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क्या न्यौते से बदल जाता है नीतीश का मन? कभी मोदी को बुलाकर नहीं दिया था भोज !

Bihari News

बिहार कि सियासत ही ऐसी है जिसके बारे में कुछ भी कहना बड़ा मुश्किल है. कब किस समय किस तरह हवा का रुख बदल जाए कोई कुछ नहीं कह सकता है. दरअसल बिहार कि सियासत इन दिनों गठबंधन के भरोसे हैं. जबतक प्रदेश में किसी एक पार्टी की सरकार नहीं बनेगी तब तक राजनीति में उठापटक की खबरें चलती रहेगी. पिछले दिनों जिस तरह से न्यौता पॉलिटिक्स हुई उसके बाद से हर कोई सोचने पर मजबूर हो गया है. दरअसर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में यह कहा जाता है कि रमजान की इफ्तार पार्टी के आयोजन के बाद उन्होंने अपना पाला बदल लिया था. बता दें कि उस समय दोनों ही तरफ से न्यौता देने और लेने का दौर चला था. कभी राजद के नेता जदयू के यहां गए थे और जदयू के नेता राजद के यहां. उसके बाद सभी लोगों को पता है कि नीतीश कुमार ने पार्टी ही बदललिया था. उस समय की बात है नीतीश कुमार ने प्रोटोकाल का ख्याल किये बगैर राबड़ी आवास पहुंच गए थे. और उसी के बाद यह कहा जाने लगा था कि अब नीतीश कुमार का मन बदल रहा है. जिसके बाद बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गई. लालू यादव और नीतीश कुमार के बीच में न्यौता का दौर तेजप्रताप यादव की शादी के समय से चला आ रहा है. हालांकि अब जब तेजस्वी यादव को बेटी हुई है तो लोग यह कह रहे हैं कि जाकर बधाई नहीं दी है. हालांकि नीतीश कुमार ने अपने बयान में कहा है कि मैंने फोन कर तेजस्वी को बधाई दी है.

जब न्यौता कि बात चल ही रही है तो नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी के बीच में न्यौता चला था लेकिन यह बीच रास्ते में ही अटक गया. यह घटना साल 2010 की है जब लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में एनडीए 2009 का लोकसभा चुनाव हार गई थी. जिसके बाद साल 2010 में लुधियाना में NDA की तरफ से रैली का आयोजन किया गया था. इस रैली में नीतीश कुमार भी शामिल होने के लिए पहुंचे थे. इसी रैली में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होने के लिए पहुंचे थे. लेकिन इस रैली के दौरान एक ऐसी घटना हुई जिससे नीतीश कुमार असहज हो गए थे. दरअसल मंच पर नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार का हथ पकड़कर उठा दिया था. इसके जरिए नरेंद्र मोदी ने संदेश देने की कोशिश की थी कि नीतीश कुमार भी नरेंद्र मोदी के साथ हैं. यानी की इनका संबंध नीतीश कुमार से अच्छा है.

रैली समाप्त होने के बाद नीतीश कुमार ने यह कहा था कि उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं है कि नरेंद्र मोदी मंच से यह कर सकते हैं. लेकिन नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि मंच से कर भी क्या सकते हैं. हालांकि इस समय तक एनडीए को मिली हार के बाद और नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी. बिहार के बीजेपी के कई नेता यह चाह रहे थे कि अब नरेंद्र मोदी को गुजरात से निकलकर देश की सियासत में एक्टिव होने की जरूरत है. इतना ही नहीं बीजेपी के नेता तो यह भी चाहते थे कि नरेंद्र मोदी 2010 के विधानसभा चुनाव में बिहार बीजेपी के लिए प्रचार भी करें. हालांकि इस दौरान बीजेपी ने नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के साथ ही एक तस्वीर बिहार के सभी अखबारों में फुल पेज विज्ञापन करवाया था. जिसके बाद नीतीश कुमार बीजेपी के इस रवैये से खफा थे. बिहार में बीजेपी के कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी जिसमें कार्यकारिणी के सदस्यों के लिए रात्रि भोज का आमंत्रण दिया गया था. लेकिन यह भोज शुरू होने के पहले रद्द कर दिया गया. उस समय तक पूरे पटना में नरेंद्र मोदी और उस समय के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के बैनर पोस्टर लगे हुए थे. भोज रद्द होने के बाद बीजेपी के नेताओं को काफी शर्मिंदगी महसूस हुई थी. हालांकि बाद में बीजेपी ने कहा कि जदयू की तरफ से रद्द किया गया जबकि सीएम नीतीश कुमार का बयान था कि बीजेपी की तरफ से इसे रद्द किया गया था. बिहार के मुख्यमंत्री ने बिहार में आए बाढ़ से बचाव के लिए गुजरात सरकार से मिली आर्थिक मदद को लौटा दिया था. यह सब कुछ इसलिए हुआ था क्योंकि नरेंद्र मोदी की छवि एक हिंदू नेता की थी. इन सब के बाद नीतीश कुमार बीजेपी से अलग हो गए और 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने अलग होकर चुनाव लड़ा. उस मोदी लहर में जदयू और कांग्रेस को 2-2 सीटें मिली जबकि राजद को चार सीटें मिली. लेकिन इस बार स्थिति एकदम उलट है. इस बार महागठबंधन एक साथ है. हालांकि कांग्रेस का स्टैंड अभी भी क्लियर नहीं है कि उन्हें क्या करना है.

ऐसे में यह कहा जा रहा है कि जिस तरह से नीतीश कुमार महागठबंधन को एकजुट करने में जुटे हुए हैं. अगर उसमें वे सफल रहते हैं तो बीजेपी के लिए परेशानी बढ़ा सकते हैं.

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