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वह राजनेता जिसने विधानसभा में जातिसूचक शब्दों पर लगाया था प्रतिबंध

Bihari News

बिहारी बेजोड़ के आज के सेगमेंट में बात करेंगे ऐसे बिहारी के बारे में जिन्होंने प्रदेश के एक बड़े से तबके को प्रभावित किया है. जिसकी रिपोर्ट के आधार पर केंद्र की नौकरियों में पिछड़े वर्ग का आरक्षण सुनिश्चित किया गया था. इन्हें पिछड़े वर्ग के नायक के रूप में देखा जाता है. उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे खुद भी स्कूल के जमाने से वंचितों के हक में बोलने लगे थे. एक बार बिहार में बरौनी रिफाइनरी में रिसाव के कारण गंगा नदी में आग लग गई थी. जिसके बाद विधानसभा में यह कहा गया था कि अगर शूद्र मुख्यमंत्री होगा तो पानी में आग तो लगेगा ही. इसके जवाब में उन्होंने कहा था कि तेल के रिसाव से गंगा नदी में आग लगी है लेकिन पिछड़े समाज के बेटे के मुख्यमंत्री बनने से आपके दिल में जो आग लगी है उसे हर कोई महसूस कर सकता है. अब तक आप भी समझ ही गए होंगे हम बात कर रहे हैं बी.पी मंडल के बारे में

बी.पी मंडल का पूरा नाम विंदेश्वरी प्रसाद मंडल था. वे स्वतंत्र भारत के उन चुनिंदा नेताओं में से जिन्होंने आजादी के बाद एक बड़े से वर्ग को अपनी विचारधारा से प्रभावित किया था. उन्हें सामाजिक न्याय और पिछड़ा समाज का मसीहा कहा जाता है.इन्होंने बचपन से ही दलितों पिछड़ों और वंचितों के लिए आवाज बूलंद किया है. वह चाहे स्कूल हो या फिर गांव हर जगह इन्होंने इनके लिए मुखर होकर आवाज को बुलंद किया है. बी.पी मंडल का मूल आवास मधेपुरा जिला के मुरहो एक्टेट के प्रसिद्ध जमींदार रासबिहारी मंडल के घर हुआ था. स्वतंत्रता सेनानी रासबिहारी उस समय बिहार चल रहे थे ऐसे में उन्हें बनारस में इलाजरत थे. इसी दौरान 25 अगस्त 1918 को इनका जन्म हुआ. और उसके अगले दिन रासबिहारी मंडल का निधन हो गया. आपको बता दें कि रासबिहारी मंडल कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. आपको बता दें कि बी.पी मंडल के पिता रास बिहारी मंडल बिहार कांग्रस में उस समय से शामिल रहे हैं जब बिहार में महात्मा गांधी की भी ऐंट्री नहीं हुई थी. साल 1885 के बंबई में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में दरभंगा के महाराज कामेश्वर सिंह के साथ उसमें शामिल हुए थे. घर परिवार में स्वतंत्रता आंदोलन का माहौल था. इसी माहौल में उनकी परवरिश हुई. बी.पी मंडल की शुरुआती पढ़ाई लिखाई गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई थी. शुरुआती पढ़ाई समाप्त करने के बाद उन्होंने राज हाई स्कूल दरभंगा में एडमिशन करवाया था. एक जमींदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी इन्हें उस समय जातीय भेदभाव का सहना पड़ा था. बता दें कि उस समय इनके स्कूल में जातीय व्यवस्था हाबी थी. उस समय की स्थिति यह था कि सवर्णों के बच्चे आगे बैठते थे. लेकिन दलितों के बच्चों को पिछे बैठने का मौका मिलता था. कई बार तो स्थिति यह होता था कि दलितों के बच्चों को नीचे बैठना पड़ता था. स्कूल ही नहीं छात्रावासों में भी बी.पी मंडल को इस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद बिंदेश्वरी ने जातपात का विरोध किया और आंदोलन किया था. जिसके बाद स्कूल में बड़ा बदलाव हुआ. बी.पी मंडल साल 1936 में मैट्रिक की परीक्षा पास किये. इसके बाद उन्होंने पटना कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि दी गई थी. उन्हें साल 1945 में ओनेनरी मजिस्ट्रेट के रूप में तैनाती की गई थी उसके बाद भागलपुर में साल 1951 में जिलाधिकारी के साथ विवाद हो गया जिसके बाद उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया.

आजाद भारत में हुए पहले विधानसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस पार्टी से मधेपुरा से चुनाव लड़ने का मौका मिला. जितने के बाद वे बिहार विधानसभा के पहले सदन के सदस्य बने. इतना ही नहीं श्री कृष्ण सिंह की सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया था. इतना ही नहीं जब वे बिहार सरकार के सत्ता पक्ष में थे तो उस समय भी उन्होंने मुखर होकर समाज के मुद्दों को उठाया था. सदन में एक बार बार बार गोवार शब्द का प्रयोग हो रहा था. जिसका उन्होंने विरोध किया जातिसूचक शब्दों को असंसदीय करार दिया गया था जिसके बाद गोबार की जगह पर ग्वाला कहा जाने लगा. जातिसूचक शब्द के विरोध में बोलते हुए बी.पी मंडल ने कहा था कि हमारे शब्दकोश में गालियां भी है तो क्या हम सदन में गालियों का भी जिक्र करेंगे क्या. जिसके बाद पूरा सदन शांत हो गया था.

