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समुद्र मंथन से निकली इन 5 दैवी कन्याओं का इनसे हुआ था विवाह

Ratnasen Bharti

हिन्दू धर्म के पुराणों में समुद्र मंथन की प्रसिद्ध पौराणिक कथा पढ़ने को मिलती है जिसमे यह बताया गया है कि देवताओं ने दानवों के साथ मिलकर समुद्र का मंथन किया था। समुद्र मंथन करने से जहाँ एक तरफ कालकूट हलाहल विष निकला था तो दूसरी तरफ अमृत भी निकला था। इस मंथन में कुल मिलाकर 14 रत्न निकले थे जिनमे से 5 रत्न के रूप में दैवी कन्याएं थीं।

क्या आप जानते हैं वे 5 दैवी कन्यायें कौन थीं और उनका किनके साथ विवाह हुआ था ?

रम्भा

समुद्र मंथन से रम्भा नाम की अप्सरा निकली थी। यह स्वर्ग लोक की प्रसिद्ध और सबसे सुन्दर अप्सराओं में से एक मानी जाती थीं। रम्भा संगीत और नृत्य में अति निपुण थीं इसलिए इनको इंद्रलोक में भेज दिया गया था। वे हमेशा सुंदर वस्त्र, आभूषण और विभिन्न श्रृंगारों से सजी धजी रहती थीं उनकी चाल देवताओं के भी मन को मोहने वाली होती थी। वे स्वर्ग लोक में देवताओं की सभा में अपने संगीत और नृत्य प्रस्तुत करके सबका मनोरंजन करती हैं। बताया जाता है कि पृथ्वी पर एक बार विश्वामित्र ऋषि की घनघोर तपस्या से घबराकर इंद्र ने रम्भा को बुलाकर विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए भेजा था।

लक्ष्मी

समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी का भी समुद्र से प्राकट्य हुआ था। ये लक्ष्मी देवी अत्यंत सुंदरी होने के साथ ही अनेक दैवी शक्तियों की स्वामिनी भी थीं। इसलिए इनके प्रकट होने के बाद सभी देवता और दानव उन्हें प्राप्त करना चाहते थे। देवी लक्ष्मी ने सिर्फ और सिर्फ भगवान विष्णु का ही वरण किया और वे श्री हरि विष्णु के साथ हर घडी हर पल क्षीर सागर में उनके चरणों में बैठी रहती हैं।

वारुणी देवी

समुद्र मंथन के समय एक और देवी का प्राकट्य हुआ था जिनका नाम वारुणी देवी था। वे सुरा लिए हुए थीं। असुरों की मदिरा को सुरा कहा जाता है। बताया जाता है कि भगवान के निर्णय को मानकर वारुणी देवी को असुरों के हांथों में सौंप दिया गया।

तारा

रामायण के अनुसार वानरराज बाली जो सुग्रीव का बड़ा भाई था और देवराज इंद्र का पुत्र, उसने समुद्र मंथन के समय देवताओं के कमजोर होकर थकते हारते हुए देखकर उनकी सहायता की थी। उसके बल, पराक्रम और साहस से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ने उन्हें यह वरदान दिया था कि तुमसे जो भी व्यक्ति युद्ध करेगा , तुम्हारे सामने आते ही उसका आधा बल तुम्हे प्राप्त हो जायेगा और इस तरह तुम्हारी हार नहीं हो सकेगी। साथ ही देवताओं ने सागर मंथन में बाली के सहयोग करने के कार्य से प्रसन्न होकर समुद्र मंथन से निकली तारा नाम की सुंदरी का विवाह बाली से करा दिया था।

रूमी

समुद्र मंथन के समय एक और सुन्दर कन्या का प्राकट्य हुआ था जिसका नाम रूमी था। वह भी अत्यंत सुन्दर अप्सरा थी। रूमी का विवाह वानरराज बाली के भाई और सूर्यपुत्र सुग्रीव के साथ हुआ था। एक बार वानरराज बाली ने अपने छोटे भाई सुग्रीव की पत्नी रूमी को अपने कब्जे में रख लिया था। सुग्रीव ने अपनी पत्नी को अपने भाई बाली की कैद से छुड़ाने और अपना सम्मान पाने के लिए ही भगवान राम से दोस्ती की थी और प्रभु श्री राम ने बाली को मारने में सहायता करके सुग्रीव की इच्छा पूरी की थी।

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