Placeholder canvas

वह करिश्माई गेंदबाज जिसके सामने नतमस्तक हो गए थे दुनिया के बल्लेबाज

Bihari News

चक दे क्लिक्स के आज के सेगमेंट में बात एक ऐसे खिलाड़ी के बारे में जिसकी गेंदें बल्लेबाज के लिए एक अबुझ पहेली बनकर रह जाती थी. इस खिलाड़ी ने अपनी गेंदों से बल्लोबाज को खुब परेशान किया है, विश्व के दिग्गज बल्लेबाज इस खिलाड़ी के सामने अपने आप को लगभग सलेंडर कर देते थे तभी तो इस खिलाड़ी ने अपने क्रिकेट कैरियर में 1000 विकेट अपने नाम किया है. इस महान खिलाड़ी के बारे में हम चंद मिनटों में उनके जीवन पर रौशनी नहीं डाल पाएंगे ऐसे में हम प्रयास यह करेंगे कि हम उनके जीवन से जुड़े उन पहलुओं को आपके सामने प्रस्तुत करें जिसे उनके फैन को उनपर नाज हो. आज हम बात करने जा रहे हैं ऑस्ट्रेलिया के महान गेंदबाज लेग स्पिनर शेन वॉर्न के बारे में

इस महान गेंदबाज का जन्म 13 सितंबर 1969 को मेलबॉर्न में हुआ था. शेन वार्न ने बचपन की पढााई हैम्पटन हाई स्कूल की थी. लेकिन, खेल में उनकी प्रतिभा के कारण इन्हें मंटोन ग्रामर में पढ़ाई करने के लिए खेल छात्रवृत्ति मिली थी. आपको बता दें कि खेल के मामले में हैम्पटन एक बेहतर स्कूल माना जाता है. शेन वार्न को बचपन में एक बिमारी थी जिसके कारण उनका एक आंख नीला और दूसरा आंख हरा दिखता था. शेन वॉर्न को बचपन में क्रिकेट के साथ ही फुटबॉल और टेनिस दोनों पसंद था.शुरुआदी दिनों में शेन वॉर्न को फुटबॉल के प्रति दिनवानगी इस तरह का था कि वे बचपन से ही ऑस्ट्रेलिया फुटबॉल लीग में खेलने का सपना देखने लगे थे. लेकिन जब वे मेंटन ग्रामर स्कूल में पहुंचे तो यहां उन्होंने क्रिकेट को अपना कैरियर बनाया. उन्होंने क्रिकेट के प्रति अपनी दिलचस्पी दिखाई.

शेन वॉर्न की उम्र जब 16 साल की थी तो उन्होंने यूनिवर्सिटी और मेलबॉर्न क्रिकेट क्लब की तरफ से एक बेहतरीन मैच खेला था. जिसमें उनका प्रदर्शन शानदार रहा था. इस मैच के दौरान उन्हें एक लेग स्पिन और ऑफ स्पिन गेंदबाज के रूप में देखा जाने लगा था इस दौरान उन्होंने दोनों ही तरह से स्पीन गेंदबाजी करवानी शुरू कर दी थी. इतना ही नहीं वे कभी कभी लोअर ऑर्डर में बल्लेबाजी करते हुए रन भी बना रहे थे. ऐसे में अब कहा जा रहा था कि वॉर्न अब क्रिकेट के प्रति बढ़ने लगे थे. लेकिन उनके मन में अभी भी फुटबाल के प्रति उनका प्यार अभी कम नहीं हुआ था. इस दौरान एक ऐसी घटना घटी जिससे वॉर्न बुरी तरह से आहत हुए. उन्हें उनके क्लब किल्डा फुटबॉल क्लब से बाहर कर दिया गया. तब उनकी उम्र महज 18 की थी. इस दौरान वॉर्न के लिए यह झटका इतना लिए इतना आसान नहीं था, फिर भी उन्होंने इसे संभाला और क्रिकेट के प्रति अपने आप को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया. यही वह समय था जब वॉर्न एक लेग स्पिन के रूप में अपने आप को तैयार करने को ठान ली थी. इस दौरान वे रूमाल के साथ सिक्के रखकर पैक्टिस करना शुरू कर दिया था.

