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बिहार के इस मंदिर में बिना रुके हो रहा है राम नाम का जाप, गिनिज बुक में है दर्ज

Bihari News

कोस कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी ! अगर आप बिहार से हैं तो ये कहावत आपने जरुर सुनी होगी. क्यूंकि वाकई में बिहार में आपको हर चार कोस पर विविधता देखने को मिल जाती है. ऐसे में आज हम अपने बिहारी विहार के इस सेगमेंट आपको ले चलेंगे राजधानी पटना से 150 किलोमीटर दूर सीतामढ़ी जिले में स्थित बगही धाम. उससे पहले मैं आपको बताना चाहूंगी की बगही धाम के आस पास ना तो आपको राजगीर जैसे ऊँचेऊँचे पहाड़ों वाली वादियाँ ना ही vtr जैसे जंगल और जंगली जानवर ना रोहतास जैसे मनोरम दृश्य वाले झड़ने और ना ही राजधानी पटना स्थित ऊँची ऊँची और एतिहासिक इमारत देखने को मिलेगी. लेकिन इस धाम की एक ऐसी ख़ास बात जो आपके होश उड़ा देने के लिए काफी है. यही नहीं बगही धाम ने अपना नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज कर रखा है. इससे आप समझ सकते हो की यह धाम भले ही पर्यटकीय स्थल के तौर पर उतना विकसित नहीं हुआ हो लेकिन असल मायने में कितना महत्वपूर्ण है. अब बिना देर किए मैं आपको तकरीबन 70 साल पीछे लेकर चलती हूँ. जहाँ से यह कहानी शुरू हुई थी.

कहा जाता है की जितनी आस्था तपस्वी बाबा नारायण दास की प्रति जनजन में है, उतनी ही आस्था बगही धाम स्थित बाबा धनेश्वर नाथ महादेव के हर कणकण में है. बात साल 1951 के है जब बाबा नारायण दास दीक्षा लेकर सीतामढ़ी जिले के बगही गाँव वापस आए. बाबा नारायण दास का जन्म बगही गाँव में एक साधारण परिवार में 17 फरवरी 1917 को हुआ था. दीक्षा लेकर वापस आने के बाद साल 1954 से बाबा नारायण दास ने राम नाम का प्रचार प्रसार शुरू किया. लेकिन उस समय ये बात किसी को नहीं पता थी की बगही धाम में उच्चारण होने वाला राम नाम एक दिन वर्ल्ड रिकॉर्ड कायम कर देगा.

किसी भी आम इंसान को हैरान कर देने वाली बात यह है की साल 1960 यानी की उस समय से लेकर अभी तक यानी की पूरे 62 सालों से यहाँ राम नाम का जाप चौबीसों घंटे 365 दिन यानी एक दिन और एक मिनट भी ऐसा खाली नहीं जाता की यहाँ राम नाम का कीर्तन ना होता हो और यही ख़ास बात इस मंदिर को और सभी शिव मंदिर से अलग और महत्वपूर्ण बनाता है. बिहारियों को और भी गौरवान्वित कर देने वाली बात तो यह है की इसके लिए बगही मठ का नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है .

सीतामढ़ी से 12 किमी दूर बगही गांव में स्थापित शिवलिंग की महिमा भी कम नहीं. कहते है कि इस शिवलिंग के दर्शन मात्र से ही धन की वर्षा होने लगती है. यहीं वजह है कि इनका नाम धनेश्वर नाथ महादेव है। कहा जाता है की सवा दो सौ साल पहले रंजीतपुर गांव के भूल्लर साह रौनियार ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था.इसके बाद कुछ ही वर्ष पहले इस मंदिर के निर्माण में गति दी गई. जिसके बाद 108 फीट ऊँचे इस मंदिर पर पांच करोड़ रुपये खर्च कर बनाए गए. यह उत्तर बिहार का पहला शिव पंचायतन मंदिर है. देश के बड़े मंदिरों में से एक माना जाता है. इसकी बनावट ऐसी है की चार कोनों पर छोटा छोटा मंदिर और बीच में बड़ा सा मंदिर स्थापित है. जहाँ सैकड़ों वर्ष पुराना शिवलिंग स्थापित की गई है. मंदिर के चार कोनों पर लक्ष्मीनारायण, सूर्यदेव, गणपति, मां दुर्गा व कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित की गई है. मंदिर के पुजारी कहते हैं की मंदिर का नक्शा खुद बाबा नारायण दास ने ही बनाए थे.

यही नहीं यहाँ 7 दिसंबर 1960 को बाबा ने बगही धाम में 108 झोपड़ी का मंडप बना कर विष्णु यज्ञ व महारूद्र यज्ञ किया था. उस दौरान अकस्मात पुरी संरचना जल गई. एक साल बाद बाबा ने जन सहयोग से उसी स्थान पर 108 कमरों का चार मंजिला भवन बनवाया. यह एक गोल भवन की तरह है. जिसमें चार द्वार है और यहाँ राम नाम का जाप किया जाता है.

वहीँ अगर आप यहाँ जाना चाहते हैं यही नहीं अगर आप यहाँ रुकना चाहते हैं तो यहाँ यह भी व्यवस्था की गई है. साथ ही यहाँ भोजन की भी व्यवस्था होती है. मंदिर में उपस्थित पुजारी कहते हैं. की सीतामढ़ी के साथ साथ आस पास के जिले जैसे मुजफ्फरपुर. शिवहर, मधुबनी दरभंगा मोतिहारी और कुछ नेपाल के भक्तों द्वारा यहाँ दान दिए जाते है. मदिर में मौजूद बाबा कहते हैं की हमलोग ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर फ़सल के टाइम में गेंहू और चावल लेकर आते हैं और अभी तक ऐसे ही मठ का सञ्चालन कर रहे हैं. बाबा कहते हैं की कुछ स्थानीय लोग दिन के समय में अखंड कीर्तन में साथ देते हैं बाकी के समय में मठ में मौजूद संत लोग इस परम्परा को आगे बढाते हुए रिकॉर्ड कायम रखा है. बाबा कहते हैं की राम नाम के जप को जारी रखने के लिए यहाँ दो दो घंटे की मठ में मौजूद संतों की शिफ्ट होती है. और हर दो दो घंटे पर संतो की शिफ्ट बदलती है. बगही धाम रंजीतपुर पंचायत में स्थित है. यहाँ जो लोग भी आते हैं उनके लिए भोजन भंडारा चौबीसों घंटे उपलब्ध रहता है. कुछ हो न हो मिथिला का प्रसिद्द दही चुरा आपको वहां हर वक़्त मिल जाएगा. इसमें कोई जाति कोई धर्म कोई साम्प्रादय की मनाही नहीं है. सर्व धर्म और सर्व भाव से सबकी सेवा होती है और वे अपना योगदान दे सकते हैं

अगर आप किसी ऐसे ही ख़ास दर्शनीय स्थल की तलाश में हैं तो यहाँ जरुर जाएं जिसने पिछले कई वर्षों से कीर्तिमान स्थापित किया है और आगे भी करने वाला है.

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