इसके बाद साल 1957 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा उसके बाद भी उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. हालांकि साल 1962 में हुए चुनाव में वे जीत गए लेकिन इस बार मंत्री नहीं बनाया गया. इस दौरान वे सामाजिक राजनीति में सक्रिय थे और इसी दौरान दलितों और सवर्णों के बीच में हुई एक लड़ाई में पुलिया दमन का विरोध किया जिसके बाद उन्हें कांग्रे पार्टी छोड़नी पड़ी और उन्होंने साल 1965 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी यानी संसोपा की सदस्यता ले ली. उन दिनों संसोपा डॉ. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा था. उस समय संसोपा का एक नारा था जो काफी प्रचलित हुआ था “संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़ा पावे सौ में साठ” बी.पी मंडल के संसोपा से जुड़ने का पार्टी को खुब लाभ मिला. साल 1967 के लोकसभा चुनाव में बी.पी मंडल मधेपुरा से चुनाव लड़ने में सफल रहे और पहली बार लोकसभा पहुंचे. इधर विधानसभा चुनाव में संसोपा का कमाल यह था कि वह 7 सीटों से 69 तक पहुंचा दिया था. इस दौरान बिहार में नई सरकार बननी थी लेकिन पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया था ऐसे में महामाया प्रसाद के नेतृत्व में बिहार में सरकार बनी. केंद्र में कैबिनेट मंत्री रहते हुए बीपीमंडल बिहार में स्वास्थ्य मंत्री बन गए. जिसके बाद विरोध होना शुरू हो गया. कि कोई केंद्र का सदस्य होते हुए बिहार में मंत्री कैसे बन सकता है. आखिरी में उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. और महामाया प्रसाद की सरकार चली गई.

इसके बाद बी.पी मंडल ने जगदेव प्रसाद के साथ मिलकर शोषित दल का गठन किया. और बिहार में सरकार बनाने के लिए दावा ठोक दिया. हालांकि इस दौरान भी एक पेंच फंस गया. वे किसी सदन के सदस्य रहे बगैर छ: महीने तक मंत्री रह चुके थे. राज्यपाल बिना किसी सदन के सदस्य बने बगैर उन्हें शपथ दिलाने के लिए तैयार नहीं थे. इस प्रकार वे पिछड़ा वर्ग से आने वाले बिहार के पहले मुख्यमंत्री बनतेबनते रह गए. लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने का रास्ता अभी बंद नहीं हुआ था. सरकार बनाने में आ रही बाधा को दूर करने के लिए समाधान निकाला गया कि विधायक सतीश प्रसाद सिंह को एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बनाया जाय. मुख्यमंत्री बनने के बाद सतीश प्रसाद सिंह बी.पी. मंडल को विधान परिषद में नामित करेंगे तथा उसके बाद इस्तीफा देकर उनके मुख्यमंत्री बनने का मार्ग प्रशस्त करेंगे. बिलकुल ऐसा ही हुआ. 1 फरवरी, 1968 को बी.पी. मंडल पिछड़ा वर्ग से आने वाले बिहार राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री बने. पिछड़ा वर्ग से आने वाले बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में सतीश प्रसाद सिंह का नाम इतिहास में दर्ज हो चुका था. सतीश बाबू का कार्यकाल केवल तीन दिन का रहा जबकि बी.पी. मंडल मात्र तीस दिनों तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे. यह बी.पी मंडल की ही देन है कि पिछले तीन दशक से बिहार की सत्ता पर पिछला समाज का व्यक्ति मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज है.

जब बी.पी मंडल बिहार के मुख्यमंत्री थे उस समय बरौनी रिफाइनरी में तेल का रिसाव हो रहा था तब विधानसभा में कटाक्ष करते हुए विनोदानंद झा ने कहा था कि शूद्र मुख्यमंत्री होगा तो पानी मेंआग लगेगा ही. बी.पी. मंडल ने इसका जवाब देते हुए कहा था– “गंगा में आग तो तेल के रिसाव से लगी है, परंतु एक पिछड़े वर्ग के बेटे के मुख्यमंत्री बनने से आपके दिल में जो आग लगी है, उसे हर कोई महसूस कर सकता है।” बी.पी. मंडल मुख्यमंत्री बनने के लिए लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे। सीट रिक्त होने के कारण 1968 में मधेपुरा संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव हुआ तो वे फिर से चुन लिए गए। सन् 1972 में वे मधेपुरा विधानसभा क्षेत्र से तीसरी बार विधायक चुने गए। सन् 1974 आतेआते राज्य सरकार में बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ बिहार और गुजरात समेत कई राज्यों में छात्र आंदोलन शुरू हो चुका था। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हो रहे छात्र आंदोलन की आंच दिल्ली तक पहुंच रही थी। सरकार आंदोलन को दबाने का निरंतर प्रयास कर रही थी। बिहार के विपक्षी दलों के विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा देने का निर्णय किया। इस निर्णय में बी.पी. मंडल भी सहभागी थे। विधानसभा से त्यागपत्र देकर अब सारे विधायक छात्र आंदोलन के समर्थन में सरकार के विरुद्ध सड़क पर थे। छात्र आंदोलन से त्रस्त इंदिरा गांधी ने 25 जून, 1975 को देश में जब आपातकाल लागू कर दिया तब सरकार और आंदोलनकारी नेताओं के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा। आंदोलन के छोटेबड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, जो बाहर रहे, वे आंदोलन को हवा देते रहे।