वॉर्न कई महीनों तक बॉल के साथ काम करते रहे थे. वे लगातार अभ्यास कर रहे थे. अपने यहां एक कहावत है न करत अभ्यास के जङमति होत सुजान। रसरी आवत जात, सिल पर करत निशान जिसका मतलब होता है निरंतर अभ्यास करने से एक मुर्ख व्यक्ति भी बुद्धिमान बन जाता है. लेकिन वॉर्न को तो अब क्रिकेट में मन लगने लगा था. उन्होंने बस अभ्यास लगन के साथ किया और गेंदबाजी की तमाम तकनीकों को उन्होंने इस दौरान सीखा. लेकिन इसके बाद भी वे गेंदबाजी के कुछ ऐसे पक्ष थे जिसे वे लगातार कोशिश के बाद भी पूरा नहीं कर पा रहे थे जिसके चलते उन्हें साल 1990 में अकेडमी से चेतावनी जारी कर दी गई. इसी दौरान बॉर्न की मुलाकात हुई ऑस्ट्रेलिया के पूर्व स्पिन गेंदबाज टेरी जेनर से. जेनर के ऊपर पहले ही कई तरह के आरोप लगे थे. उन्होंने कई नौकरियां भी बदली थी और इस दौरान उनपर फ्रॉड करने का भी आरोप लगा था जिसके कारण उन्हें करीब 18 महीने तक जेल में रहना पड़ा था. लेकिन वॉर्न ने इसी जेनर को अपना कोच बनाया. इस दौरान वॉर्न को वह लगा कि यही वह व्यक्ति है जो उसके अंदर की तमाम कमियों को दूर कर सकता है. कोच और गेंदबाज का मन मिल गया. फिर दोनों चल निकले अपने आप को इतिहास के पन्नों में दर्ज करवाने के लिए. वॉर्न ने अपने कोच के साथ मिलकर अपनी गेंदबाजी में खुब काम किया. इस दौरान साल 1991 में वॉर्न को विक्टोरिया की तरफ से पहली बार फर्स्ट क्लास क्रिकेट में खेलने का मौका मिल गया. अपने पहले फर्स्ट क्लास डेब्यू मैच में उन्होंने कोई खास प्रदर्शन नहीं किया था. उनका प्रदर्शन साधारण रहा था. लेकिन वॉर्न को इस साधारण प्रदर्शन के बाद भी आगे खेलने का मौका मिला. जिसमें उन्हें ऑस्ट्रेलिया -B की तरफ से खेलने का मौका मिला. और उन्हें जिम्मेबावे भेजा गया. जिम्बाब्वे में तेज गेंदबाजों को मदद मिल रही थी. लेकिन इस पिच पर भी वॉर्न ने अपने आप को साबित किया और एक पारी में 7 विकेट अपने नाम कर लिया. जिसके बाद ऑ्स्ट्रेलिया से लेकर जिम्बाब्वे तक वॉर्न नाम की चर्चा होने लगी थी. ऐसा कहे कि एक सनसनी फैल गई थी. जिम्बाव्बे से वापस लौटने के बाद वॉर्न ने वेस्टइंडिज के खिलाफ अभ्यास मैच में फिर से 7 विकेट लेकर अपने आप को साबित किया. और नेशनल टीम में अपनी जगह बनाने के लिए अपनी दावेदारी पेश कर दी. इसी दौरान भारत की टीम ऑस्ट्रेलिया में 5 टेस्ट मैचों की सीरीज खेलने के लिए पहुंची थी. शुरूआती दोनों टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया की स्पिन गेंदबाजी में दम नहीं दिख रहा था. उस समय स्पिन गेंदबाजी पीटर टेलर करते थे जिनके नाम अभी तक मात्र 1 विकेट ही हाथ लगा था. ऐसे में अब कहा जा रहा था कि शेन वॉर्न को मौका मिलना चाहिए. फिर साल 1992 में सिडनी में खेले गए टेस्ट मैच में वॉर्न को पहली बार खेलने का मौका मिला. शेन वॉर्न ने जब पहली बार गेंदबाजी करने के लिए बॉल थामा तो यह किसी को उम्मीद भी नहीं होगा कि यह खिलाड़ी विश्व क्रिकेट मे एक समय राज करेगा. वॉर्न ने अपना पहला शिकार भारतीय टीम की बेहतरीन बल्लेबाज रहे रवि शास्त्री को बनाया था. लेकिन शास्त्री के बाद वॉर्न की गेंद से कोई भी भारतीय खिलाड़ी पवेलियन हीं जा सका. ऐसे में वॉर्न का डेब्यू उतना खास नहीं रहा. लेकिन वॉर्न को जिस तरह से फर्स्ट क्लास में फ्लॉप होने के बाद मौका मिला था उसी तरह से नेशनल टीम में भी फ्लॉप होने के बाद उन्हें अपनी टीम में जगह मिलता रहा. लेकिन वे दूसरे और कई अन्य मौकों के बाद भी टीम को विकेट दिलाने में कामयाब नहीं हो पाए थे. स्थिति यहां तक आ गई थी कि वे टेस्ट मैच में 93 ओवर फेंकने के बाद 346 रन दे चुके थे और उनके नाम दर्ज हुआ था तो बस एक विकेट. ऐसे में क्रिकेट के जानकार तो यही कह रहे थे कि इस खिलाड़ी को भूलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा. वॉर्न नाम का बहुत ही जल्द अंत हो जाएगा.

