बिहार बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात एक ऐसे बिहार के बारे में जिसने अपनी प्रतिभा का लोहा टीवी के साथ ही बड़े पर्दे पर मनवाया है. वह आज भी अपने रियल नाम से कम फिल्मी नामों से ज्यादा जाना जाता है. इस अभिनेता को इस बात का आज भी दुःख है कि उसे उसके काम के हिसाब से तरजीह नहीं दी गई है. वह जब बड़े पर्दे पर आया तो सरफरोश का मिर्ची सेठ को जीवंत कर दिया, उसके बाद जब वह गंगाजल में बड़े पर्दे पर दिखाई दिया तो बेइमान पुलिसवाले के उस भुरेलाल के किरदार को कौन भूल सकता है. इस नाम को हर किसी के जुवान पर ला दिया. द लीजेंड ऑफ भगत सिंह फिल्म में वे साक्षात चंद्रशेखर के रूप में हम सभी को दिखाई दिए हैं. बिहारी लाल अखिलेंद्र मिश्र ने जिस करेक्टर को पकड़ा उसे जीवंत कर दिया उस किरदार को आम लोगों के बीच में लाकर खड़ा कर दिया. अखिलेंद्र मिश्र को आज भी हाशिये का सुपरस्टार कहा जाता है.
इस बिहार अभिनेता का जन्म बिहार के सीवान में हुआ था. वे छह भाइयों में सबसे छोटे हैं. इनकी प्रारंभिक शिक्षा गुरुकुल में हुई थी. बता दें कि उनके पिता छत्रपति मिश्रा गोपागगंज में DAV स्कूल में पढ़ाते थे. इस दौरान वे तीन से चार साल तक वहां भी पढ़ाई किये थे. उसके बाद उनके पिता का तवादला हो गया और अखिलेंद्र आगे की पढ़ाई के लिे छपरा आ गए छपरा में उन्होंने उस स्कूल में एडमिशन करवाया जहां देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने पढ़ाई की थी. अखिलेंद्र को उनके घर वाले एक इंजिनियर बनाना चाहते थे. बिहार में अपने बेटों को इंजिनियर और डॉक्टर गारजियन की पहली पसंद होती है. अखिलेंद्र के माता पिता भी यही चाहते थे लेकिन अखिलेंद्र के मन में कुछ और चल रहा था. वे इंजिनियरिंग की परीक्षा फेल हो गए. तब उन्होंने छपरा के राजेंद्र कॉलेज में उन्होंने फिजिक्स ऑनर्स लिया और B.sc की पढ़ाई की.
अखिलेंद्र अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए बताया है कि वह ऐसे परिवार से आते हैं जहां फिल्म देखने पर पिटाई हो जाती थी. जरा सोचिए जिस परिवार में फिल्म देखने तक में मनाही थी उस घर से निकलकर फिल्मी दुनिया में काम करना कितना मुश्किल काम था. उन्होंने यह भी बताया है कि उस जमाने में हमारे संस्कार और लिहाज ऐसे थे कि हम लोग पिता जी के सामने जाते तक नहीं ते. उस जमाने में पिताजी को कोई बात कहनी तो दूर सामने खड़ा होना भी मुश्किल होता था. हमें जो बात कहनी होती थी हम अपनी मां को बताते थे और मां पिताजी को बताती थी इस तरह से हम अपनी बात को पिताजी को कह पाते थे. इसी तरह एक दिन अखिलेंद्र ने अपनी मां से कहा कि वह फिल्मों में काम करना चाहते हैं. मां ने यह बात पिताजी को बता दिया. इसके बाद आखिरी फैसला पिताजी का आना था. उन्होंने जो जवाब दिया वह जवाब मायानगरी तक जाने का रास्ता खोलता था. उन्होंने कह दिया कि मैंने उसे कहां रोका है कुछ करने के लिए. फिर क्या था अखिलेंद्र की गाड़ी अब निकल पड़ी थी.
