बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात करेंगे एक ऐसे बिहारी के बारे में जिन्होंने एक प्रोफेसर से लेकर राज्पाल कर का सफर तय किया है. इनके बारे में यह कहा जाता है कि यह जहां कही भी रही हो इन्हें हमेशा अपनी माटी अपने घर की चिंता रही है. बिहार आने के बाद बिहार के लोगों से मिलना उनसे बातें करना और यहां का भोजन इन्हें सबसे ज्यादा पसंद है. इस घटना से आपको अंदाजा लग जाएगा की वह अपने प्रदेश अपनी माटी से कितना प्यार करती थी. एक समय वह महाराष्ट्र में थी और उस समय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री गोपीनाथ मुंडे हुआ करते थे. उस कार्यक्रम में खाने की जो व्यवस्था थी लेकिन उन्होंने मंच से कहा था कि जो बिहारी भोजन दही चूड़ा और सत्तु है उसका कोई जोड़ नहीं है. इससे सेहत खराब नहीं होता है. स्वाद भी लाजवाब है जिसके बाद तालियों की गड़गड़ाहट ही सुनाई दे रही थी. हम बात कर रहे हैं एक प्रोफेसर से लेकर राज्यपाल तक का सफर तय करने वाली बिहार की बेटी डॉ. मृदुला सिन्हा के बारे में

डॉ. मृदुला सिन्हा का जन्म मुजफ्फरपुर जिले के कांटी छपरा में 27 नवंबर 1942 को हुआ था. इनके माता का नाम अनुपा देवी और पिता का नाम बाबू छबीले सिंह था. उनकी शुरुआती पढ़ाई लिखाई गांव में ही हुई थी. इसके बाद मनोविज्ञान में एमए की पढ़ाई करने के बाद बीएड किया. B.ED करने के बाद मुजफ्फरपुर के एक कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर बहाल हुई थी. उसके बाद मोतिहारी में एक कॉलेज में प्रिंसिपल बनी हालांकि कुछ दिनों के बाद उन्होंने यह नौकरी छोड़ दी थी.

प्रिंसिपल की नौकरी छोड़ मृदुला सिन्हा साहित्य की दुनिया में आ गई. साल 1959 में उनका विवाह डॉ. रामकृपाल सिन्हा के साथ हुआ जोकि उस समय अंग्रेजी के प्रोफेसर थे. इसी समय उन्होंने बीजेपी से अपना नाता जोड़ लिया. तब पूरे देश में बीजेपी के सांसद बहुत कम हुआ करते थे. आज की तरह बीजेपी का बोलबाला नहीं था. मृदुला सिन्हा के राजनीति जीवन को लेकर यह भी कहा जाता है कि मृदुला सिन्हा के पति जनसंघ में थे और वे इन दिनों सक्रिय हो गए थे. इस दौरान घर में भी नेताओं का आनाजाना लगा रहता था. उस समय उन्हें बीजेपी की केंद्रीय कार्यसमिति की सदस्य भी बनाया गया था. साथ ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्य काल में वह समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष रही. बाद के समय में उन्होंने पांचवा स्तंभ नाम से एक सामाजिक पत्रिका निकाला. जिसे लोकतंत्र के पांचवे संतभ के रूप में मान्यता दिलाने का प्रयास किया. इनकी एक पुस्तक एक थी रानी ऐसी भी की पृष्ठ भूमि पर आधारित राजमाता विजया राजे सिन्धिया को लेकर एक फिल्म भी बना था.

मृदुला सिन्हा के राजनीति जीवन को लेकर यह भी कहा जाता है कि मृदुला सिन्हा के पति जनसंघ में थे और वे इन दिनों सक्रिय हो गए थे. इस दौरान घर में भी नेताओं का आनाजाना लगा रहता था. इसके बाद साल 1967 के चुनाव में लोग लोग धीरेधीरे इनकी रुचि राजनीति में सक्रिय होने लगा था. साल 1968 से 1977 तक वे मुजफ्फरपुर के भारतीय शिशु मंदिर में प्रधानाध्यापिका रही. इस दौरान वह गांव को अच्छे से जानी समझी. उनके रगरग में रचीबसी थी. रामकृपाल बाबू ने हमेशा उनको नया करने और रचने के लिए प्रोत्साहित किया. फिर क्या था लिखने की आजादी मिल गई. अब मृदुला का साहित्य सृजन में आगे बढ़ गया. अब वह समय आ गया था जब मृदुला सिन्हा बिहार की पत्रपत्रिकाओं में छपने लगीं थी. इस दौरान वह सृजन करती रहींचाहें वो शिक्षिका रहीं, चाहें समाजसेविका या फिर सक्रिय राजनीति में रही हो. वह अपनी कलम से रचनाओं को एक आकार देती रही. उन्हें बुनती रही.

मृदुला सिन्हा की रचनाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है. इनमें आत्मकथा, जीवनी….साहित्य की सभी विधाएं शामिल हैं. ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जीवनी–एक थी रानी ऐसी भी, लिखी थी जिसपर बाद में फिल्म भी बनी. नई देवयानी, घरवास, ज्यों मेहंदी को रंग, देखन में छोटन लगे, सीता पुनि बोली, यायावरी आंखों से, ढाई बीघा जमीन, मात्र देह नहीं है औरत, अपना जीवन, अंतिम इच्छा, परितप्त लंकेश्वरी, मुझे कुछ कहना है, औरत अविकसित पुरुष नहीं हैं, चिंता और चिंता के इंद्रधनुषीय रंग, या नारी सर्वभूतेषु, एक साहित्यतीर्थ से लौटकर. इसके बाद मृदुला सिंहा की अगली उपन्यास जैसी ही टीवी सिरियल के रूप में छोटे पर्दे पर आई उसके बाद बाद ही विजयाराजे सिंधिया को को लेकर एक फीचर फिल्म बनी थी. उन्होंने अपने साहित्य जीवन में 46 कृतियों की रचना की साथ ही उनकी रचनाओं पर कितने ही शोध हो चुके हैं और कई छात्र उनकी कहानियों के मर्म पर पीएचडी कर रहे हैं. आपको बता दें कि इनको कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुका है.

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मृदुला सिन्हा भारतीय समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष के रूप में काम किया. जब पीएम नरेंद्र मोदी बने तो उन्होंने इन्हें स्वच्छ भारत अभियान का एम्बेस्डर बनाया था. इसके बाद 31 अगस्त 2014 को गोवा की राज्यपाल बनी और 2 नवंबर 2019 तक इस पद पर बनी रही. जब वह गोवा की राज्यपाल बनी तो वह वहां काफी लोकप्रिय रही.

मृदुला सि्नहा ने अपने साहित्यिक जीवन में उपन्यास, कहानी संग्रह, निबंध संग्रह और लघु कथा संग्रह किया है.

उन्होंने उपन्यास के रूप में ज्यों मेंहंदी को रंग, नई देवयानी, घरवास, अतिशय. कहानी संग्रह के रुप में साक्षात्कार, स्पर्श की तासीर, एक दीये की दीवाली, निबंध संग्रहआईने के सामने, ,,ग मानवी के नाते. लघुकथा संग्रहदेकने में छोटे लागे.

मृदुला सिन्हा को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण सम्मान, दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार के साथ ही कई अन्य सम्मान दिये गए हैं.

बिहार की बेटी 18 नवंबर 2020 को इस दुनिया से विदा हो गई. मृदुला सिन्हा के निधन के बाद उस समय के तत्कालिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने दुःख जताया.

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