किसी ने कहा जोकर तो किसी ने मसखरा, इसी अंदाज ने बनाया सबसे पसंदीदा अंपायर
विश्व क्रिकेट का सबसे अनोखा, सबसे निराला अंपायर, जिसने अपनी अंपायरिंग से किया फैन्स के दिलों में घर
अंपायर, जो अपने अजब गजब तरीकों से निर्णय देने के लिए था मशहूर, बच्चे–बच्चे थे दीवाने
ब्रोंज बेल्स से सम्मानित होने वाला दूसरा सबसे युवा अंपायर, जो 10 वर्षों तक रहा एलिट पैनल का हिस्सा
अंपायर जिसने फुटबॉल की तरह क्रिकेट में इस्तेमाल किया रेड कार्ड
आलोचनाओं को भूल जो अपनी अंपायरिंग का आनंद लेने में था मशगूल, जिन्दादिली और खुशमिजाजी का जो बना जीता–जागता उदाहरण
जीवन की असली दौलत धन, पद या प्रतिष्ठा नहीं बल्कि यह है कि आप कितने खुश हैं और कितने उमंग के साथ आप जिंदगी जी रहे हैं. जो खुद खुश रहते हैं वही अपने आसपास के लोगों को भी ख़ुशी दे सकते हैं. आज जिसकी बात करेंगे, इस बात को उसने बखूबी समझा है और दुनिया को सिखाया है, जिंदगी जीने का सलीका. आज हम किसी खिलाड़ी की बात नहीं करेंगे हम बात करेंगे एक अंपायर की.
दोस्तों, क्रिकेट के मैदान पर अंपायर की अपनी अलग पहचान होती है, हैट लगाए मैदान में खड़े अंपायर की इजाजत के बिना कोई कुछ भी नहीं कर सकता. विश्व क्रिकेट में अंपायरों का भी अपना अनूठा इतिहास रहा है. कुछ अपने सटीक फैसले के लिए याद किए जाते हैं, कुछ अपने विवादस्पद फैसलों के लिए जाने जाते हैं और कुछ अपने अजीबोगरीब तरीकों के लिए मशहूर हैं. चक दे क्रिकेट की टीम अपनी खास पेशकश में लाया है एक अनूठे अंपायर की दास्तां. अंपायर जो अपने निराले अंदाज के लिए जाने जाते हैं. मैदान पर चाहे कितना भी टेन्स माहौल हो यह अंपायर अपने अजब–गजब तरीकों और अंदाज से माहौल को खुशनुमा बना देता था. अब तो आप समझ ही गए होंगे हम किसकी बात कर रहे हैं. नहीं समझे ? अच्छा चलिए हम आपको बता देते हैं. हम बात कर रहे हैं वर्ल्ड क्रिकेट के सबसे अलग और लाजवाब अंपायर की, जिसे दुनिया बिली बाउडन के नाम से जानती है.
आज के अंक में हम बिली बाउडन के जीवन से जुड़ी कुछ जानी–अनजानी और अनकही बातों को जानने की कोशिश करेंगे.
अपने बेढंगे और निराले अंदाज के लिए प्रसिद्द अंपायर बिली बाउडन का जन्म 11 अप्रैल, 1963 को न्यूजीलैंड के हेंडरसन में हुआ था. स्कूली दिनों में बिली एक तेज गेंदबाज थे लेकिन 20 वर्ष की आयु तक पहुंचते–पहुंचते उनको जोड़ों में दर्द और खिचाव की शिकायत होने लगी. दरअसल, बिली को एक तरह की गठिया थी, जिसमें उनके जोड़ो के भीतर का तरल पदार्थ समाप्त हो रहा था. यह पहला मौका था जब बिली बाउडन को अपनी बीमारी का पता चला था. और इसके बाद बिली को अपना पसंदीदा खेल क्रिकेट छोड़ना पड़ा. लेकिन बिली ने सिर्फ क्रिकेट खेलना छोड़ा था, क्रिकेट नहीं. उनके अंदर के खिलाड़ी ने हार नहीं मानी थी और इसलिए बिली बाउडन ने अंपायरिंग की राहों को चुन लिया ताकि वो क्रिकेट से जुड़े रहें.
क्रिकेट को नजदीक से देखने के उनके हुनर ने उन्हें 2 साल के अंदर ही अंतराष्ट्रीय स्तर का अंपायर बना दिया.
