देश की राजनीति में इन दिनों कई बड़े उठा पटक देखने को मिलने वाला है. और दिखने भी लगा है. दिश की सियासत में इन दिनों कई तरह की बातें चल रही है. एक तरफ जहां पूरा विपक्ष एकजुट हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी अपने कुनबे को मजबूत करने को लेकर काम कर रही है. विपक्ष में जहां बीजेपी के खिलाफ के नेता अपने आप को एकजुट कर रहे हैं तो वहीं बीजेपी अपने पुराने साथियों को एक बार फिर से तलाशने की कोशिश कर रही है और उनसे मुलाकात भी कर रही है. ताकि आगामी चुनाव में उनकी स्थिति मजबूत हो सके. लेकिन इन सब के बीच में एक सवाल है जोकि बार बार लोग पुछ रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में जिस तरह से NDA में उनके अपने साथी उनसे दूर गए हैं उसका कारण क्या है? और दूसरा यह कि क्या जिस तरह से विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश की जा रही है यह आने वाले दिनों में उतना सफल हो पाएगी अगर हा तो फिर क्या बीजेपी आने वाले दिनों में अपनी कोई नई रणनीतिक चाल लेकर आने वाली है.

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देश में इन दिनों विपक्षी एकता को लेकर बात की जा रही है. इसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि क्या विपक्ष में कांग्रेस और अन्य पार्टियां एकजुट हो पाएंगी अगर हां तो फिर कांग्रेस और अन्य पार्टियों का इसमें किस तरह से योगदान होगा. राजनीतिक जानकार तो यह भी बता रहे हैं कि जिस तरह से राहुल गांधी कि सदस्यता गई है उसके बाद से कांग्रेस भी नर्म पड़ गई है. इसी का नतीजा है कि नीतीश कुमार जब विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में चले तो राहुल गांधी की नीतीश कुमार से मुलाकात हुई है. राजनीतिक जानकार यह मान रहे हैं कि नीतीश कुमार की पूरी राजनीति पर गहरी नजर बनाए हुए हैं और उनकी यात्रा को देश की सियासत के लिए काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं.

नीतीश कुमार विपक्ष की तरफ से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार होंगे या नहीं यह तो भविष्य के गर्त में हैं लेकिन बिहार के लोगों को इस बात की कमी जरूर खलती है कि बिहार से कोई देश का प्रधानमंत्री नहीं बना है. देश में जब प्रधानमंत्री बनने की बात होती है तो सब की निगाहें उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ होती है लेकिन यह प्रदेश आजतक एक भी प्रधानमंत्री नहीं दे पाया है. राजनीतिक जानकार यह बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विरोधी अगर नीतीश कुमार को अपना नेता मानते हैं तो 2024 के लोकसभा चुनाव में एक गंभीरता देखने को मिलेगी. कहते हैं कि नीतीश कुमार पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह कोई भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है, इनपर भी परिवारवाद का आरोप नहीं लगा है इनके पास भी पीएम मोदी की तरह प्रशासनिक अनुभव बहुत सारा है. ऐसे में नीतीश कुमार को लेकर यह कहा जा रहा है कि अगर प्रधानमंत्री का चेहरा बने तो टक्कर वाली चुनाव देखने को मिलने वाला है.

पिछले दिनों जिस तरह से नीतीश कुमार की मुलाकात बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव से हुई है. उसके बाद विपक्ष में एक साकारात्मकता का भाव दिखने लगा है. ममता बनर्जी से मुलाकात के दौरान ममता बनर्जी ने बताया कि बिहार में सभी विपक्षी पार्टियों की एक बैठक होनी चाहिए जिसमें आगे की रणनीति पर विचार किया जा सके. ऐसे में अब नीतीश कुमार के सामने यह चुनौती है कि सभी विपक्ष को एकजगह कैसे लाएं क्योंकि सभी नेता अगर एक मंच पर दिखेंगे इसका मतलब होगा कि ये एकजुट हैं. राजनीतिक जानकार तो यह भी मानते हैं कि बिहार क्रांति की भूमि रही है. यहां से कई बड़े आंदोलन हुए और पूरे देश को दिशा देने का काम किया है लेकिन प्रधानमंत्री बनने की लड़ाई बिहार से शुरू नहीं हुई है. ऐसे में राजनीतिक जानकार नीतीश कुमार को लेकर यह अंदाजा लगा रहे हैं कि क्या वे जेपी और वीपी सिंह की राह पर चल निकले हैं. जेपी ने देश का सबसे बड़ा आंदोलन पटना के गांधी मैदान से शुरू किया था तो वहीं वीपी सिंह ने कांग्रेस की सत्ता को उखाड़ फेंका था. यही वह कारण है कि नीतीश कुमार जेपी और वीपी सिंह के साथ जोड़कर देखा जा रहा है.

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