बिहार में जारी सियासी उठापटक के बीच में अब लोकसभा चुनाव को लेकर तैयारी शुरू हो गई है. बिहार से इतर कर्नाटक के साथ राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव होना है. इन राज्यों में लोकसभा की 93 सीटें आती है जिसमें पिछले साल बीजेपी 86 जीतने में कामयाव रही थी तो वहीं साल 2014 में बीजेपी 79 सीटें जीतने में सफल रही है. इस सियासी गरमागमी के बीच में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी परेशानी महाराष्ट्र और बिहार में देखने को मिलेगी. क्योंकि बिहार में जदयू नीतीश कुमार के साथ रही है तो वहीं महाराष्ट्र में शिवसेना बीजेपी के साथ चुनाव लड़ती रही है लेकिन पिछले कुछ सालों में दोनों के बीच में तकरार देखने को मिला अब तो स्थिति यह हो गई कि बीजेपी ने शिवसेना को दो भागों में बांट कर एक हिस्से के साथ सत्ता के साझेदार बन गए हैं. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि इन दोनों राज्यों में बीजेपी के लोकसभा चुनाव इतना आसान नहीं होने वाला है.

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इन दोनों राज्यों में अगर लोकसभा सीटों की स्थिति को देखें तो कुल 88 लोकसभा सीटें आती है. जिसमें साल 2014 में इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी 45 सीटें जीत पाई थी तो वहीं साल 2019 में बीजेपी इन दोनों राज्यों को मिलाकर 40 सीटें जीतने में कामयाव रह पाई. वहीं अगर हम इन दोनों ही राज्यों में NDA की स्थिति को देखें जिसमें जदयू और शिवसेना बीजेपी के साथ थी तो स्थिति एक दल उलट देखने को मिली थी. बता दें कि साल 2019 में एनडीए साथ में 88 में से 80 जीतने में कामयाव हो गई थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीती थी. अगर हम इन दोनों ही राज्यों की जीती हुई सीट को हटा दें तो बीजेपी बहुमत से नीचे खिसक सकती है.

बिहार और महाराष्ट्र में जारी सियासी उठापटक बीजेपी के लिए कई परेशानियां खड़ी कर रही है. बिहार और महाराष्ट्र में इसके साथी ही इनके साथ नहीं है. इसका नतीजा अब बिहार में दिखने लगा है. बिहार में बीजेपी के बड़े नेताओं की रैलियां होने वाली है. बीजेपी पहले ही यह कह चुकी है कि बिहार में 10 सीटें ऐसी हैं जहां पर उनकी पकड़ कमजोर है. ऐसे में बीजेपी उन 10 सीटों पर ध्यान दे रही है लेकिन बीजेपी को जदयू की 16 सीटों पर भी ध्यान देने की जरूरत है. क्योंकि यहां महागठबंधन एक साथ चुनाव मैदान में होगी तो ऐसे में राजद, जदयू और कांग्रेस के साथ ही वाम पार्टियों का वोट बैंक एक जगह गिरने वाला है.

ऐसे में अब देखना है कि इन दोनों ही राज्यों में बीजेपी की आगे रणनीति क्या होगी? क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना ने अपने आप को सरकार के पिछे कर लिया और कांग्रेस एनसीपी के साथ मिलकर शिवसेना ने सरकार बना ली. इसके बाद साल 2022 में बीजेपी ने शिवसेना को तोड़कर उसके एक हिस्से के साथ मिलकर सरकार बना ली. जिसके कर्ताधता एकनाथ शिंदे बने. बाद के समय में शिंदे गुट को चुनाव आयोग ने असली शिवसेना माना. इधर बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी और जदयू एक साथ चुनाव मैदान में उतरी लेकिन NDA के साथी रामविलास पासवान की पार्टी ने नीतीश कुमार के खिलाफ उम्मीदवार उतारकर नीतीश कुमार खुब डैमेज किया. इसका नतीजा हुआ कि नीतीश कुमार की पार्टी की सीटें कम हो गई. लेकिन नीतीश कुमार साल 2022 में बीजेपी को छोड़कर महागठबंधन के साथ सरकार बना लिए. लेकिन उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार से अलग हो गए. ऐसे में अब कहा जा रहा है कि जदयू में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. हालांकि आने वाले लोकसभा चुनाव में बिहार और महाराष्ट्र बीजेपी को परेशानी में डाल सकता है. क्योंकि उनके अपने साथी उनके दुश्मन बने हुए हैं. महाराष्ट्र में सीटों सीटों के बंटबारे को लेकर भी खिंच तान देखने को मिल सकती है. हालांकि एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने के बाद बहुत ज्यादा माथा पच्ची तो नहीं होता दिख रहा है लेकिन तब भी महाराष्ट्र बीजेपी के लिए इतना आसाना नहीं होने वाला है. आपको ये भी बता दें कि जदयू और शिवसेना अकेले भी चुनाव लड़ चुकी है लेकिन कोई बड़ा कारनामा करने में असफल रहीहै ऐसे में गठबंधन के साथ चुनाव लड़ना इन दोनों की मजबूरी है.

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