लगा था कि छात्रों में फिजिक्स के प्रति उस तरह की दिवानगी नहीं दिख रही है. तब उन्होंने सोचा कि एक ऐसी पुस्तक निकाली जाए जो आम छात्रों के बीचमें एक समझ को विकसित किया जा सके. इस दौरान उन्होंने कई लेखकों से संपर्क स्थापित किया लेकिन उनकी कसौटी पर कोई भी खरा नहीं उतरा. हालांकि आठ साल के मेहनत के बाद साल 1992 में उन्होंने कॉन्सेप्ट ऑफ फिजिक्स के दो अलग अलग खंड में लिखा. यह छात्रों के बीच में काफी लोकप्रिय हुआ. हालांकि इस पुस्तक के आने के तीन साल के बाद परीक्षा के पैटर्न में भी बदलाव हो गया लेकिन छात्रों ने उस पुस्तक को बाद में भी नहीं छोड़ा.
फिर आया साल 1994 अब प्रोफेसर H.C Verma IIT कानपुर के साथ जुड़ गए. यहां उन्होंने बीटेक के छात्रों को पढ़ाना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि भौतिकी पढ़ाने से जुड़ी समस्याएं बिहार तक सीमित नहीं है. IIT में भी इसी तरह की समस्या है. यहां के छात्र भी कुछ नया करने के बारे में ज्यादा नहीं सोच पा रहे हैं. इस दौरान उन्होंने क्वांटम फिजिक्स पुस्तक भी लिखा था.
इसके बाद उन्होंने इस पूरी समस्या के मुल को समझने की कोशिश की जिसमें उन्होंने नौवी क्लास से 12 वीं क्लास तक के भौतिकी पढ़ाने वाले शिक्षकों के साथ बात किया जिसमें पता चला कि यहां स्थिति और भी खराब है. तब उन्होंने फैसला किया कि इन सभी के लिए अलग से कंटेट बनाने की जरूरत है. इस दौरान उन्होंने इस तरह का कोर्स डिजाइन किया जिसमें 40 मिनट में किसी भी कक्षा में कैसे बच्चों को प्रयोगिक रूप से पढ़ाया जा सके. इस दौरान उन्होंने प्रयोग के तौर पर यह बताया कि किस तरह से बच्चों को पढ़ाना है. इसके बाद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में वे योगदान देने लगे. जैसे स्कूल फिजिक्स परियोजना, शिक्षा सोपान शामिल है. इसके बाद उन्होने साल 2017 में पूरी तरह से औपचारिक रिटायरमेंट की घोषणा की बता दें कि वे 38 सालों से लोगों को फिजिक्स की बारीकियों को समझा रहे हैं. हम इनके लंबी उम्र और स्वस्थ्य रहने की कामना करते हैं.