साल 1992 के मध्यम में ऑस्ट्रेलिया का मुकाबला श्री लंका के साथ था. उस समय ऑस्ट्रेलिया के कप्तान हुआ करते थे एलन बॉर्डर, उन्होंने एक बार फिर से वॉर्न पर भरोसा जताया और गेंद वॉर्न को दे दिया. तब कप्तान क्या खुद गेंदबाज को इस बात का भान नहीं होगा कि यह मैच उनके लिए कितना खास होने वाला है. खैर मैच की शुरुआत हुई और वॉर्न ने अपने पहले स्पेल में मात्र 5 ओवर में 11 रन देकर 3 विकेट अपने नाम कर लिया था. उस दिन की कमेंट्री में अचानक के शेन वॉर्न का नाम लिया जाने लगा. विश्व क्रिकेट में इस खिलाड़ी के नाम की चर्चा होने लगी थी. इसी साल यानी की 1992 में वेस्टइंडीज के साथ ऑस्ट्रेलिया का मैच का हुआ. कहते हैं उस समय वेस्टइंडीज के गेंदबाजी से लेकर बल्लेबाजी तक में विश्व के किसी टीम में इतनी ताकत नहीं थी कि वे वेस्टइंडीज को हर क्षेत्र में पछाड़ दे. लेकिन वॉर्न ने मेलवर्न में वो कर दिखाया जिसके बारे में ऑस्ट्रेलिया के कप्तान से लेकर वहां के दर्शकों ने भी नहीं सोचा था. विश्व की बल्लेबाजी की बेहतरीन टीम के सामने वॉर्न ने वो किया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं कि थी. इस टेस्ट मैच की दूसरी पारी में वॉर्न ने 7 विकेट अपने नाम कर लिया और क्रिकेट जगत को बताया कि वो आ रहा है विश्व क्रिकेट पर राज करने के लिए.

