हमारे देश में कई नदियाँ है और इन सभी नदियों की अपनीअपनी विशेषता है. इसी तरह हमारे देश में गंगा नदी के जल को औषधीय रूप में देखा जाता है. आपने लगभग हर हिन्दू घर में देखा होगा कि वो अपने पूजा स्थान पर गंगा जल जरुर रखते है और इनका इस्तमाल हर पूजा में किया जाता है. यहां तक कि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु होने वाली होती है तो, उसे गंगा जल ही पिलाया जाता ताकि वे सीधे स्वर्ग में स्थान प्राप्त करें. गंगा का वर्णन हमें हिन्दुओं के हर ग्रन्थ में देखने को मिल जाता हैं. वही कई इतिहासकारों का यह भी कहना है कि मुगल काल का अकबर भी गंगा जल का सेवन करता था और इसके अलावा वह अपने यहां आये मेहमानों को भी पिने को देता था. हम हमेशा से अपने आसपास के बड़ेबुजुर्गों से सुनते आ रहे है कि गंगा ही एक ऐसा जल है जो कभी खराब नहीं होता चाहे तुम इसे कितने समय तक ही क्यों न रख लो. हम यह भी देखते है कि हमारे घरों में गंगा जल कितने समय तक रहता है फिर भी उस जल में न कीड़े लगता है , न गंध आती है और न ही पानी की गुणवत्ता में कमी आती है. तो, ऐसे में हमारे मन में यह सवाल उठता अहि कि आखिर गंगा जल में ऐसा क्या है जिसे यह कभी ख़राब नहीं होती. इसे हम कितने भी लम्बे समय तक संग्रहित कर के रख सकते हैं. हम इसके साथ न जाने कितने प्रकार के जुल्म करते है. हम सभी इसमें दुनिया की साड़ी गंदगी डालते है पर फिर भी इसके जल में किसी प्रकार का भी परिवर्तन नहीं होता.असल में गंगा हिमालय की कोख गंगोत्री से निकलती है और वह समतल जमीन तक आती है. इस बिच गंगा का यह पानी हिमालय पर्वत पर उगी हुई अनेकों जीवनदायिनी उपयोगी जड़ीबूटियों के ऊपर से स्पर्श करते आता है जिस वजह से पानी में कई औसधीय गुण समा जाते हैं. गंगा जल इसलिए नहीं ख़राब होता क्योंकि इसमें गंधक, सल्फर, खनिज की मात्र सर्वाधिक होती हैं. कई वैज्ञानिकों का मानना है कि गंगा का पानी इसलिए ख़राब नहीं होता क्योंकि इसमें एक ऐसा वायरस पाया जाता है, जो बैक्टीरिया के अन्दर घुस कर उसे मार देता है . इस वायरस की वजह से ही गंगा लम्बे समय के बावजूद भी खराब नही होती. बता दे कि 1890 के दशक में मशहुर ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हैन्किन ने गंगा के पानी पर रिसर्च किया था. उस दौरान देश में हैजा की बिमारी फैली थी और हैजा से मरने वाले सभी लोगों को गंगा नदी में ही फेका जा रहा था. ऐसे में उन्हें चिंता थी कि इस वजह से गंगा में नहाने वाले लोगों को हैजा न फ़ैल जाए. लेकिन उन्हें ऐसा कुछ देखने को नही मिला जिसे देख वे हैरान हो गए. हैन्किन के इस रिसर्च को 20 साल के बाद एक दुसरे फ्रेंच वैज्ञानिक ने आगे बढाया . फ्रेंच वैज्ञानिक ने जब इस पर और भी अच्छे से रिसर्च किया तो उसने पाया कि गंगा के पानी में एक प्रकार का वायरस है, जो कॉलरा फैलाने वाले बैक्टीरिया के अंदर घुस कर उसे नष्ट कर देता है. यही वायरस था जिसकी वजह से नहाने वाले लोगों को हैजा की बिमारी नही हो रही थी.आपकी जानकारी के लिए बता दे कि आज के वैज्ञानिकगंगा में पाए जाने वाले इस वायरस को निंजा वायरस करते हैं जो बैक्टीरिया का खात्मा कर देता हैं. इसके साथ ही वैज्ञानिकों के द्वारा यह भी पता लगाया गया है कि गंगा में कई प्रकार के जीवित प्राणी है जो नदी के पानी को प्रदूषित होने से रोकते हैं और साथ ही पानी को प्रदूषित करने वाले एजेंटों को खत्म करते हैं. तो आपको गंगा के पानी के बारे में ये बातें जान कर कैसा लगा ?

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