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आज भी अपने अन्दर कई रहस्य समेटे है पटना का गोलघर

Bihari News

बिहार में कई ऐसे दर्शनीय, एतिहासिक और तीर्थ स्थल मौजूद हैं जो की आपके बिहार पर्यटन को यादगार बना सकते हैं. उन्ही में से एक है बिहार की राजधानी पटना स्थित गोलघर. गोलघर अपनी गोलाकार गुम्बदनुमा आकृति के लिए प्रसिद्द है. इसके चारों तरफ घुमावदार 145 सीढियां है. जो की इस इमारत को और भी आकर्षित बनाता है. गोलघर बिहार की राजधानी पटना में स्थित है. यह पटना शहर के पश्चिमी किनारे पर गांधी मैदान के पास स्थित है. आजादी से पहले साल 1784 में अंग्रेजों ने इसे अनाज के भंडारण के लिए बनाया था. जिसमें 1,37,000 टन अनाज रखे जाने की क्षमता थी. लेकिन इसमें अनाज भण्डारण नहीं किया जा सका. और आज यह ऐतिहासिक इमारत एक टूरिस्ट प्लेस बन गया. आखिर वो क्या वजह रही की इस गोलघर में अनाज का भंडारण नहीं किया जा सका. वो हम आगे जानेंगे. साथ ही यह भी जानेंगे की इस गोलघर को बनाने की जरुरत क्यूँ पड़ी साथ ही इस गोलघर को बनाने के पीछे हम भारतीय को कितना कुछ भुगतना पड़ा?

बिहार सदियों से सूखे की स्थिति से ग्रस्त रहा है. और इस क्षेत्र के लोगो ने अकाल का सामना किया है . साल 1770 का समय था जब यहाँ भयंकर सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई और इस क्षेत्र में अकाल की समस्या ने लोगो को बदहाल कर दिया. लोगो में भुखमरी फ़ैल गई. उस वक्त अंग्रेजों का शाषण था और गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग थे. क्षेत्र में पड़ी भयंकर अकाल को देखते हुए गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग ने गोलघर के निर्माण की योजना बनाई. जिसके बाद ब्रिटिश इंजिनियर कैप्टन जान गार्स्टिन ने अनाज़ के भंडारण के लिए इस गोल ढाँचे का निर्माण किया. लेकिन ये भारतीय के लिए नहीं था बल्कि ब्रिटिश फौज के लिए बनाया गया था. गोलघर आज भले ही अपने अनोखे ढाँचे और खूबसूरती के लिए जाना जाता हो. लेकिन इसका इतिहास भारतीयों के लिए बेहद ही कष्टकर रहा है.

236 वर्ष पुराने इस गोलघर को बनाने में 30 महीने यानी ढाई साल का वक्त लगा था. आज की इमारतें बिना पिलर के नहीं बनाई जाती. बल्कि लोग अब पिलर देते वक्त ख़ास ख्याल रखते हैं क्यूंकि इसी से घर या इमारत की मजबूती को आंका जाता है लेकिन आज से करीब ढाई सौ साल पहले बनाए गए इस गोलाकार इमारत को बिना कोई पिलर बिना कोई खम्भे का बनाया गया है. अपने विशेष प्रकार की वास्तु प्रकृति के अलावा गोलघर गंगा के पीछे से पूरे शहर का सुंदर नज़ारा प्रस्तुत करता है. यह हर प्रकार से दिल थाम लेने वाला नज़ारा होता है. किसी समय में गोलघर पटना की सबसे ऊँची इमारत थी. कहा जाता है कि जब गोल घर का निर्माण हुआ था तब इसके बगल से गंगा नदी बहा करती थी. इसका प्रमाण ब्रिटिश लाइब्रेरी में गोलघर की है वह पेंटिंग है जो 206 वर्ष पुरानी है जिसमें यह साफसाफ दिखाया गया है कि गोल घर के बगल से गंगा नदी बह रही है और नाव भी चल रहे हैं. इस चित्र को अंग्रेज चित्रकार रॉबर्ट ने 1814 से 1815 में बनाया था. धीरे धीरे राजधानी पटना का विस्तार हुआ और अब तक ऊँची ऊँची और बड़ी बड़ी कई इमारतें बन चुकी हैं. ऐसे में कहीं ना कहीं राजधानी पटना से गंगा ndi दूर होती हुई दिख रही है.

गोलघर के सबसे उपरी हिस्से पर दो फीट 7 इंच व्यास का एक बड़ा छेड़ हैं. जिसे अनाज डालने के लिए छोड़ा गया था. गोलघर के चारों तरफ घुमावदार 145 सीढियां बनी हैं जसपर चढ़कर गोलघर के उपरी हिस्से में अनाज डाला जाता था. लेकिन 1,37,000 टन अनाज भण्डारण की क्षमता रखने वाले गोलघर में कभी अनाज भरा नहीं जा सका. क्यूंकि भले ही इसकी बनावट अनोखी थी लेकिन यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अनाज रखने के लिए उचित नहीं था. माना जाता है कि इंजीनियरिंग की खामीं की वजह से यह नौबत आई. क्यूंकि इस इमारत में हवा निकलने के लिए जगह ही नहीं छोड़ी गई थी. और गोलघर का उपरी हिस्सा आसमान से सीधे संपर्क में होने की वजह से बंद होता था. इसमें एक दरवाजा था जो की इतने बड़े इमारत के लिए पर्याप्त नहीं था. यही वजह रही की इसमें अनाज डालने के बाद इसमें अनाज सड़ने लगा. और फिर कभी इसे नाज रखने के लिए उपयोग में नहीं लाया गया.

इसके बाद से ही यह ईमारत बस दिखावे का रह गया. अंग्रेजी हुकूमत ख़त्म होने के बाद इसे पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित किया गया. 2017 में इसे एक बार रिपेयर किया गया था. लेकिन फिर इसकी सीढियां छतिग्रस्त हो गयी जिसके बाद इसपर चढ़ने से प्रशाशन ने रोक लगा दिया. गुम्बदाकार आकृति के कारण इसकी तुलना 1627-55 में बने मोहम्मद आदिल शाह के मकबरे से की जाती है. इस इमारत की एक और ख़ास बात यह है की इसके अंदर एक आवाज 27-32 बार प्रतिध्वनित होती है. यह अपने आप में अद्वितीय है. गोलघर के क्षेत्र को खुबसूरत पार्क के तौर पर तैयार किया गया है यहाँ आप पेड़ों के नीचे चबूतरे पर बैठकर गोलघर की खूबसूरती का आनंद ले सकते हैं. यहाँ बच्चों के खेलने के लिए झूले भी हैं. यहाँ के स्थानीय लोग सुबह और शाम यहाँ आना नहीं भूलते. अगर आप गोलघर पहुँच रहे हैं तो ऐसे में एक बात का आपको ख़ास ख़याल रखना पड़ेगा वो है टाइमिंग. गोलघर सप्ताह के 6 दिन खुले होते हैं जिसमें सोमवार को बंद होता है. रविवार से लेकर शनिवार तक आप सुबह के 10 बजे से लेकर शाम के 5 बजे से पहले वहां पहुँच सकते हैं क्यूंकि सुबह 10 बजे से पहले और शाम 5 बजे के बाद गोलघर में इंट्री नहीं मिलती है. ऐसे में अगर आप भी ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण में दिलचस्पी रखते हैं और आपका कभी पटना आना हुआ तो एकबार गोलघर जरुर आएं.

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