जब लोग सभा का चुनाव होता है तो यह कहा जाता है कि दिल्ली तक का रास्ता बिहार और उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. इसका कहने का मतलब है कि यहां की लोकसभा सीटें किसी भी राजनीतिक पार्टी को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है. कहा जाता है कि इन दोनों राज्यों ने अगर किसी पार्टी के समर्थन में मतदान कर दिया तो समझिए की केंद्र की सत्ता उनके पास हो गई. ऐसे में कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव 2024 का भी रास्ता इन्ही राज्यों से होकर गुजरने वाला है. बता दें कि बिहार, झारखंड, यूपी और पश्चिम बंगाल इस बार सत्ता के समीकरण को बिगाड़ सकता है. बता दें कि जिस तरह से नीतीश कुमार विपक्षी एकता को मजबूत करने में जुटे हैं अगर इन राज्यों के नेताओं के बीच में सहमती बनती है तो आने वाले दिनों में होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने मुश्किलें खड़ा हो सकती है. इतना ही नहीं नीतीश कुमार ने तो भरे मंच से यह कह दिया है कि अगर कांग्रेस हमारे साथ चुनाव मैदान में आती है तो बीजेपी को हम 100 से नीचे ला देंगे. हालांकि यह कैसे हो पाएगा इन सब के बारे में अभी नीतीश कुमार ने कोई भी खुलासा नहीं किया है.
लोकसभा चुनाव में अगर हम इन चार राज्यों में सीटों की स्थिति को देखें तो 176 सीट होती है जिसमें से वर्तमान में बीजेपी के पास 108 सीटें हैं. लोकसभा का चुनाव 543 सीटों पर होता है जिसमें से बीजेपी के पास 303 सीट हैं और देश में अपनी सरकार बनाने के लिए 272 सीटों की जरूरत होती है. इस लिहाज से बीजेपी के पास 31 सीटें ज्यादा है. ऐसे में अब नीतीश कुमार के दिमाग में सबसे पहले जो बात चल रही है वह यह कि किसी भी तरह से बीजेपी को पूर्ण बहुमत की सरकार से नीचे लाया जाए. इसी का नतीजा है कि नीतीश कुमार पूरे देश में गैर बीजेपी पार्टियों को एक छाते के नीचे लाने की बात कह रहे हैं और उस ओर उन्होने अपना कदम आगे बढ़ा भी दिया है. राजनीतिक जानकार तो यह भी कह रहे हैं कि अगर बीजेपी बनाम गैर बीजेपी पार्टी होगी तो बीजेपी को यहां नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. खैर करके उन राज्यों में जहां क्षेत्रिए पार्टियों का सबसे ज्यादा दबदवा है.
2014 में मोदी लहर के ठीक एक साल के बाद बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू यादव ने मिलकर बीजेपी को पटखनी दी थी. ऐसे में यह कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार एक बार फिर उसी फार्मूले पर काम करते हुए दिखाई दे रहे हैं. बिहार और झारखंड में कांग्रेस सत्ता के साझेदार हैं लेकिन बंगाल और उत्तर प्रदेश में असली खिंचतान देखने को मिलने वाला है. क्योंकि बंगाल में ममता बनर्जी मुख्यमंत्री हैं और उन्हें न तो वाम पसंद हैं और न ही कांग्रेस ऐसे में कहा जा रहा है कि अगर ममता बनर्जी दरियादिली दिखाती है तो बंगाल में एक समहती बन सकती है और विपक्ष एकजुट हो सकता है. उसी तरह के हालात लगभग उत्तर प्रदेश में भी दिखाई दे रहा है. यहां भी सपा के साथ अन्य छोटी पार्टियां तो हैं लेकिन बसपा को लेकर अभी भी कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल रहे हैं. पिछले कुछ चुनावों में बीएसपी ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा है. वहीं सपा कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव तो लड़ी ही है साथ ही दोनों के बीच में दूरियां भी उतनी ही बनती जा रही है. ऐसे में नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी वाधा यह है कि आखिर वे किस तरह से ममता बनर्जी कांग्रे और अखिलेश के बीच में सामंजस बना पाएंगे.
ये तो बात हो गई इन क्षेत्रिये पार्टियों की समस्या की अगर हम बीजेपी की समस्या को देखें तो बिहार में नीतीश कुमार और रामविलास पासवान दो बड़े साझेदार थे लेकिन नीतीश कुमार के अलग होने के बाद बीजेपी मानों अकेली पड़ गई है. रामविलास पासवान का पारस गुट उनके साथ है चिराग पासवान को लेकर भी कुछ स्पष्ट संकेत नहीं मिल रहे हैं. इधर उपेंद्र कुशवाहा, मुकेशसहनी और आरसीपी सिंह को लेकर भी कोई साफ तस्वीर नहीं दिखाई दे रही है. हालांकि बीजेपी ने अपने प्रदेश अध्यक्ष में बदलाव कर यह संकेत दे दिया है कि बीजेपी की मंशा किस तरह की है.
इन राज्यों में अगर हम लोकसभा सीटों की स्थिति को देखें तो सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में 42 सीटें हैं तो वहीं बिहार में 40 सीटें हैं झारखंड में 14 सीटें हैं. ऐसे में गैर बीजेपी पार्टियां यह चाह रही हैं कि इन राज्यों में ही बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाए. क्योंकि इन राज्यों में नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और हेमंत सोरेन एक बड़े चेहरे के रूप में जाने जाते हैं.