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नाकामी और विरोध से शुरु किया था गायन, आज कहलाती है बिहार कोकिला

Bihari News

बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में हम बात करेंगे एक ऐसे बिहारी सिंगर के बारे में जिनके लोक संगीत को एक मुकाम दिया. बिहार में जब छठ महापर्व जैसे त्यौहार में हर तरफ इनके गाये हुए गाने बजते हैं हालांकि आज जितनी आसानी से हम इन लोक संगीत को सुन पा रहे हैं यह घर की दहलीज से हमारे कानों तक सुनाई देने में एक लंबा समय और एक संघर्ष रहा है. जी हां आप सही समझ रहे हैं हम बात कर रहें ही बिहार कोकिला शारदा सिन्हा के बारे में. शारदा सिन्हा के गाये गाने आज बिहार का प्रतिनिधित्व करता है. बिहार के लोग जो दूसरे प्रदेश में रहते हैं वहां जब शारदा सिन्हा का गाना बजता है तो बिहार के लोगों को एक अपनापन महसूस होता है. शारदा सिन्हा ने लोक गीतों को जितनी मिठास और भाव के साथ गाया है वह लोगों के दिलों में वह उसी तरह से बैठ जाता है. यहीं वह कारण है कि शारदा सिन्हा आज हर वर्ग के लोगों में लोकप्रिय हैं. आज के इस सेगमेंट में हम शारदा सिन्हा के संघर्ष के साथ उनके शिखर तक पहुंचे की यात्रा को जानेंगे…

शारदा सिन्हा अपनी लोक गायकी, पारंपरिक गीतों और शादी के लिए जानी जाती है. उन्होंने इन गीतों को घर आंगन से बाहर निकाला. इन गीतों को बाजार की दुनिया में लाया. लेकिन इस दौरान उन्होंने एक लंबा संघर्ष भी झेला… हम शारदा सिन्हा के बचपन के दिनों को जानेंगे लेकिन उससे पहले हम जान लेते हैं उन्होंने लोक गीतों को और शादी विवाह के गीतों को कैसे घर चौखट से बाहर निकाला. उनके संगीत के प्रति लगाव या कहें प्रेम का पहला विरोध हुआ उनकी ससुराल में जब वह गाने की इच्छा रखती थी लेकिन उनकी सास की तरफ से गाने की आजादी नहीं थी. लेकिन शारदा सिन्हा के ससुर जी संगीत के प्रेमी थे उनकी इच्छा थी की बहू गाना सुनाएं. उस समय ठाकुरबाड़ी में भजन किर्तन हुआ करता था. जिसमें शारदा सिन्हा को भी गाने की इच्छा थी और उनके ससुर की भी इच्छा थी कि वे इस ठाकुरबाड़ी में गाए और बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करें. हालांकि सास की तरफ से अभी भी न ही था. हालांकि शादी के समय शारदा सिन्हा ने अपनी भाभी को कह दिया था कि अगर हमें ससुराल में गाने के लिए नहीं मिलेगा तो हम वहां से भागकर आ जाएंगे.हालांकि इस तरह की नौवत कभी नहीं आई. ससुराल में कई दिन बीत जाने के बाद भी गाना गाने का मौका नहीं मिला. शरदा सिन्हा बताती हैं कि एक दिन उनकी एक ननद आई और बोली की चाचा जी बुला रही हैं. फिर शारदा सिन्हा ने कहा कि चाची जी मना कर रही है. हालांकि उन्होंने कुछ नहीं बोला और मैं घर से सिर पर पल्लू रखकर ठाकुरबाड़ी पहुंच गई. वहां मैंने तुलसीदार का भजन गाया. मोहे रघुवर की सुधि आई. उन्होंने बताया कि मैं गाते गाते यह भूल गई थी कि मेरे सामने जो बैठे हैं वे गांव के बड़े गुजुर्ग हैं हालांकि गाना समाप्त होने के बाद उन्होंने खुब आशीष दिया… लेकिन जब घर लौटी तो दरवाजे पर सासु मां खड़ी थी. वो ऐसे देख रही थी जैसे कह रही हो अपने मन की कर लो…

