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गोपालगंज : एक ऐसा जिला जिसका इतिहास महाभारत काल जितना पुराना

Bihari News

  • भूमिका

बिहार के जिलों की सूचि में आज हम बात करेंगे गोपालगंज जिले के बारे में. इस जिले की स्थापना 2 अक्टूबर वर्ष 1973 में हुई थी. वर्त्तमान में मौजूद गोपालगंज जिला पहले सारण जिले का एक छोटा सा शहर हुआ करता था. जो की 1875 में एक अनुमंडल बना. गोपालगंज शहर में इस जिले का मुख्यालय अवस्थित है. बिहार राज्य के भौगोलिक दृष्टिकोण से यह जिला पश्चिमोत्तर छोर पर स्थित है. यदि भौगोलिक दृष्टि की बात करें तो यह जिला 83.54 से 85.56 डिग्री अक्षांश और 26.12 से 26.39 डिग्री देशांतर के मध्य में अवस्थित है. यदि इसके चौहद्दी की बात करें तो दक्षिण की दिशा में सिवान जिला, पश्चिमोत्तर में उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले और उत्तर में चंपारण और गंडक नदी से घिरा हुआ है. इस जिले की भूमि काफी उपजाऊ और खेती करने योग्य है. क्योंकि उत्तर में मौजूद गंडक नदी की कई सहायक नदियाँ शामिल है. इन सहायक नदियों में दाहा, खनवा, धनही, झरही आदि है. इस जिले में सिंचाई के प्रमुख श्रोत के रूप में भी ये नदियाँ उपयोग में आती हैं. गौरतलब है की इस जिले को एक अलग और महत्वपूर्ण पहचान भी दिलाती है. कहीं ना कहीं यह नदी इस जिले के लोगों के समृधि का एक मुख्य कारक भी है. लिहाजा गोपालगंज के अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने में सबसे मुख्य किरदार गंडक नदी निभाती है. क्योंकि गंडक नदी के माध्यम से हीं नेपाल से अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी भी आती है. बता दें की इस जिले की स्थानीय भाषा भोजपुरी है.

  • इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार वैदिक युग में यहाँ राजा विदेह का शासन था. आर्यन के वक्त यहाँ एक अनुसूचित जनजाति के राजा ने भी शासन किया था. जिनका नाम था राजा चेरो. मंदिर या धार्मिक स्थल जैसी चीजें बनवाने के लिए उस वक्त के राजा बहुत हीं शौक़ीन थे. इन्ही वजहों से इस जिले में मंदिर और दूसरे धार्मिक स्थल भी देखने को मिलते हैं. जिनमे सबसे पहला नाम आता है थावे के दुर्गा मंदिर का. थावे मंदिर के अलावे दिघवा दुबौली का वामन गांडेय तालाब, मांझा का किला, कुचायकोट में राजा मलखान का किला और सिरिसिया आदि. धर्मग्रंथों के अनुसार यह क्षेत्र महाभारत काल में राजा भूरी सर्वा के अधीन था. बंगाल के सुलतान ग्यासुद्दीन अब्बास और बाबर का भी तेरहवी और सोलहवी शताब्दी में शासन था. यहाँ के लोगों का स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है. यहाँ के लोग हमेशा सामाजिक हित और राष्ट्र के पक्ष में खड़े रहें हैं.

आइये अब हम अपने इस चर्चा में आपको बताते हैं की सड़क मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग के जरिये गोपालगंज कैसे पहुंचे.

  • सड़क मार्ग

तो चलिए हम सबसे पहले बात करते हैं सड़क मार्ग के बारे में. गोपालगंज जिला मुख्यालय के 14 प्रखंड राज्य राजमार्गों और कई सड़कों से जुड़ा हुआ है. इस जिले से होकर राष्ट्रिय राजमार्ग 28 गुजरती है. सड़क मार्ग द्वारा जिला मुख्यालय से सभी पर्यटक स्थलों पर आसानी से जाया जा सकता है.

  • रेल मार्ग

तो अब हम बात करते हैं रेल मार्ग के बारे में. इस जिले का मुख्यालय रेल से भी जुड़ा है जिसके माध्यम से हम अन्य दुसरे जगहों से रेल के माध्यम से भी यहाँ आ सकते हैं.

  • वायु मार्ग

यदि हम बात वायु मार्ग की करें तो गोपालगंज में सबसे नजदीकी हवाई अड्डा सबेया एअरपोर्ट है. गोपालगंज जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 28 किलोमीटर तक है. इसे भारत के रक्षा मंत्रालय के अधीन रखा गया है. बावजूद इसके यहाँ कोई भी सेना और बल नहीं है. लेकिन अब रक्षा मंत्रालय द्वारा सबेया हवाईअड्डे को चालू करने की दिशा में पहल तेज कर दी गयी है. इस हवाईपट्टी को 1868 एकड़ में बनाया गया था. चीन से यह क्षेत्र नजदीक होने के कारण इसे सुरक्षा के लिहाज से बनाया गया था और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय में भी यह इस्तेमाल में आया था.