साल 1995 में श्रीलंका बनाम न्यूजीलैंड वनडे मुकाबले से, जो कि हेमिल्टन में खेला गया था, बिली बाउडन ने अपने अंतराष्ट्रीय अंपायरिंग करियर की शुरुआत की थी. लेकिन टेस्ट अंतराष्ट्रीय मैचों में अंपायरिंग करने में उन्हें 5 साल लग गए. बिली ने साल 2000 में ऑस्ट्रेलिया बनाम न्यूजीलैंड मैच से अंपायर के रूप में अपना टेस्ट डेब्यू किया था. लेकिन जिस गठिया के चलते बिली ने अंपायरिंग करना चुना था, उसने कुछ सालों बाद उनके लिए अंपायरिंग करना भी मुश्किल कर दिया.
हालांकि अंपायरिंग में खेलने जितनी मेहनत नहीं होती लेकिन हाथों का इस्तेमाल तो होता ही है. और यही बिली के लिए परेशानी का सबब बन रही थी. वह जब भी किसी बल्लेबाज परंपरागत सीधी ऊँगली दिखाकर आउट देते थे, तो उन्हें काफी दर्द होता था. ये दर्द उन्हें चौके और चक्के का इशारा करने में भी आती थी. लेकिन बिली हार मानने वालों में से थे कहां और फिर क्रिकेट से इतना प्यार जो था. सो उन्होंने ठान लिया था, अब चाहे जो हो जाए वो इस बार क्रिकेट नहीं छोड़ेंगे.
तब बिली ने एक नया तरीका इजात किया. बिली ने आउट देने के लिए ऊँगली को सीधा रखने के बजाय टेढ़ा रखना शुरू किया जबकि छक्के का इशारा करते हुए वो हाथ को धीरे–धीरे हवा में उठाने लगे. ऐसा करने से बिली को ज्यादा तकलीफ नहीं होती थी. इसी तरह चौका देते समय बिली हाथ को झाड़ू देने के अंदाज में लहराने के साथ पैरों को भी लहराने लगे. चौके और छक्के देते समय बिली के पैर हिलाने के पीछे भी उनकी बीमारी ही थी. दरअसल, पैर को हिलाने से बिली को दर्द से राहत मिलती थी. कह सकते हैं कि यह बिली के लिए एक तरह की कसरत थी, जो जोड़ों में तरलता बनाए रखती थी. बिली के इशारों में एक खास बात और थी, ये क्रिकेट के प्रारूप के हिस्साब से बदलते रहते थे. टेस्ट मैचों में उनके संकेत शांत और गंभीर होते थे, वनडे में आकर्षक और निश्चित जबकि टी20 में भड़कीले और रोमांचक हुआ करते थे.
बिली के निराले अंदाज क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में घर कर गए थे. देखते ही देखते वो दर्शकों के पसंदीदा अंपायर बन गए. कई बार निराले अंदाज को लेकर बिली की आलोचना भी हुई. कभी कभार तो ऐसा लगता था कि यह खेल खिलाड़ियों का नहीं अंपायरों का है. बिली के निराले अंदाज पर कई बार क्रिकेट विशेषज्ञ बोल देते, “बिली को याद रखना चाहिए, ये खिलाड़ियों का खेल है ना कि अंपायरों का. उसे अपनी हद पता होनी चाहिए.”
न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान मार्टिन क्रो बिली बाउडन को ‘मसखरा बोजो‘ कहते हैं. लेकिन बिली बाउडन इन सब बातों की परवाह किए बिना बस अंपायरिंग का आनंद उठाते रहे. बात अंपायरिंग की करें तो शुरुआत से ही बिली एक अच्छे अंपायर के रूप में उभरे और समय के साथ वो और भी बेहतर होते चले गए. बिली बाउडन की गिनती विश्व क्रिकेट के सर्वश्रेष्ठ अंपायरों में होने लगी. तभी तो साल 2002 में उनको अंतराष्ट्रीय अंपायरों के एलिट पैनल का हिस्सा बनाया गया था और इसके अगले साल ICC ने उन्हें एलिट पैनल में शामिल किया था. इतना ही नहीं बिली बाउडन ‘ब्रोंज बेल्स‘ सम्मान यानी 100 वनडे मैचों में अंपायरिंग करने का सम्मान प्राप्त करने वाले दूसरे सबसे युवा अंपायर बने थे. पहले नंबर पर ऑस्ट्रेलिया के साइमन टफेल हैं. बिली बाउडन करीब 10 सालों तक ICC के एलिट पैनल का हिस्सा रहे. सलाना प्रदर्शन के आधार पर उनको 2013 में पैनल से निकाल दिया गया था लेकिन बिली ने 2014 में वापस पैनल में अपनी जगह बना ली. लेकिन अगले साल यानी 2015 में न्यूजीलैंड के ही क्रिस गेफनी ने बिली की जगह ली और फिर बिली पैनल से बाहर हो गए. इसके बाद बिली बाउडन फिर कभी पैनल में शामिल नहीं हो पाए. 1995 से 2015 तक यानी 20 साल के अपने अंपायरिंग करियर में बिली बाउडन ने 84 टेस्ट, 200 वनडे और 24 टी20 मैचों में अंपायरिंग की.
