जमीन खरीदते समय अक्सर लोग धोखा खा जाते हैं. लेकिन अब किसी के साथ जमींन खरीदते समय धोखा नहीं होगा. यदि जमीन को लेकर कोई विवाद खड़ा होता है तो कंप्यूटर पर केवल क्लिक में पुलिस द्वारा यह पता लगा लिया जाएगा की आपके थाना क्षेत्र में किस रकबा के किस खेसरा में कौन सा प्लौट विवादित है और साथ सा प्लौट विवादित नहीं है. दरअसल इसके लिए जमीनों की भौगौलिक सूचना तंत्र यानी GIS मैपिंग में रंग के आधार पर जमींन और उसके विवाद के प्रकृति को दिखाया जाएगा. इसमें जमींन और उसके विवाद की प्रकृति को रंगों के आधार पर दर्शाने के लिए हरा, लाल और पिला रंग का उपयोग किया जाएगा. नक़्शे में लाल रंग का मतलब है की जमीन विवादित है. वहीँ पीले नक़्शे में किसी जमीन पर पिला रंग दिखा रहा है तो इसका अर्थ है की वह जमींन संवेदनशील है. यदि हम हरे रंग की बात करें तो हरे रंग का मतलब होता है की वह जमींन सामान्य है. इसे लेकर चैतन्य प्रसाद जो की गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव हैं उनके द्वारा दिशा–निर्देश भी जारी किया गया है. साथ हीं साथ भू समाधान पोर्टल को भी उनके आदेश पर अपडेट किया जा रहा है.
आइये अब अपने इस चर्चा के बीच हम जानते हैं की किस तरह से और किन वजहों से जीआईएस मैपिंग से इसकी निगरानी की जा रही. दरअसल जीआइएस मैपिंग से निगरानी जमींन विवाद के बढ़ने और विवाद के कारण होने वाले अपराधों के वजह से हो रही. इसलिए इसे अलग–अलग रंगों से चिन्हित कर के दिखाया गया है. रंगों को देख कर हीं जमींन का विवाद कितना गंभीर है या कितना सामान्य यह पता चलता है. पहले जमींन विवाद का डेटा ओपी, थाना, अनुमंडल और जिलास्तर पर मैन्युअली तैयार किया जाता था. लेकिन अब जीआईएस मैपिंग के कारण पहले से काम आसान और सुविधाजनक हो गया है. बता दें की हमेशा नक़्शे पर जमींन का रंग एक जैसा हीं नहीं होता है. जिस–जिस प्रकार जमींन का विवाद सुलझता जाता है या बढ़ जाता है तो वैसे–वैसे जमींन के प्रकृति के हिसाब से नक़्शे पर जमींन का रंग भी बदलता जाता है. इससे विवादित और सामान्य जमीन के स्थिति का पता चलता है. नक़्शे की स्थिति को अपडेट रखने के लिए भू–समाधान पोर्टल को भी अपडेट कराया जा रहा है.
मुख्य सचिव भी ऑनलाइन माध्यम से किसी भी समय किसी भी मामले की जानकारी ले सकें उसी हिसाब से पोर्टल को मॉडिफाइड किया जाएगा. मुख्यालय से थाना स्तर पर मोनिटरिंग भी जाएगी. मोनिटरिंग करने के लिए प्रारूप को भी तय किया गया है. मोनिटरिंग के जरिए भूमि विवाद कब दर्ज किया गया है इसका पता आसानी से लगाया जा सकेगा. साथ हीं किस स्तर पर समाधान के लिए बैठक हुई और यह बैठक कब की गयी. बैठक में बात कहाँ तक पहुंची और क्या निर्णय लिया गया व अन्य जरुरी बातों को भी दर्ज किया जाएगा. इसकी प्रगति और हर प्रकार की प्रविष्टि को थाना स्तर पर अपलोड किया जाएगा.
सामान्य, संवेदनशील और अतिसंवेदनशील विवादित स्थल को इस नयी व्यवस्था से पहले मैपिंग में अलग–अलग रंगों से दिखाया जाता था. ऐसे में थाना क्षेत्र की जानकारी से लोग वंचित रह जाते थे. लेकिन अब जमींन के डीड के समय हीं विवादित जमीन का पता चल जाता है. अब सभी विवादित जमीनों का थानावार डाटा अपलोड होने के वजह से हीं यह संभव हो पाया है. लिहाजा मोबाइल नंबर, ओपी का लोकेशन या मैपिंग सम्बंधित थानों की जानकारी भी दर्ज की जा रही है. साथ हीं साथ थानाध्यक्ष का मोबाइल नंबर और लैंडलाइन नंबर को भी दर्ज किया जाएगा. लोग कभी भी सम्बंधित थानों से विवादित जमींन के सम्बन्ध में लोकेशन और नंबर की मदद से तात्कालिक जानकारी ले सकेंगे. बताते चलें की बिहार में सबसे अधिक अपराध जमीन विवाद के कारण हीं होता है. इस बात का पता नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी NCRB से लगा है. NCRB के एक रिपोर्ट के अनुसार जमीन के वजह से 2.7 क्राइम रेट है. लगभग 3336 कांड बिहार में वर्ष 2021 में केवल भूमि विवाद के कारण हीं हुए थे. भू–अभिलेखों के डिजिटलाईजेशन और आधुनिकीकरण के लिए नेशनल काउंसिल ऑफ़ अप्लाइड इकोनोमिक रिसर्च द्वारा बिहार को पहला स्थान दिया गया है. बिहार द्वारा बीते वर्ष 125 फीसदी की प्रगति की गयी है. इस बात का मूल्यांकन इसी राष्ट्रिय एजेंसी द्वारा किया गया है.