बिहार में विधान परिषद की पांच सीटों पर चुनाव की घोषणा कर दी गई है. जिसमें परिषद की तीन सीटें शिक्षकों के लिए हैं तो वहीं दो सीटें स्नातक सीटों के लिए निर्धारित की गई है. ऐसे में कई राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों ने अपना अपना नामांकन भी करवा लिया है. आपको बता दें कि विधान परिषद की पांच सीटों के लिए होने वाले चुनाव की तारीख 31 मार्च तय की गई है. बता दें कि विधान परिषद का चुनाव जिन पांच स्थानों पर होना है उसमें गया स्नातक और गया शिक्षक का चुनाव है उसके बाद सारण शिक्षक का चुनाव है फिर कोसी शिक्षक का चुनाव है. इन स्थानों पर नामांकन का आखिरी तारीख 13 मार्च निर्धारित की गई है. आपको बता दें कि पिछले साल अक्टूबर महीने में MLC केदार नाथ पांडेय का मृत्यु के बाद यह सीट खाली हुई है जहां पर उपचुनाव होना है.
आइए अब एक नजर डाल लेते हैं उम्मीदवारों के नामांकन को लेकरः– सारण स्नातक क्षेत्र से डॉ. महाचंद्र प्रसाद सिंह को उम्मीदवार बनाया है तो वहीं गया स्नातक क्षेत्र में श्री अवधेश नारायण सिंह को उम्मीदवार बनाया गया है तो वहीं कोशी शिक्षक क्षेत्र से श्री रंजन कुमार को बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं सारण शिक्षक उप चुनाव में बीजेपी ने श्री धर्मेंद्र सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है. सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से जदयू ने निवर्तमान MLC वीरेंद्र नारायम यादव को उम्मीदवार बनाया है. जबकि कोसी से जदयू के संजीव कुमार सिंह को टिकट दिया गया है. शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से और सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से भाकपा के आनंद पुष्कर को मैदान में उतारा गया है. महागठबंधन और एनडीए की तरफ से उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है. वहीं गया स्नातक से राजद के टिकट पर पुनीत कुमार को टिकट दिया गया है. बता दें कि सारण शिक्षक सीट दिवंगत केदार पांण्डेय के पुत्र आनंद पुष्कर को दिया गया है. वही, एनडीए की तरफ से एक सीट लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास को दी गई है. जोकि गया शिक्षक सीट से डीएन सिंह चुनाव मैदान में होंगे.
इस एमएलसी चुनाव में जो सबसे अहम बात निकलकर सामने आई है वह हैं दोनों ही गठबंधन में अपने अपने धर्म का पालन किया है. एक तरफ जहां एनडीए में चिराग पासवान को एक सीट दिया गया है तो वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन में भी राजद और वाम दलों को इसका हिस्सेदार बनाया गया है. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि इस बार के चुनाव में यह साफ हो जाएगा कि महागठबंधन और एनडीए के साथी एक दूसरे के प्रति कितने वफादार हैं. क्योंकि इस चुनाव के बाद ही 2024 और 2025 का भविष्य भी तय हो जाएगा. अगर इधर जदयू को ज्यादा नुकसान होता है तो ऐसे में फिर कई तरह के कयास लगाए जाने लगेंगे. जैसा कि पिछले कुछ विधानसभा के उपचुनाव में देखने को मिले हैं.