इन 20 सालों में बिली कई ऐतिहासिक घटनाओं और क्षणों का हिस्सा रहे. एक ऐतिहासिक क्षण का जिक्र करना यहां जरुरी हो जाता है. यह साल 2010 की बात है ऐतिहासिक लॉर्ड्स के मैदान में इंग्लैंड और पाकिस्तान के बीच टेस्ट मैच खेला जा रहा था. वो पहला टेस्ट मुकाबला था, जिसमें अंपायरिंग करने वाले दोनों तटस्थ अंपायर बिली बाउडन और टोनी हिल एक ही देश न्यूजीलैंड से आते थे. ये वो टेस्ट ही है जिसे अब मैच फिक्सिंग प्रकरण के लिए याद किया जाता है.
इसके अलावा किसी टी20 अंतराष्ट्रीय मैच में अंपायरिंग करने वाले बिली बाउडन पहले अंपायर हैं. बिली बाउडन से जुड़ा एक और बेहद ही रोचक किस्सा है दोस्तों. बिली बाउडन पहले ऐसे क्रिकेट अंपायर हैं जिन्होंने फुटबॉल की तरह क्रिकेट में भी रेड कार्ड का प्रयोग किया था. और बिली ने ऐसा एक नहीं दो बार किया था. पहली बार एक टी20 इंटरनेशनल मुकाबले में. जब बिली बाउडन ने ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज तेज गेंदबाज ग्लेन मैक्ग्रा को अंडर आर्म बॉल फेकने के लिए रेड कार्ड दिखाया था. दूसरा मौका आया साल 2014 में, जब बिली ने अफगानिस्तान के विकेटकीपर शहजाद को जरुरत से ज्यादा अपील करने के लिए रेड कार्ड दिखाया था.
कई मौकों पर बिली बाउडन भी गलत साबित हुए और काफी विवाद हुआ. साल 2007 विश्व कप फाइनल, जिसमें बिली बाउडन फोर्थ अंपायर की भूमिका में थे. श्रीलंका बनाम ऑस्ट्रेलिया, यह मैच गिलक्रिस्ट के शतक के अलावा आखिरी क्षणों में श्रीलंका के लगभग अंधेरे में बैटिंग करने के लिए भी याद किया जाता है. विश्व कप फाइनल जैसे मौके पर इस तरह अंधेरे में हुए मैच ने ICC की अंतराष्ट्रीय स्तर पर खूब किरकिरी कराई थी, जिसका परिणाम ये रहा कि मैच में अंपायरिंग कर रहे सभी अंपायरों को अगले ICC टूर्नामेंट से बैन कर दिया गया था.
बिली बाउडन उस दौर को अपने अंपायरिंग करियर का सबसे मुश्किल वक्त बताते हैं.
हालांकि कभी हार नहीं मानने वाले बिली बाउडन ने उसके अगले 8 साल यानी 2015 तक अंपायरिंग की. बिली बाउडन वर्तमान में न्यूजीलैंड के घरेलु क्रिकेट में अंपायरिंग करते हैं और नए अंपायरों को तैयार कर रहे हैं. चक दे क्रिकेट की पूरी टीम बिली बाउडन के स्वस्थ जीवन और उज्जवल भविष्य की कामना करती है. आप बिली बाउडन के अंपायरिंग को लेकर क्या राय रखते हैं ? कमेन्ट कर जरुर बताएं.