आपातकाल के दौरान सोशलिस्ट पार्टी और जनसंघ मिलकर जनता पार्टी बन गई. जैसे ही आपात काल देश से समाप्त हुआ और साल 1977 के आम चुनाव में जनता लहर पर सवार जनता पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली. इसके बाद बी.पी.मंडल मधेपुरा के संसदीय क्षेत्र से तीसरी बार लोकसभा के सदस्य चुने गए. इसके बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में दिल्ली में केंद्र सरकार का गठन हुआ. 1977 से 79 तक लोकसभा के सदस्य रहे उसके बाद 1978 में दिसंबर माह में त्ताकलीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने पांच सदस्य नागरिक अधिकार आयोग गठिक की. इस कमिटी के अध्यक्ष बी.पीमंडल को बनाया गया. इस कमिटि ने साल 1980 में अपनी रिपोर्ट पूरी कर ली और सरकार को सौंप दी. कमिटि की तरफ से जारी रिपोर्ट में पिछड़ी जातियों के लिए सरकारी और शैक्षणिक संस्थान में सीटें आरक्षित करने को लेकर अनुसंशा की गई थी. इसके बाद साल 1980 में इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हो गई. इंदिरा की सरकार ने इस रिपोर्ट को ठंढ़े वस्ते में डाल दिया. लेकिन 10 साल के बाद फिर से कांग्रेस की सरकार केंद्र की सियासत से बाहर हो गई और विश्वनाथ प्रताप सिंह सत्ता में आए. और यह रिपोर्ट कानून का रूप लेने के लिए तैयार हो गई. इस रिपोर्ट के आ जाने के बाद से भारत की राजनीति में एक नई धार निकलकर सामने आई. इस दौरान पिछड़ों के कई नेता सामने आए. इतना ही नहीं जब यह रिपोर्ट सामने आई तो राजनीतिक पार्टियों में कई तरह के बदलाव करने पड़े.

  • इस रिपोर्ट जिक्र था कि सरकारी सेवाओं में पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण दी जाए

  • केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली वैज्ञानिक, तकनीकी, प्रोफेशनल तथा उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए ओबीसी वर्गों के छात्रछात्राओं के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जाए.

साल 1990 में बी. पी मंडल कममीशन की रिपोर्ट विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में लागू हो गई. इसके बाद से पिछड़ा वर्ग के लिए सरकारी सेवाओं के दरवाजे सदा के लिए खुल गए. जिसके बाद पूरे देश में दंगे जैसे हालात रहे थे. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहल लगा दी. 8 सितंबर 1993 को इस फैसले को लेकर अधिसूचना जारी कर दी गई. इतना ही मंडल आयोग के फैसले के बाद ही शिक्षण संस्थानों में भी पिछड़े वर्ग के छात्रों के लिए दरवाजे खुल गए.

कहा जाता है कि मंडल कमीशन के लागू हो जाने के बाद से बी.पी मंडल ओबीसी समाज के लिए एक वरदान के रूप में रहे हैं. बता दें कि मंडल कमीशन के पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव की पृष्ठभूमि तैयार की है. बी.पी मंडल के ही कारण पिछड़े वर्ग के लोग राजनीति में आगे आए हैं. बी.पी मंडल की एक सिफारिश ने सभी लोगों का दिल जीत लिया था. वे जमींदार परिवार के रहते हुए भी वंचित वर्गों के पक्ष में अपनी बात कहा करते थे. इतना ही नहीं जमींदारी उन्मूलन को लेकर भी अपनी बात रखी थी.

बी.पी मंडल को मूक क्रांति का नायक कहा जाता है. फिर आया साल 13 अप्रैल1982 को हृद्य गति रूक जाने से पटना में उनका निधन हो गया. हालांकि यह महान नायक अपने द्वारा तैयार की गई सिफारिश को लागू होते हुए नहीं देख सका लेकिन यह ओबीसी पिछड़ों का मसीहा कहलाया. आज भी बी.पी मंडल को लोग बड़े ही सम्मान के साथ बुलाते हैं.

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