अब वह समय आ गया था जब ऑस्ट्रेलिया के अखबारों के साथ ही विश्व के कई देशों में वॉर्न की तस्वीरें मीडिया की सुर्खियां हुआ करती थी. लेकिन वॉर्न इससे खुश नहीं थे. वे अपने भविष्य को देख रहे थे और लगातार आगे बढ़ने की चाह रख रहे थे. अब वह समय आ गया था जब वॉर्न को साबित करना था और उनकी मेहनत रंग लाने वाली थी. साल 1993 जिसमें उन्होंने रिकॉर्ड को झड़ी लगी दी. इस साल उनकी गेंदबाजी को पूरे विश्व में सराहा गया था. साल 1993 के पूरे साल में उन्होंने 71 विकेट अपने नाम किया था. जिसमें उन्होंने न्यूजीलैंड और इंग्लैंड जैसी टीमें भी शामिल थी. जिसे मात देते हुए वे विश्व क्रिकेट तक पहुंचे थे. उसी साल उनकी गेंद ऐसी थी जिसे बॉल ऑफ द सेंचुरी का नाम दिया गया था. दरअसल हुआ यह था कि वॉर्न ने वह गेंद माइक गेटिंग के लेग स्टंप को छोड़कर जा रही थी लेकिन गेंद टप्पा खाने के बाद 90 डिग्री पर घुम गई और यह गेंद ऑफ स्टंप को उड़ाती हुई विकेट के बाहर चली गई. इस गेंद पर बल्लेबाज ने खेलने का प्रयास भी नहीं किया क्योंकि यह गेंद बाहर जा रही थी. टर्न लेती इस गेंद पर आउट होने के बाद बल्लेबाज खुद शक्ते में आ गए और इस गेंद को बॉल ऑफ दे सेंचुरी का नाम दिया गया.

इस गेंद के बाद वॉर्न अब आम खिलाड़ी की तरह नहीं रह गए थे. अब वॉर्न का जादू चल निकला था. हर कोई अब वॉर्न का नाम ले रहा था. इस दौरान स्थिति यह थी कि वे अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते और बनाने लगे थे. उनकी गेंदबाजी में इतनी धार आ गई थी कि वे सपाट पिचों पर भी गेंद को टर्न कराने लगे थे. जिससे बल्लेबाजों को काफी परेशानी होती थी. इनकी घूमती गेंदों के आगे बल्लेबाजों की एक न चलती थी. घूमती गेंदों के आगे बल्लेबाज सिर्फ बैट से गेंद को सम्मान से रोक पाता था. एक तरह से कहें तो वॉर्न नाम का खौफ था बल्लेबाजों के दिलों दिमाग में. असल में बल्लेबाज वॉर्न के चेहरे से यह नहीं समझ पाते थे कि अब किस तरह की गेंद आएगी क्योंकि उनके चेहरे पर मुस्कान होती थी और बल्लेबाज अपने आप को रिलैक्स दे देता था जिसके बाद उन्हें अपना विकेट देना पड़ जाता था.

साल 1998 में शारजाह में खेले गए कोकाकोला कप को कौन भूल सकता है. इस सीरीज के 6 ठें मुकाबले में भारत को 46 ओवर में 276 रन का टारगेट दिया जवाब में बल्लेबाजी करने उतरी भातीय टीम की सलामी जोड़ी सचिन और गांगुली ने आते ही ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाजों पर प्रहार करना शुरू कर दिया. जिसमें शेन वॉर्न से लेकर टॉम मूडी तक की धुनाई हो गई थी. यह मैच भारत भले ही हार गया था लेकिन भारत की बल्लेबाजी देख हरकोई दंग रह गया था उसके बाद फाइनल में सचिन तेंदुलकर ने 134 रन की शानदार पारी खेली जिसमें उन्होंने शेन वॉर्न की जमकर धूनाई की थी. इसी मैच के दिनों को याद करते हुए वॉर्न ने कहा था कि सचिन की उस बल्लेबाजी को देखकर वे रात के सपने मे भी आते थे.

एक मैच के दौरान गांगुली और सचिन बल्लेबाजी कर रहे थे इसी दौरान गांगुली डिफेंसिव तरीके से बल्लेबाजी कररहे थे ताकि वॉर्न का ओवर किसी तरह से समाप्त हो जाए. इसी दौरन वॉर्न ने गांगुली को जाकर कहा कि तुम्हारे ब्लॉक देखने दर्शक नहीं आए हैं सचिन की बल्लेबाजी देखने आए हैं फिर क्या था गांगुली वॉर्न के जाल में फंस गए और आउट होकर पवेलियन चले गए.