अखिलेंद्र को बचपन से ही फिल्मों में मन लगता था. गांव में होने वाले नाटक में वे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे. वे बताते हैं कि उस जमाने में गांव में नाटक पेट्रोमैक्स के उजाले में हुआ करता था और हम उस नाटक का रिहर्सल लालटेन में किया करते थे. गांव से जब वे निकले तो उन्होंने इप्टा ज्वाइन कर लिया जहां उन्होंने खुब थियेटर किया. अखिलेंद्र ने एक इंटरव्यू में यह भी बताया है कि उस समय एक ब्राह्मण परिवार का लड़का पढ़ा लिखा भी है और वह नाटक और फिल्मों के बारे में सोच रहा है ऐसे में उन लोगों को बहुत सम्मान नहीं मिलता था. उस समय की बात नहीं है आज भी सिनेमा और थियेटर को गांव समाज में बहुत तरजीह नहीं मिल पाती है. जितना की डॉक्टर और इंजिनियर को मिलती है. अखिलेंद्र बताते हैं कि फिल्मों से आप लाख पैसा कमा लिजिए लेकिन गांव के लोगों का नजरिया वैसा ही है. वे आज भी उसी रूप में सोचते हैं.
अखिलेंद्र यह भी बताते कि आज अगर मुझे ऑस्कर अवार्ड भी मिल जाए तो भी मेरा ब्रांड चंद्रकांता ही है. उन्होंने यह भी कहा कि लोग आज भले ही मुझे अलग किरदार से जानें लेकिन गब्बर की तरह क्रूर सिंह का किरदार ही मेरा ब्रांड है. उन्होंने चंद्रकाता सिरियल में रोल मिलने की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि साल 1993 में जब मुझे पता चला कि नीरजा गुलेरी मुंबई से दिल्ली आई हुई हैं तो उनसे मिलने पहुंचा. वहां जाने के बाद देखा कि पहले से ही कलाकार लाइन लगाए हुए हैं. जब मेरी बारी आई तो उन्होंने पुछा कि चंद्रकांता पढ़े हों मैंने बिना वक्त गंवाए बोल दिया नहीं. नीरजा को यह बात अच्छी लगी. उन्होंने कहा की शायद वह हमारी ईमानदारी से प्रभावित हुई और मुझे क्रूर सिंह का रोल दे दिया.
अखिलेंद्र का बॉलीवुड में फिल्मी कैरियर की शुरुआत छोटे पर्दे से हुई थी. वे उड़ान सिरियल मेंसबसे पहली बार साल 1990 में दिखाई दिए थे उसके बाद साल 1993 में वे पहली बार हिंदी फिल्म धारावी में उनकेअभिनय को लोगों ने पहली बार देखा था. साल 1995 में आई टीवी सिरियल चंद्रकांता जिसमें वे क्रुर सिंह के किरदार में दिखाई दिए थे. इस टीवी सिरियल के बाद वे बॉलीवुड में पूरी तरह से छा गए थे. फिर 1997 में आई फिल्म दो आंख बारह हाथ जिसमें उन्होंने इक्का का किरदार निभाया था. इसके बाद साल 1999 में आई फिल्म सरफरोश में उनका मिर्ची सेठ का किरदार कौन भूल सकता है. इसी साल टीवी पर उनका एक सिरियल आया था तूफान जिसमें वे राय साहब के किरदार में दिखाई दिये थे. इसके बाद इन्हें एक के बाद एक फिलमों में काम करने का मौका मिलता गया. जैसे लगान, द लिजेंड ऑफ भगत सिंह, गंगाजल, आंच, हलचल, दीवार, वीर जारा, अपहरण, शूटआउट एट लोखंडवाला, दिल्ली, अतिथि तुम कब जाओगे ये वे फिल्में हैं जिसमें उनका किरदार दर्शकों के दिलों दिमाग में छा गया था. साल 2008 में आई सिरियल रामायण जिसमें वे रावण के किरदार में दिखाई दिए साल 2012 में देवों के देव महादेव में हमने उन्हें महाराज बालिक के रूप मे देखा. एक समय की सबसे पापुलर टीवी शो मे एक माना जाने वाला दिया और बाती हम में भी अखिलेंद्र मिश्र दिखाई दिए थे. इसके बाद साल 2013 में सिरिज हुई सिरियल महाभारत में कंस के रूप में दिखाई दिए थे. उसके बाद कई बार क्राइम पेट्रोल के एपिसोड में अखिलेंद्र अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे हैं. उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में अखिलेंद्र मिश्र हमें नए नए किरेदार में दिखाई दें.
चलते चलते एक सवाल के साथ छोड़े जा रहा हूं कि आपको अखिलेंद्र मिश्र का कौन सा किरेदार सबसे अच्छा लगा आप हमें कमेंट करके जरूर बताएं.