इस जिले का क्षेत्रफल 2033 वर्ग किलोमीटर तक में फैला हुआ है. यहाँ कुल अनुमंडल की संख्या दो और प्रमंडल की संख्या 14 है. यदि यहाँ के अर्थव्यवस्था की बात करें तो यहाँ की मुख्य अर्थव्यवस्था उद्योग, बाज़ार और बैंकों पर आधारित है. यदि उद्योग की बात करें तो वनस्पति तेल, सिंचाई, खेती और चीनी आदि के उद्योग यहाँ देखने को मिलेंगे. वहीँ यहाँ के मुख्य बाज़ार गोपालगंज और मीरगंज में स्थित हैं. यदि बैंकों को देखे तो सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया, भारतीय स्टेट बैंक, सिंडीकेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ़ कॉमर्स, केनरा बैंक, इंडियन ओवरसिज बैंक, यूको बैंक, इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ़ बरौदा, इलाहाबाद बैंक और बैंक ऑफ़ इंडिया जैसे बैंक यहाँ मौजूद हैं.

आइये अब अपने इस चर्चा में हम बात करते हैं यहाँ के कृषि की. तो यहाँ की जमीन कृषि के लिए बहुत हीं उपजाऊ है. इस जिले में बलुआही मिट्टी, चिकनी मिट्टी, गंगाकारी मिट्टी और क्षारीय मिट्टी देखने को मिलेंगे. यदि बात यहाँ के फसलों की करें तो यहाँ धान, गेंहू, आलू, गन्ने, चना, अरहर, तिशी, सरसों और मक्का आदि फसलें उपजाई जाती हैं. जिले की मुख्य फसलों में गेंहू, हरी सब्जियां, धान, गन्ने और मक्के प्रमुख हैं. वहीँ वनस्पति की बात करें तो यह जिला बिहार में हरित क्षेत्र के अंतर्गत आता है. यहाँ पर शखुवा, बबुल, बरगद, पीपल, सागवान, नीम, आम, शीशम और कटहल आदि के पेड़ देखने को मिलते हैं. यदि हम बात यहाँ के सिंचाई व्यवस्था की करें तो यहाँ पर्याप्त योजनाबद्ध सिंचाई की सुविधा नहीं है. यहाँ सरकारी नलिकाएं और गंडक मुख्यरूप से दो सिंचाई के स्रोत उपलब्ध हैं. यहाँ के किसान सिंचाई के लिए या तो मॉनसून पर निर्भर रहते हैं या फिर निजी सिंचाई व्यवस्था पर जिनमे स्थानीय जल भंडारण या तालाबें, बोरिंग, हैण्ड पंप आदि शामिल हैं.

आइये अब हम अपने चर्चा में यहाँ के पर्यटन स्थलों के बारे में जानते हैं.

  • थावे

पर्यटन स्थलों में हम सबसे पहले जानते हैं यहाँ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल थावे दुर्गा मंदिर के बारे में. थावे गोपालगंज जिले में अवस्थित एक गाँव है. जो की जिला मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर की दुरी पर दक्षिण की दिशा में अवस्थित है. ऐसी कहावत प्रचलित है की यहाँ मान्यता मांगने से आपकी इच्छा पूरी होती है. दूरदूर से लोग यहाँ मंदिर के भ्रमण के लिए आते हैं. मंदिर के हीं बाड़े में एक ऐसा अद्भत सा वृक्ष है, जो क्रॉस की तरह है. इसके वनस्पति परिवार की आज तक पहचान नहीं की जा सकी है. मंदिर से थोड़ी हीं दुरी पर एक किला भी है जिसका इतिहास स्पष्ट नहीं है और अवनति के कगार पर है.

  • श्री पीताम्बरा पीठ

अब हम बात करते हैं श्री पीताम्बरा पीठ की. यह माँ बंगलामुखी का मंदिर है जो की प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है. जिला मुख्यालय से यह 15 किलोमीटर दूर कुचायकोट में स्थित है.

  • दिघवादुबौलिः

दिघवादुबौलिः यह जगह जिला मुख्यालय से दक्षिणपूर्व की दिशा में लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यह प्राचीन स्थलों में से एक है, जहाँ पिरामिड आकार के दो असाधारण ढांचे पाए गए थे.

  • लकड़ी दरगाह

लकड़ी दरगाह एक मकबरा है जहाँ लोग एक मुस्लिम संत के याद में आते हैं. इनका नाम अर्जन था जो की पटना के रहने वाले थे. इस मकबरे की कहानी यह है की संत अर्जन यहाँ के एकांत स्थल से आकर्षित हुए थे और 40 दिनों तक उन्होंने यहाँ धार्मिक चिंतन किया था. संत अर्जन द्वारा एक धार्मिक प्रतिष्ठान भी स्थापित किया गया. इस धार्मिक प्रतिष्ठान को सम्राट औरंगजेब ने संपन्न किया था.

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