अगर आप बिहारी है या आपके परिवार का कोई सदस्य बिहार में रहता होगा तो आपने यहां का व्यंजन का स्वाद जरुर लिया होगा. यहां के व्यंजन से लोगों का पेट तो भर जाता है पर उनका मन नहीं. और जब यहां पर त्योहार के मौके पर बनाई जाने वाली पकवानों की बात करें तो, इसकी बात ही अलग होती. नमस्कार, मैं प्रज्ञा. आज हम बिहारी जायका में बात करेंगे बिहार के एक ऐसे पकवान की जिसे बिहारी लोग त्योहार के मौके पर बनाते हैं और यह खाने में भी बाकी पकवानों से काफी अलग होता हैं. यह एक ऐसा व्यंजन है जिसके बिना होली जैसा बड़ा त्योहार भी अधुरा रह जाता हैं. ऐसे में हम कह सकते है कि यह व्यंजन होली की जान हैं और इसके बिना होली का मजा भी अधुरा हैं. खोए और मैदे से बनी ये ख़ास मिठाई वास्तव में जब प्लेट में सर्व की जाती है तब मुंह में पानी आ जाता है और इसका स्वाद लाजवाब लगता है. हम बात कर रहे हैं उस व्यंजन की जिसका चाँद जैसा आकर है , खाने में लाजवाब है . होली की शान है , गुजिया उसका नाम हैं. अगर आप बिहार के रहने वाले है तो आपने पिरिकियाँ का स्वाद जरुर चखा होगा. वैसे लोग जो इस शब्दावली से पहली बार रूबरू हो रहे है उनके लिए बता दूँ की यह मिठाई को लोग बरे चाव से खाते हैं. यह पकवान बिहार के छपड़ा जिला में काफी प्रसिद्ध हैं.

बता दे कि इस व्यंजन को होली के अवसर पर सभी लोगों के घरों में बनाया जाता हैं. इसे बनाना भी एक कला है और बिना टीम वर्क करे इस मिशन को पूरा नहीं किया जा सकता. मगर जब ये बनकर तैयार होती है और आपके सामने प्लेट में सज कर आती है तो इसे खाए बिना कोई रह नहीं पाता. लोगों का मानना है कि अगर होली के मौके पर अगर गुजिया नहीं खायी तो होली क्या मनाई. इसे पकवानों की रानी भी कहा जाता हैं. गुजिया खाते समय आप में से कईयों के मन में ये ख्याल कभी न कभी जरुर आया होगा कि आखिर ये स्वादिष्ट मिठाई पहली बार कहाँ बनी होगी? आखिर इसकी रेसिपी सबसे पहले किसके मन में आई होगी? किसने इस मिठाई का नाम गुजिया रखा होगा और कब ये होली की विशेषता बन गयी होगी ?

मेरे मन में न जाने ऐसे कितने सवाल हर बार आते हैं. अगर आपके मन भी ये सवाल आते है और आप इन सवाल के जवाबों को ढूंढ रहे है तो, चलिए हम बताते है इस लजीज व्यंजन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जिसे शायद ही आप में से कोई जानता होगा. अगर हम इसके इतिहास को देखे तो, मैं आपको बता दूँ की गुजिया की शुरुआत काफी पुरानी हैं. यह एक मध्यकालीन व्यंजन है जो मुगल काल से पनपा और कालांतर में त्योहारों की स्पेशल मिठाई बन गई हैं. इसका सबसे पहला जिक्र तेरहवीं शताब्दी में एक ऐसे व्यंजन के रूप में सामने आता है जिसे गुड़ और आटे से तैयार किया गया था. ऐसा माना जाता है कि पहली बार गुजिया को गुड़ और शहद को आटे के पतले खोल में भरकर धूप में सुखाकर बनाया गया था और यह प्राचीन काल की एक स्वादिष्ट मिठाई थी. लेकिन जब आधुनिक गुजिया की बात आती है तब इसे सत्रहवीं सदी में पहली बार बनाया गया. गुजिया के इतिहास में ये बात सामने आती है कि इसे सबसे पहली बार उत्तरप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बनाया गया था और वहीं से ये राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार और अन्य प्रदेशों में प्रचलित हो गई. गुजिया से जुड़ा कटी जगह इस बात का जिक्र मिलता है कि भारत में समोसे की शुरुआत के साथ ही गुजिया भी भारत आयी और समय के साथ यहां के ख़ास व्यंजनों में से एक बन गयी.

इस स्वादिष्ट पकवान के अलगअलग जगहों पर अलगअलग नाम से जाना जाता हैं. जैसे बिहार में गुजिया को पिरिकिया के नाम से, महाराष्ट्र में करंजी, गुजरात में घुघरा, आंध्रप्रदेश में कज्जिकयालु, तमिल में कचरिका और कन्नड़ और तेलुगु में कज्जीकई और छत्तीसगढ़ में कुसली के नाम से जाना जाता हैं. इसे बनाने का भी अलगअलग ढंग है. आम तौर पर गुजिया को बनाने के लिए मैदे को मोइन डालकर डो तैयार किया जाता है और फिर उसमें खोया या भुनी हुई सूजी को उसमे चीनी मिलकर भरा जाता है. फिर इस पुड़ी को मोड़कर गुजिया वाला आकार दिया जाता. लेकिन कुछ जगहों पर इसके ऊपर चाशनी की परत भी चढ़ाई जाती है और कुछ जगहों पर राबड़ी दाल कर भी इसे बनाया जाता हैं. इन सब में दिलचस्प बात य है कि पुराने समय में महिलाए अपने नाख़ून को बढ़ाया करती थी ताकि वह गुजिया को आसानी से गोंठकर सही आकार दे सकें.

चलिए अब हम आपको बताते है कि होली के मौके पर इसे क्यों बनाया जाता हैं. ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत सबसे पहले ब्रज में हुई थी. कहा जाता है कि तब भगवान् कृष्ण को चढ़ाने के लिए इसे विशेष रूप से बनाया जाता था. तभी से होली में गुजिया बनाने का प्रचलन पूरे देश में फ़ैल गया. वैसे इसे बनाने के लिए किसी ख़ास त्योहार की जरुरत नही हैं. लोग आम मौकों पर भी इसे बना कर खाते हैं. बता दे कि गुजिया से जुड़े कई फायदे भी होते हैं, जो हमारे सेहत के लिए काफी लाभकारी होता हैं. इसमें सबसे ज्यादा खोवा का प्रयोग किया जाता है, जिसमें कैल्शियम की ज्यादा मात्रा होती है, जिससे हमारी हड्डियां मजबूत होती हैं. साथ ही मावा का ज्यादा सेवन करने से हमारी त्वचा कोमल और मुलायम बनती हैं, और गुझिया में ज्यादा से ज्यादा मावा की स्टफिंग की जाती है इसलिए ये हमारे सेहत के लिए लाभदायक हैं. वहीं अगर गुजिया को घर में बनाया जाता है तो इसमें उन चीजों का उपयोग नही किया जाता जो स्वास्थ्य के लिए अच्छा न हो. घर में बनने वाले गुजिया में अच्छे खोवा का इस्तेमाल किया जाता है जिससे हमारी हड्डियाँ मजबूत होती है और साथ ही ह्रदय भी स्वस्थ रहता हैं. इसलिए घर पर बनाया गया गुजिया बाहर की गुजिया से कई गुना ज्यादा हेल्दी होता हैं.

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