वॉर्न साल 1998 में विवादों में आ गए. उन्होंने और उनके साथी ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर मार्क वॉ ने चार साल पहले एक भारतीय सट्टेबाज से रिश्वत ली थी. उन्होंने केवल पिच की जानकारी और मौसम का पूर्वानुमान दिए थे. रिश्वत दिए जाने के तुरंत बाद ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट बोर्ड ने इन दोनों पर जुर्माना लगाया था. तमाम विरोधा के बाद भी उन्हें साल 2000 में उन्हें विजडन क्रिकेटर्स अल्मनैक द्वारा सेंचुरी के पांच क्रिकेटरों में एस एक के लिए नामित किया गया था. साल 2003 में वे एक बार फिर से विवादों के साथ जुड़ गए और उन्हें दक्षिण अफ्रिका में होने वाले विश्व कप से बाहर जाना पड़ा. इस दौरान उनपर 12 महीने का प्रतिबंध लगा था. फिर साल 2004 में उनकी टीम में एंट्री हुई जिसमें उन्होंने अपने पहले टेस्ट मैच में उन्होंने 500 विकेट अपने नाम किया था. और वे ऐसा करने वाले दुनिया के दूसरे गेंदबाज बने थे. साल 2005 तक में 600 विकेट लेने वाले वे पहले गेंदबाज बने थे. वॉर्न ने साल 2007 में टेस्ट क्रिकेट से सन्यास की घोषणा कर दी. लेकिन वे साल 2011 तक क्लब स्तर के लिए खेलते रहे हैं. अगर हम उनके अंतरराष्ट्रिय कैरियर को देखें तो उन्होंने कुल 145 मैच में 708 विकेट अपने नाम किया है तो वहीं वनडे के 194 मैचों में उन्होंने 293 विकेट अपने नाम किया है. जव उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दिए थे तब उसके बाद उनका यह रिकॉर्ड मुरलीधरन ने तोड़ा था. क्रिकेट इतिहास में 1000 विकेट लेने बाले दो गेंदबाजों की लिस्ट में पहला नाम मुरलीधरन का है जबकि दूसरा नाम शेन वॉर्न का आता है. शेन वॉर्न के नाम बल्लेबाजी में भी एक कमाल का रिकॉर्ड है. उन्होंने बिना शतक लगाए सबसे ज्यादा टेस्ट रन (3154) बनाए हैं. उनका टेस्ट में सर्वोच्च स्कोर 99 रन का है.

इसके बाद साल 2008 में उन्होंने IPL में राजस्थान रॉयल्स के कप्तान के रूप में खेले थे और यह टीम आईपीएल जीतने में कामयाव रही थी. इसके बाद साल 2011 में इन्होंने बिग बैश लीग यानी की बीबीएल में मेलबर्न स्टार्स की तरफ से खेला था. हालांकि साल 2013 में उन्होंने अधिकारिक रूप क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में खेलने से मना कर दिया.

शेन वॉर्न के बारे में यह कहा जाता है कि वे उन चुंनिंदा खिलाड़ियों कि लिस्ट में शामिल हैं जो एक बेहतरीन खिलाड़ी तो थे ही साथ ही साथ वे एक बेहतरीन कमेंटेर थे एक अच्छे इंसान थे. साथ हीसाथ वे सोशल मीडिया पर भी खुब एक्टिव रहा करते थे. उनके ट्विट को लेकर खुब बाते होती रही है. एक घटना साल 2011 विश्वकप का है जब भारत बनाम इंग्लैंड मुकाबले के पहले मैच में उन्होंने टाई की भविष्यवाणी की थी. और संयोग देखिए की वह मैच टाई हो गया था. जिसके बाद फॉक्स स्पॉट ने लिखा था कि शेन वॉर्नः कोई जीनियस या फिर एक मैच फिक्सर.

यह महान खिलाड़ी, हंसता मुस्कुराता चेहरा. 4 मार्च 2022 को थाईलैंड में हमलोगों से विदा हो गया. हालांकि उनकी मौत भी अभी तक मिस्ट्री बनी हुई है. उनके निधन की खबर के बाद से पूरा क्रिकेट जगत सन्न रह गया था.

Leave a Comment