शारदा सिन्हा बताती हैं कि उनके पति का इस दौरान खुब साथ मिला. गांव में कुछ दिन रुकने के बाद दोनों पति पत्नि समस्तीपुर रहने चले आए. यहां शारदा सिन्हा MA करने आई थी. और उनके मन में यह भी चल रहा था कि यहां गाने के लिए कोई रोकने वाला नहीं है. इसीलिए मन में एक उल्लास था. शारदा सिन्हा अपनी पहली रिकॉर्डिंग को लेकर बताती हैं कि साल 1971 में HMV की तरफ से प्रतिभा खोज प्रतियोगिता का आयोजन किया था. शारदा सिन्हा लखनऊ पहुंच गई. ट्रेन लेट होने के कारण वह थकी हारी थी किसी तरह से ऑडिशन हुआ वहां बहुत भीड़ था. स्थिति यह थी कि वहां धक्का मुक्की जैसे हालात थे इसमें सभी को फेल कर दिया गया. लेकिन मेरे पति ने रिकॉर्डिंग मैनेजर को दोबारा रिकॉर्डिंग करने की गुजारिश की मैंने द्वार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ, यौ दुलरुआ भइया. उन्होंने बताया कि इन गानों की रिकॉर्डिंग हो ही रही थी कि इत्तेफाक से HMV के बड़े अफसर वीके दुबे वहां आ गए उन्होंने मेरी आवाज सुनी और कहा कि इस आर्टिस्ट को रिकॉर्ड करिए.

इसके बाद शारदा सिन्हा की गाड़ी चल निकली और HMV ने संस्कार गीतों की डिस्क रिलीज हो गई. अब मैथिली के संस्कार गीत बड़े बड़े साउंड बॉक्स में बजने लगे थे. अब हर तरफ शारदा सिन्हा के गीत सुनाई देने लगे थे. उनके घऱ परिवार तक शारदा का गाना पहुंच गया. जब शारदा सिन्हा कि सास और उनके देवर ने जब गाना सुना तो वे खुश हो गए. अब स्थिति यह थी कि शारदा सिन्हा की सास भी गाना गाने लगी. शारदा सिन्हा ने अपने सास से पुराने जमाने में गाये जाने वाले गीतों को अपने सास सीखा और अपनी नई धून देकर उसे गाया जो आज हमारे और आपके आसपास सुनाई देता है. जब प्रदेश में भोजपुरी फिल्मों की शुरुआत हो रही थी तो उस समय शारदा सिन्हा के कई एलबम आए जिसने लोक संगीत की दुनिया में एक क्रांति ला दिया. भोजपुरी को एक अलग पहचान मिली. भोजपुरी भारत के साथ ही दूसरे देशों में पहुंच पाया. शारदा सिन्हा के विवाह गीत और छठ गीत की धूम आपको हमेशा सुनने की मिल जाएगी.

 

बॉलीवुड में शारदा सिन्हा का पहला गाना मैंने प्यार किया में गया था जिसके बोल थे कहे तोसे सजना से. इसके बाद हम आपके हैं कौन में विदाई गीत के माध्यम से वह लोगों के दिलों पर राज करने लगी थी. इसके बाद गैंग्स ऑफ वासेपुर में उनका गाना तार-बिजली से पहले हमारे पिया जब गाया तो बॉलीवुड में उनकी गायकी को एक अलग पहचान मिली. शारदा सिन्हा का गाना आप भोजपुरी फिल्म नदियां के पार में भी सुन सकते हैं. जब तक पूरे न हो फेरे सात में चला…

शारदा सिन्हा ने साल 1988 में मॉरीशस के 20 वें स्थापना दिवस पर अपनी गायकी के माध्यम से भारत की संस्कृति का आभास करवाया था.

  • भारत सरकार द्वारा साल 1991 में पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया
  • साल 2001 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया
  • साल 2015 में बिहार सरकार द्वारा सिनेयात्रा पुरस्कार से नवाजा गया
  • साल 2018 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण पुरस्कर द्वारा नवाजा गया

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